Hindi
Thursday 25th of April 2024
0
نفر 0

वहाबियत और मक़बरों का निर्माण

 

पैग़म्बरों, ईश्वरीय दूतों और महान हस्तियों की क़ब्रों पर मज़ार एवं मस्जिद का निर्माण वह कार्य है जिसके बारे में वहाबी कहते हैं कि यह चीज़ धर्म में नहीं है और इसके संबंध में वे अकारण ही संवेदनशीलता दिखाते हैं। यह बात सबसे पहले वहाबियत की बुनियाद रखने वाले इब्ने तैय्मिया और उसके पश्चात उसके शिष्य इब्ने क़य्यम जौज़ी ने कही। उन्होंने क़ब्रों के ऊपर इमारत निर्माण करने को हराम और उसके ध्वस्त करने को अनिवार्य होने का फतवा दिया। इब्ने क़ैय्यम अपनी किताब "ज़ादुल माअद फी हुदा ख़ैरिल एबाद"में लिखता है क़ब्रों के ऊपर जिस इमारत का निर्माण किया गया है उसका ध्वस्त करना अनिवार्य है और इस कार्य में एक दिन भी विलंब नहीं किया जाना चाहिये। इस आधार पर मोहम्मद इब्ने अब्दुल वह्हाब द्वारा भ्रष्ठ वहाबी पंथ की बुनियाद रखे जाने और सऊद परिवार द्वारा उसके समर्थन के बाद पवित्र स्थलों व स्थानों पर भारी पैमाने पर आक्रमण किये गये और वहाबियों ने महत्वपूर्ण इस्लामी स्थलों को ध्वस्त करना आरंभ कर दिया। वर्ष १३४४ हिजरी क़मरी अर्थात १९२६ में वहाबियों द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों और साथियों की क़ब्रों के ऊपर बने मज़ारों को ध्वस्त किये जाने को सबसे अधिक दुस्साहसी कार्य समझा जाता है जबकि वहाबी और उनके विद्वान आज तक अपने इस अमानवीय कृत्य का कोई तार्किक व धार्मिक कारण पेश नहीं कर सके हैं।

 

इस्लाम धर्म की निशानियों की सुरक्षा और उनका सम्मान महान ईश्वर की सिफारिश है। पवित्र क़ुरआन के सूरये हज की ३२वीं आयत में महान ईश्वर ने ईश्वरीय चिन्हों की सुरक्षा के लिए मुसलमानों का आह्वान किया है। इस संबंध में महान ईश्वर कहता हैजो भी ईश्वर की निशानियों व चिन्हों को महत्व दे तो यह कार्य दिलों में ईश्वरीय भय होने का सूचक हैजिस तरह से सफा, मरवा, मशअर, मिना और हज के समस्त संस्कारों को ईश्वरीय निशानियां बताया गया है उसी तरह पैग़म्बरों और महान हस्तियों की क़ब्रों का सम्मान भी ईश्वरीय धर्म इस्लाम के आदेशों का पालन है और यह कार्य महान ईश्वर से सामिप्य प्राप्त करने के परिप्रेक्ष्य में है। क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम और दूसरे पैग़म्बर व ईश्वरीय दूत ज़मीन पर महान व सर्वसमर्थ ईश्ववर की सबसे बड़ी निशानी थे और इन महान हस्तियों के प्रति आदरभाव एवं उनकी प्रतिष्ठा का एक तरीक़ा उनकी क़ब्रों की सुरक्षा है। दूसरी ओर पैग़म्बरों और महान हस्तियों की क़ब्रों की सुरक्षा एवं उसका सम्मान, इस्लाम धर्म के प्रति मुसलमानों के प्रेम, लगाव और इसी तरह इन महान हस्तियों द्वारा उठाये गये कष्टों के प्रति आभार व्यक्त करने का सूचक है। पवित्र क़ुरआन ने भी इस कार्य को अच्छा बताया है और समस्त मुसलमानों को आदेश दिया है कि वे न केवल पैग़म्बरे इस्लाम बल्कि उनके पवित्र परिजनों से भी प्रेम करें। पवित्र क़ुरआन के सूरये शूरा में महान ईश्वर कहता है"हे पैग़म्बर कह दो कि मैंने जो ईश्वरीय आदेश तुम लोगों तक पहुंचाया है उसके बदले में मैं अपने निकट संबंधियों से प्रेम करने के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहता”"

