বাঙ্গালী
Wednesday 8th of May 2024
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दलील व बुरहान के साथ मज़हब का इंतेख़ाब करना चाहिये

दलील व बुरहान के साथ मज़हब का इंतेख़ाब करना चाहिये

क्या हम में से हर शख्स ने अपने मज़हब को दलील व बुरहान और तहक़ीक़ के साथ इंतेख़ाब किया है, या हमको यह मज़हब मीरास में मिल गया है। क्यो कि हमारे माँ बाप इस मज़हब पर अक़ीदा रखते थे लिहाज़ा हम भी उसी मज़हब पर हैं? क्या इमामत उन्ही ऐतेक़ादी उसूल में से नही है जिन पर हमारे पास दलील होनी चाहिये? किन वुजुहात की बिना पर हम ने यह मज़हब क़बूल किया है? क्या वह असबाब क़ुरआनी, हदीसी या अक़ली है या वह असबाब नस्ल परस्ती है जिसकी कोई अस्ल व बुनियाद नही होती? किस दलील की वजह से दूसरे मज़ाहिब हमारे मज़हब से अफ़ज़ल नही हैं? क्या कल मैं अपने इन ऐतेक़ाद का ज़िम्मेदार नही हूँ? यह ऐसे सवालात है जो हर इंसान के ज़हन में पैदा हो सकते हैं और उनके जवाबात भी उसी को देना है, उनका जवाब इमामत की बहस के अलावा कुछ नही हो सकता। क्यो कि तमाम ही मज़ाहिब का महवर मसअल ए इमामत है।

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