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इमाम अली नक़ी (अ.स.) के करामात

इमाम अली नक़ी (अ.स.) तक़रीबन 29 साल मदीना मुनव्वरा क़याम पज़ीर रहे। आपने इस मुद्दते उमर में कई बादशाहों का ज़माना देखा। तक़रीबन हर एक ने आपकी तरफ़ रूख़ करने से ऐहतिराज़ किया। यही वजह है कि आप उमूरे इमामत को अन्जाम देने में कामयाब रहे। आप चूंकि अपने आबाओ अजदाद की तरह इल्मे बातिन और इल्मे ग़ैब भी रखते थे। इसी लिए आप अपने मानने वालों को होने वाले वाकि़यात से बा ख़बर फ़रमा दिया करते
इमाम अली नक़ी (अ.स.) के करामात



इमाम अली नक़ी (अ.स.) तक़रीबन 29 साल मदीना मुनव्वरा क़याम पज़ीर रहे। आपने इस मुद्दते उमर में कई बादशाहों का ज़माना देखा। तक़रीबन हर एक ने आपकी तरफ़ रूख़ करने से ऐहतिराज़ किया। यही वजह है कि आप उमूरे इमामत को अन्जाम देने में कामयाब रहे।

आप चूंकि अपने आबाओ अजदाद की तरह इल्मे बातिन और इल्मे ग़ैब भी रखते थे। इसी लिए आप अपने मानने वालों को होने वाले वाकि़यात से बा ख़बर फ़रमा दिया करते थे और कोशिश फ़रमाते थे कि मक़दूरात के अलावा कोई गज़न्द न पहुंचने पाए इस सिलसिले में आपके करामात बे शुमार हैं जिनमें से हम इस मक़ाम पर किताब कशफ़ुल ग़ुम्मा से चन्द करामात तहरीर करते हैं।


1. मौहम्मद इब्ने फरज रहजी का बयान है कि हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने मुझे तहरीर फ़रमाया कि तुम अपने तमाम उमूर व मामलात को रास्त और निज़ामे ख़ाना को दुरूस्त कर लो और अपने असलहों को सम्भाल लो। मैंने उनके हुक्म से तमाम काम दुरूस्त कर लिया लेकिन यह न समझ सका यह हुक्म आपने क्यों दिया लेकिन चन्द दिनो के बाद मिस्र की पुलिस मेरे यहां आई और मुझे गिरफतार कर के ले गई और मेरे पास जो कुछ था, सब ले लिया और मुझे क़ैद खाने में बन्द कर दिया। मैं आठ साल इस क़ैद खाने में पडा रहा। एक दिन इमाम (अ.स.) का खत पहुंचा , जिसमें मरक़ूम था कि ऐ मौहम्मद बिन फ़जऱ् , तुम उस रास्ते की तरफ़ न जाना जो मग़रिब की तरफ़ वाक़े है। ख़त पाते ही मेरी हैरानी की कोई हद न रही। मै सोचता रहा कि मैं तो क़ैद खाने में हूं मेरा तो उधर जाना मुम्किन ही नहीं फिर इमाम ने क्यों यह कुछ तहरीर फ़रमाया?

आपके ख़त आने को अभी दो चार ही दिन गुज़रे थे कि मेरी रेहाई का हुक्म आ गया और मैं उनके हुक्म के मुताबिक उस तरफ नही गया कि जिसको आपने मना किया था। क़ैद ख़ाने से रेहाई के बाद मैने इमाम (अ.स.) को लिखा कि हुज़ूर मैं क़ैद से छूट कर घर आ गया हूं। अब आप खुदा से दुआ फ़रमाऐं कि मेरा माल मग़सूबा वापस करा दें। आपने उसके जवाब में तहरीर फ़रमाया कि अन्क़रीब तुम्हारा सारा माल तुम्हें वापस मिल जाएगा चुनांचे ऐसा ही हुआ।