अब यहां पर पूछा जाना चाहिये कि क्या पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की रचनाओं, उनके जीवन स्थलों और उनकी क़ब्रों की सुरक्षा उनके प्रति सम्मान नहीं है?

 

प्रिय श्रोताओ यहां यह जानना रोचक होगा कि पवित्र क़ुरआन में भी न केवल इन निशानियों की सुरक्षा की सिफारिश की गयी है बल्कि पवित्र क़ुरआन ने क़ब्रों के ऊपर इमारतों के निर्माण को वैध भी बताया है। इस बात को "असहाबे कहफ़" की एतिहासिक घटना में भी देखा जा सकता है। जब असहाबे कहफ तीन सौ वर्षों के बाद नींद से जागे और उसके कुछ समय के पश्चात वे मर गये तो दूसरे लोग आपस में  बात कर रहे थे कि उनकी क़ब्र के ऊपर इमारत का निर्माण किया जाये या नहीं। उनमें से कुछ लोगों ने कहा कि इन लोगों के सम्मान के लिए उनकी कब्रों के ऊपर इमारत का निर्माण करना आवश्यक है जबकि कुछ दूसरे कह रहे थे कि उनकी क़ब्रों पर मस्जिद का निर्माण किया जाना चाहिये ताकि उनकी याद बाक़ी रहे। इस विषय का वर्णन पवित्र क़ुरआन के सूरये कहफ की २१वीं आयत में भी आया है जो इस बात का सूचक है कि ब्रह्मांड के रचयिता को भले लोगों की क़ब्रों के ऊपर इमारत के निर्माण से कोई विरोध नहीं है क्योंकि यदि यह विषय सही नहीं होता तो निश्चित रूप से इसका वर्णन पवित्र कुरआन में होता। जैसाकि महान ईश्वर ने ईसाईयों और यहूदियों सहित पिछली कुछ जातियों के व्यवहार को नकारा और उसे सही नहीं बताया है। उदाहरण स्वरूप

 

महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरये हदीद की २७वीं आयत में कहताहै" जिस सन्यास को ईसाईयों ने उत्पन्न किया था हमने उसे अनिवार्य नहीं किया था यदि अनिवार्य किया था तो केवल ईश्वर की प्रसन्नता के लिए परंतु उन्होंने उसका वैसा निर्वाह नहीं किया जैसा निर्वाह करना चाहिये था" यदि ईश्वर महान हस्तियों एवं अपने दूतों की क़ब्रों पर इमारत या मस्जिद बनाये जाने का विरोधी होता तो निश्चित रूप से वह इस विषय का इंकार पवित्र क़ुरआन में करता और इसे अप्रिय कार्य घोषित करता।

अच्छे व भले लोगों की क़ब्रों पर इमारत या मज़ार का निर्माण प्राचीन समय से मुसलमानों से मध्य प्रचलित रहा है और उसके चिन्हों को समस्त इस्लामी क्षेत्रों में देखा जा सकता है। शीया मुसलमानों ने पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की क़ब्रों पर रौज़ों एवं ज़रीह अर्थात विशेष प्रकार की जाली का निर्माण किया। सुन्नी मुसलमानों ने भी शहीदों और अपनी सम्मानीय हस्तियों की क़ब्रों पर गुंम्बद का निर्माण करवाया तथा उनके दर्शन के लिए जाते हैं। सीरिया के दमिश्क नगर में जनाबे ज़ैनब सलामुल्लाह का पवित्र रौज़ा, मिस्र में वह रौज़ा जहां हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पावन सिर को दफ्न किया गया है, इराक के बग़दाद नगर में अबु हनीफा और अब्दुल क़ादिर गीलानी का मज़ार, समरकन्द में सुन्नी मुसलमानों की प्रसिद्ध पुस्तकसही बुखारी के लेखक मोहम्मद बिन इस्माईल का मज़ार और महान हस्तियों की समाधियों के ऊपर बहुत सारी मस्जिदें व इमारतें इसके कुछ नमूने हैं। महान हस्तियों और धार्मिक विद्वानों की समाधियों के पास पवित्र स्थलों एवं मस्जिदों

