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Friday 29th of March 2024
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ख़ुत्बाए इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ0) (बाज़ारे कूफ़ा में)

ख़ुत्बाए इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ0) (बाज़ारे कूफ़ा में)

अल्लाह की हम्द व सना और रिसालतमाब पर दुरूद व सलाम के बाद आपने इरशाद फ़रमाया --

जो मुझे जानता है सो जानता है और जो नहीं जानता वह जान ले के मैं अली (अ0) इब्निल हुसैन (अ0) इब्ने अली (अ0) इब्ने अबी तालिब (अ0) हूं। मैं उसका बेटा हूं जिसे फ़ुरात के किनारे बग़ैर किसी ख़ून के बदले या इन्तेक़ाम के मुतालेबे के प्यासा ज़िबह कर दिया गया। मैं उसका बेटा हूं जिसकी हतक हुरमत हुई है जिससे नेमते हयात को महरूम कर दिया गया। जिसका माल लूटा गया, जिसके अहल व अयाल को क़ैद किया गया। मैं उसका बेटा हूं जिसे चारों तरफ़ से घेर कर शहीद किया गया और यही फ़ख़्र के लिये काफ़ी है।
ऐ लोगों! मैं तुम्हें अल्लाह की क़सम देकर पूछता हूं क्या तुम जानते हो के तुमने मेरे बाबा को ख़ुतूत लिखकर उन्हें धोका दिया। अपनी तरफ़ से मीसाक़ दिये और बैअत की पेशकश की, हर फ़र्द ने उनका साथ छोड़ दिया और उनसे जंग की, पस तुम पर हलाकत हो उस बदज़नी और बद आमाली की वजह से जो तुमने अपनी आक़बत ख़राब करने के लिये अन्जाम दीं और बरोज़े क़यामत तुम किस तरह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के सामने आंखें उठा सकोगे?
जब वह तुमसे कहेंगे के --   ‘‘तुमने मेरी इतरत व औलाद को मार डाला, मेरी हतक हुरमत की, पस तुम मेरी उम्मत से नहीं हो!’’

 

(हर तरफ़ से लोगों के गिरया की आवाज़ बलन्द हुई और वह एक दूसरे से कह रहे थे के तुम बरबाद हो गए और तुम्हें इल्म न हुआ)

 

फिर आपने इरशाद फ़रमाया-- ‘‘अल्लाह रहम करे उस पर जो मेरी नसीहत को सुने और अल्लाह, रसूल सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम और उनकी अहलेबैत के बारे में मेरी वसीयत को याद रखे।
 

 
 ‘‘बेशक हमारे लिये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम की ज़ात में असवाए हुस्ना और बेहतरीन नमूना है’’

 

उन सबने मिलकर कहा ऐ फ़रज़न्दे रसूल सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम! हम आपकी बात सुनते हैं और इताअत करते हैं, और आपकी ज़िम्मेदारियों और हुक़ूक़ की हिफ़ाज़त करते हैं और हम आपसे अलग नहीं होंगे और न पहलूतही करेंगे, आप हुक्म दें, अल्लाह आप पर रहम फ़रमाए, हमारी जंग उससे है जो आपसे जंग करे और उससे सुलह है जो आपसे सुलह करे, ताके हम उससे आपका और अपना इन्तेक़ाम लें जिसने आप पर ज़ुल्म किया है)
आप (अ0) ने फ़रमाया-  हैहात! हैहात! यह तो दूर बहुत दूर की बात है, ऐ ग़द्दारों! ऐ मक्कारों! तुम्हारे और तुम्हारी ख़्वाहिशाते नफ़्स के दरमियान मानेअ पैदा कर दिया गया है? क्या तुम चाहते हो के मेरी तरफ़ उसी तरह आओ जिस तरह तुम मेरे आबा और बुज़ुर्गों की तरफ़ आए हो?      हरगिज़ नहीं!
उन ऊंटनियों की क़सम जो मैदाने मिना की तरफ़ रक़्स करती हुई जाती हैं, अभी तक तो मेरे ज़ख़्म मुन्दमिल नहीं हुए, कल मेरे बाबा और उनके अन्सार व अहलेबैत (अ0) मारे गये। मुझे रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम का रोना नहीं भूला, अपने बाबा और उनकी औलाद का रोना नहीं भूला, यह दुख मेरे जबड़े की हड्डियों में तल्ख़ नरख़रे और गले के दरम्यान है और उसके तल्ख़ घूंट मेरे सीने की पतली हड्डियों में अटके हुए हैं। पस मैं यह चाहता हूं के न हमारे साथी बनो और न मुख़ालिफ़ बनो। फिर आपने यह अशआर पढ़े उनका तरजुमा दरजा ज़ैल है


‘‘कोई ताअज्जुब नही के हुसैन शहीद कर दिये गये जबके उनके वालिद इनसे बहुत बेहतर व मोहतरम थे। ऐ अहले कूफ़ा! उस मुसीबत पर ख़ुश न होना जो हुसैन (अ0) को पहुंची यह एक बड़ी मुसीबत है जो फ़ुरात पे मारा गया उस पर मेरी जान फ़िदा हो। जिसने उन्हें शहीद किया उसकी सज़ा जहन्नम की आग हो।

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