2. एक दिन इमाम अली नक़ी (अ.स.) और अली बिन हसीब नामी शख़्स दोनों साथ ही रास्ता चल रहे थे। अली बिन हसीब आपसे चन्द गाम आगे बढ़ कर बोले , आप भी क़दम बढ़ा कर जल्द आजाएं हज़रत ने फ़रमाया कि ऐ इब्ने हसीब तुम्हें पहले जाना है। तुम जाओ इस वाकि़ए के चार दिन बाद इब्ने हसीब फ़ौत हो गए।


3. एक शख़्स मौहम्मद बिन फ़ज़ल बग़दादी नामी का बयान है कि मैंने हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) को लिखा कि मेरे पास एक दुकान है मैं उसे बेचना चाहता हूं आपने उसका जवाब न दिया। जवाब न मिलने पर मुझे अफ़सोस हुआ। लेकिन जब मैं बग़दाद वापस पहुंचा तो वह आग लग जाने की वजह से जल चुकी थी।


4. एक शख्स अबू अय्यूब नामी ने इमाम (अ.स.) को लिखा कि मेरी ज़ौजा हामेला है , आप दुआ फ़रमाएं कि लड़का पैदा हो। आप ने फ़रमाया इन्शा अल्लाह उसके लड़का ही पैदा होगा और जब पैदा हो तो उसका नाम मौहम्मद रखना। चुनांचे लड़का ही पैदा हुआ , और उसका नाम मौहम्मद ही पैदा रखा गया।


5. यहिया बिन ज़करिया का बयान है कि मैंने इमाम अली नक़ी (अ.स.) को लिखा कि मेरी बीवी हामेला है आप दुआ फ़रमाऐ कि लड़का पैदा हो। आपने जवाब में तहरीर फ़रमाया कि बाज़ लड़कियां लड़कों से बेहतर होती हैं , चुनांचे लड़की पैदा हुई।


6. अबू हाशिम का बयान है कि मैं 227 हिजरी में एक दिन हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) की खि़दमत में हाजि़र था कि किसी ने आकर कहा कि तुर्को की फ़ौज गुज़र रही है। इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि ऐ अबू हाशिम चलो इन से मुलाक़ात करें। मैं हज़रत के हमराह हो कर लश्करियों तक पहुचा। हज़रत ने एक ग़ुलाम तुर्की से इसकी ज़बान में गुफ़्तगू शुरू फ़रमाई और देर तक बातें करते रहे। उस तुर्की सिपाही ने आपके क़दमों का बोसा दिया। मैंने उस से पूछा कि वह कौन सी चीज़ है जिसने तुझे इमाम का गिरवीदा बना दिया ? उसने कहाः इमाम ने मुझे उस नाम से पुकारा जिसका जानने वाला मेरे बाप के अलावा कोई न था।


7. अबू हाशिम कहते हैं कि मैं एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाजि़र हुआ तो आपने मुझ से हिन्दी ज़बान में गुफ़तगू की जिसका मैं जवाब न दे सका , तो आपने फ़रमाया कि मैं अभी अभी तुम्हें तमाम ज़बानों का जानने वाला बनाए देता हूं। यह कह कर आपने एक संग रेज़ा उठाया और उसे अपने मुहं में रख लिया उसके बाद उस संग रेज़े को मुझे देते हुए फ़रमाया कि इसे चुसो। मैने मुँह में रख कर उसे अच्छी तरह चूसा , उसका नतीजा यह हुआ कि मैं तेहत्तर ज़बानों का आलिम बन गया। जिनमें हिन्दी भी शामिल थी। इसके बाद से फिर मुझे किसी ज़बान के समझने और बोलने में दिक़्कत न हुई। सफ़ा 122 से 125


8. आइम्माए ताहेरीन के उलील अम्र होने पर क़ुरान मजीद की नस सरीह मौजूद है। इनके हाथों और ज़बान में खुदा वन्दे आलम ने यह ताक़त दी है कि वह जो कहे हो जाए , जो इरादा करें उसकी तकमील हो जाए। अबू हाशिम का बयान है कि एक दिन मैनें इमाम अली नक़ी (अ.स.) की खिदमत में अपनी तंग दस्ती की शिकायत की। आपने फ़रमाया बड़ी मामूली बात है तुम्हारी तक्लीफ़ दूर हो जाएगी। उसके बाद आपने रमल यानी रेत की एके मुठ्ठी ज़मीन से उठा कर मेरे दामन में ड़ाल दी और फ़रमाया इसे ग़ौर से देखो और इसे फ़रोख्त कर के काम निकालो।


