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Thursday 25th of April 2024
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सलाम

सलाम

हाथो पा शह के रन को जो नूरे नज़र गये।
ज़ुल्मो जफ़ाओ जौर के चेहरे उतर गये।


अब्बास अपने हाथो को कटवाके हश्र तक
लफ्ज़े वफा बस अपने लिये खास कर गये।


नोके सिना पा आयए क़ुरआँ का विर्द था
कर्बोबला से शाम जो नैज़ो पा सर गये।


अब्बास के जलाल से लरज़ा थी फौजे शाम
कितने तो सिर्फ शेर की दहशत से मर गये।


चुन ने मलक़ भी आये हैं ज़हरा के साथ साथ
अश्के अज़ा जो फर्शे अज़ा पर बिखर गये।


रिज़वान तेरी ख़ुल्द की क़ीमत है एक अश्क
शब्बीर ऐसा हदिया हमें सौंपकर गये।


दुनियाँ में वो किसी से हुआ है न होएगा
जो काम शाहेवाला के असहाब कर गये।


हैदर की मन्ज़िलत तो पैयम्बर से पूछिये
पाया अली का लहजा जो मेराज पर गये।


कहते हैं लोग उनको भी देखो तो मुसलमाँ
लेकर जो आग लकड़ियाँ ज़हरा के घर गये।


'अहमद' कहूँ मैं कैसे उन्हें दीन का रहबर
बादे रसूल ज़हरा के जो हक़ से फिर गये।

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