Hindi
Friday 19th of April 2024
0
نفر 0

नौहा

नौहा



तुरबते बेशीर पर कहती थी माँ असग़र उठो
कब तलक तन्हाई में सोओगे ऐ दिलबर उठो


है अंधेरा घर में नज़रों में जहाँ तारीक है
कब तलक पिन्हाँ रहोगे ए महे अनवर उठो


हम सबों को कै़द करके अशक़िया ले जाऐगें
किस तरह तन्हा तुम्हें छोड़ेगी यह मादर उठो


गोद खाली देखकर पूछे अगर सुग़रा तुम्हें
क्या कहे इस नातवाँ से मादरे मुज़तर उठो


गोद से मेरी जुदा होते न थे तुम तो कभी
नींद इस सुनसान बन में आ गयी क्योंकर उठो


किसलिए नाराज़ हो आओ मना लूँ मैं तुम्हें
कुछ जुबां से तो कहो सदके़ गयी मादर उठो


दूध दो दिन से न पाया इसलिए रूठे हो क्या
बेकसो मजबबूर है माँ है एै मेरे दिलबर उठो


किस तरह तन्हा अंधेरी रात में नींद आएगी
आओ सीने से लगा लें माँ अली असग़र उठो


हो गई है ज़िन्दगी दुश्वार अब अफकार से
'फिक्र' रौज़े पर चलो बस या अली कहकर उठो

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का ...
पाक मन
मुहाफ़िज़े करबला इमाम सज्जाद ...
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत
पैगम्बर अकरम (स.) का पैमाने बरादरी
मासूमाऐ क़ुम जनाबे फातेमा बिन्ते ...
इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) के राजनीतिक ...
पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की वफ़ात
हक़ और बातिल के बीच की दूरी ??
बग़दाद में तीन ईरानी तीर्थयात्री ...

 
user comment