का निर्माण इस्लामी मूल्यों की सुरक्षा एवं उनके प्रति मुसलमानों के कटिबद्ध रहने का सूचक है। मुसलमान/ विशेषकर पैग़म्बरे इस्लाम, ईश्वरीय दूतों और महान हस्तियों की क़ब्रों के दर्शन को महान ईश्वर से सामिप्य प्राप्त करने का एक मार्ग समझते हैं और इस दिशा में वे प्रयास करते हैं। इस मध्य पथभ्रष्ठ और रूढ़िवादी विचार रखने वाला केवल वहाबी पंथ है जो दूसरे समस्त मुसलमानों से विरोध और इस्लामी क्षेत्रों में पवित्र स्थलों व स्थानों को ध्वस्त करने का प्रयास करता है। पैग़म्बरे इस्लाम के सुपुत्र हज़रत इब्राहीम की क़ब्र और उस मस्जिद को ध्वस्त कर देना, जिसे पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा हज़रत हमज़ा की क़ब्र पर बनाया गया है, वे कार्य हैं जो महान हस्तियों की क़ब्रों पर बनाई गयी इमारतों के  प्रति वहाबियों की उपेक्षा  और उनके अपमान व दुस्साहस के सूचक हैं। वहाबिया ने अपने इन कार्यों से करोड़ों मुसलमानों की आस्थाओं को आघात पहुंचाया है और अपने घृणित कार्यों के औचित्य में कमज़ोर रवायतों व कथनों का सहारा लेते और उनकी ओर संकते हैं। मोहम्मद बिन अब्दुल वह्हाब के अनुयाईयों ने न केवल  इन पवित्र स्थलों को ध्वस्त किया है बल्कि इससे भी आगे बढ़कर कहा है कि जो लोग महान हस्तियों की क़ब्रों की ज़ियारत करते हैं और उनकी क़ब्रों पर इमारत का निर्माण करते हैं वे काफिर व अनेकेश्वरवादी हैं। अलबत्ता इस पथभ्रष्ठ सम्प्रदाय से, जिसके पास कोई तर्कसम्मत प्रमाण नहीं है, इस प्रकार के कार्य व विश्वास अपेक्षा से परे नहीं हैं। इस पथभ्रष्ठ सम्प्रदाय के विश्वासों का बहुत सतही होना, रूढ़िवाद और पक्षपात इसकी स्पष्ट विशेषताओं में से हैं और इस पथभ्रष्ठ सम्प्रदाय  के विचारों में बुद्धि, सोच विचार और तर्क का कोई स्थान नहीं है।

 

