Hindi
Tuesday 26th of November 2024
0
نفر 0

मर्द की ब निस्बत औरत की मीरास आधी क्यों

ख़्वातीन बिल ख़ुसूस इल्म हासिल करने वाली लड़कियों आम तौर से सवाल करती हैं कि मर्द की ब निस्बत औरत की मीरास आधी क्यों हैं? क्या यह अदालत के मुताबिक़ है और यह औरत के हुक़ूक़ पर ज़ुल्म नही है?

जवाब: अव्वल यह कि हमेशा ऐसा नही है कि मर्द, औरत की मीरास से दुगुना मीरास पाये बल्कि बाज़ मर्द और औरत दोनो बराबर मीरास पाते हैं मिन जुमला मय्यत के माँ बाप दोनो मीरास का छठा हिस्सा ब तौरे मुसावी पाते हैं, इसी तरह माँ के घराने वाले ख़्वाह औरतें हों या मर्द दोनों ब तौरे मुसावी मीरास पाते हैं और बाज़ वक़्त औरत पूरी मीरास पाती है।

दूसरे यह कि दुश्मन से जिहाद करने के इख़राजात मर्द पर वाजिब हैं जब कि औरत पर यह इख़राजात वाजिब नही है।

तीसरे यह कि औरत के इख़रजात मर्द पर वाजिब हैं अगर चे औरत की दर आमद बहुत अच्छी और ज़्यादा ही क्यों न हों।

चौथे यह कि औलाद के इख़राजात चाहे वह ख़ुराक हो या लिबास वग़ैरह हों मर्द के ज़िम्मे है।

पाँचवें यह कि अगर औरत मुतालेबा करे और चाहे तो बच्चो को जो दूध पिलाती है वह शीर बहा (दूध पिलाने के हदिया) ले सकती है।

छठे यह कि माँ बाप और दूसरे अफ़राद के इख़राजात कि जिस की वज़ाहत रिसाल ए अमलिया में की गई है, मर्द के ज़िम्मे हैं।

सातवें यह कि बाज़ वक़्त दियत (शरई जुर्माना) मर्द पर वाजिब है जब कि औरत पर वाजिब नही है और यह उस वक़्त होता है कि जब कोई शख़्स सहवन जिनायत का मुरतकिब हो तो उस मक़ाम पर मुजरिम के क़राबत दारों (भाई, चचा और उन के बेटों) को चाहिये कि दियत अदा करें।

आठवीं यह कि शादी के इख़राजात के अलावा शादी के वक़्त मर्द को चाहिये कि औरत को मेहर भी अदा करे।

इस बेना पर ज़्यादा तर मरहलों में मर्द ख़र्च करने वाला और औरत इख़राजात लेने वाली होती है, इसी वजह से इस्लाम ने मर्द मर्द के हिस्से को औरत की ब निस्बत दो गुना क़रार दिया है ता कि तआदुल बर क़रार रहे और अगर औरत की मीरास, मर्द की मीरास से आधी हो तो यह ऐने अदालत है और इस मक़ाम पर मुसावी होना मर्द के ह़ुक़ूक़ पर ज़ुल्म हैं।

इसी बेना पर हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम ने फ़रमाया:

माँ बाप और औलाद के इख़राजात मर्द पर वाजिब हैं।

हज़रत से पूछा गया कि औरत की ब निस्बत मर्द की मीरास दो गुना क्यों होती हैं?

हज़रत ने फ़रमाया: इस लिये कि आक़ेला की दिय, ज़िन्दगी के इख़राजात, जिहाद, महर और दूसरी चीज़ें औरत पर वाजिब नही हैं जब कि मर्द पर वाजिब हैं।

जब हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस सलाम से पूछा गया कि औरत की मीरास के आधी होने की इल्लत क्या है? तो आप ने फ़रमाया: इस लिये कि जब औरत शादी करती है तो उस का शुमार (माल) पाने वाली में होता है, उस के बाद इमाम (अ) ने सूर ए निसा की 34 वीं आयत को दलील के तौर पर पेश किया।


source : http://hamarianjuman.blogspot.com
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

अरब सरकारें फिलिस्तीन को बेच कर ...
यमन पर अतिक्रमण में इस्राईल की ...
क़ुरआन तथा पश्चाताप जैसी महान ...
सीरिया, लाज़ेक़िया के अधिकांश ...
पश्चाताप आदम और हव्वा की विरासत 4
नाइजीरियाई सेना का क़हर जारी, ...
इमाम अली अलैहिस्सलाम की दृष्टि मे ...
चिकित्सक 2
लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने का ...
अमरीकी कंपनी एचपी के विरुद्ध ...

 
user comment