अबू हाशिम कहते हैं कि ख़ुदा की क़सम जब मैने उसे देखा तो वह बेहतरीन सोना था , मैंने उसे बाज़ार ले जा कर फ़रोख्त कर दिया।

(मुनाकि़ब इब्ने शहर आशोब जिल्द 6 सफ़ा 119)


9. हज़रत सुक़्क़तुल इस्लाम अल्लामा क़ुलैनी उसूले काफ़ी में लिखते हैं कि इमाम अली नक़ी (अ.स.) ने फ़रमाया , इस्म अल्लाहुल आज़म 73 हुरूफ़ में इनमें से सिर्फ़ एक हरफ़ आसिफ़ बरखि़या वसी सुलेमान को दिया गया था जिसके ज़रिए से उन्होंने चश्मे ज़दन में मुल्के सबा के तख्ते बिलक़ीस मंगवा लिया था और इस मंगवाने में यह हुआ था कि ज़मीन सिमट कर तख्त को क़रीब ले आई थी , ऐ नौफ़ली रावी ख़ुदा वन्दे आलम ने हमें इस्मे आज़म के 72 हुरूफ़ दिये हैं और अपने लिये सिर्फ़ एक हरफ़ महफ़ूज़ रखा है जो इल्मे ग़ैब से मुताअल्लिक़ है।


मसूदी का कहना है कि इसके बाद इमाम ने फ़रमाया कि ख़ुदा वन्दे आलम ने अपनी क़ुदरत और अपने इज़्ने इल्म से हमें वह चीज़े अता कि हैं जो हैरत अंगेज़ और ताज्जुब ख़ैज़ हैं। मतलब यह है कि इमाम जो चाहें कर सकते हैं। उनके लिए कोई रूकावट नहीं हो सकती।

(उसूले काफ़ी - मुनाकि़ब इब्ने शहर आशोब जिल्द 5 सफ़ा 118 व दमतुस् साकेबा सफ़ा 126)


10. शेख़ अबू जाफ़र तूसी किताब मिसबाह में लिखते हैं कि इस्हाक़ बिन अब्दुल्लाह अलवी अरीज़ी हज़रत इमाम अली नक़ी (अ.स.) की खि़दमत में बा मुक़ाम सरय्या मदीना हाजि़र हुए। इमाम (अ.स.) ने उन्हें देख कर फ़रमाया , मैं जानता हूं कि तुम्हारे बाप और तुम्हारे चचा के दरमियान यह अमर ज़ेर बहस है कि साल के वह कौन से रोज़े है कि जिनका रखना बहुत ज़्यादा सवाब रखता है और तुम इसी के मुताल्लिक़ मुझ से सवाल करने आए हो। उसने कहा ऐ मौला बस यही बात है कि आपने फ़रमाया सुनो वह चार रोज़े हैं जिनके रखने की ताकीद है।


1. यौमे विलादत हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम स. 17 रबीउल अव्वल।


2. यौमे बैसत व मेराज 27 रजबुल मुरज्जब।


3. यौमे दहवुल अर्ज़ यानी जिस दिन काबे के नीचे से ज़मीन बिछाई गई और सफ़ीना ए नूह कोह जूदी पर ठहरा जिसकी तारीख़ 25 ज़ीक़ाद है।


4. यानी यौमें अल ग़दीर जिस दिन हज़रत रसूले ख़ुदा स. ने हज़रत अली (अ.स.) को अपने जानशीन होने का ऐलान आम फ़रमाया जिसकी तारीख़ 18 जि़ल हिज है।


ऐ अरीज़ी जो इन दिनों में से किसी दिन भी रोज़ा रखे। उसके साठ और सत्तर साला गुनाह बख़शे जाते हैं।

(किताब मुनाकि़ब जिल्द 5 सफ़ा 123 व दम ए साकेबा जिल्द 3 सफ़ा 123)


source : alhassanain
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