मुसलमानों के लिए पैग़म्बरों, ईश्वरीय दूतों और महान हस्तियों की क़ब्रों की सुरक्षा न केवल सम्मानीय है बल्कि मुसलमानों के लिए उन घरों व स्थानों की सुरक्षा और उनका सम्मान विशेष महत्व रखता है जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम और दूसरी महान हस्तियां रही हैं। महान ईश्वर ने भी पवित्र क़ुरआन में सबका आह्वान किया है कि उन स्थानों की सुरक्षा की जाये जिसमें उसका गुणगान किया गया हो और मुसलमान इन स्थानों का सम्मान करें। तो मस्जिदों और  पैग़म्बरों के घरों की भांति पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत अली अलैहिस्सलाम, हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा और उनके निकट संबंधियों के मकान भी प्रतिष्ठित हैं क्योंकि ये वे घर हैं जहां ईश्वर के भले बंदों की उपासना एवं दुआ की आध्यात्मिक एवं मधुर ध्वनि गूंजी थी और ये वे स्थान हैं जहां फरिश्ते आवा-जाही करते थे। दूसरी ओर इन मूल्यवान धरोहरों की रक्षा से धर्म इस्लाम की विशुद्धता में वृद्धि होती है। यदि इन इमारतों और यादगार चीज़ों की अच्छी तरह देखभाव व सुरक्षा की जाये तो मुसलमान खुले मन बड़े गर्व से विश्व वासियों से कह सकते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने मनुष्यों के मार्गदर्शन के लिए अनगिनत कठिनाइयां उठाई हैं। उन्होंने इसी साधारण और छोटे से घर में जीवन बिताया है, यही घर उनकी उपासना एवं दुआ का स्थल है परंतु बड़े खेद व दुःख के साथ कहना पड़ता है कि इन मूल्यवान अवशेषों व धरोहरों को वहाबियों ने ध्वस्त करके उनकी प्रतिष्ठा को बर्बाद कर दिया। यह ऐसी स्थिति में है कि इस पथभ्रष्ठ सम्प्रदाय के अस्तित्व में आने से पहले मुसलमानों ने पैग़म्बरे इस्लाम और दूसरे ईश्वरीय दूतों व महान हस्तियों की यादों की सुरक्षा के लिए बहुत प्रयास किया व कष्ट कष्ट किया था।

 

उदाहरण स्वरूप पैग़म्बरे इस्लाम की जीवनी से संबंधित पुस्तक के अतिरिक्त अंगूठी, जूता, दातून, तलवार और कवच जैसी पैग़म्बरे इस्लाम की व्यक्तिगत वस्तुओं यहां तक कि उस कुएं को भी सुरक्षित रखा गया था जिसमें से पैग़म्बरे इस्लाम ने पानी पिया था परंतु खेद की बात है कि इनमें से कुछ ही चीज़ें बाक़ी हैं। वहाबियों द्वारा इस्लामी इतिहास की महत्वपूर्ण चीज़ों को नष्ट करना वास्तव में पुरातत्व अवशेषों को मिटाना है जबकि समस्त राष्ट्र और धर्म विभिन्न व प्राचीन मूल्यों को सुरक्षित रखे हुए हैं और उसे वे अपनी प्राचीन संस्कृति का भाग बताते हैं। वहाबी, सोचे बिना और केवल अपनी भ्रांतियों के आधार पर मूल्यवान इस्लामी मूल्यों व धरोहरों को नष्ट कर रहे हैं। यह ऐसी स्थिति में है जब अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के आधार पर इस प्रकार की मूल्यवान इमारतों को युद्ध की स्थिति में भी नष्ट करना वैध व सही नहीं है। यहां रोचक बिन्दु यह है कि जहां भ्रष्ठ वहाबी संप्रदाय ने पैग़म्बरे इस्लाम, उनके निकट संबंधियों, साथियों तथा दूसरी मूल्यवान वस्तुओं को नष्ट कर दिया है वहीं यह धर्मभ्रष्ठ संप्रदाय इस्लाम और मुसलमानों के शत्रुओं के ख़ैबर नाम के दुर्ग को पवित्र नगर मदीना के पास यह कह कर रक्षा कर रहा है कि यह एक एतिहासिक धरोहर है।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

माद्दी व मअनवी जज़ा
दीन क्या है?
सूर –ए- तौबा की तफसीर 2
क़यामत पर आस्था का महत्व
उलूमे क़ुरआन का इतिहास
क़ुरआने मजीद और अख़लाक़ी तरबीयत
दर्द नाक हादसों का फ़लसफ़ा
सिरात व मिज़ान
बक़रीद के महीने के मुख्तसर आमाल
क़ानूनी ख़ला का वुजूद नही है

 
user comment