Masoumeen
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हज़रत मासूमा
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सर्वसमर्थ व महान ईश्वर से निकट होने का एक मार्ग पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों से प्रेम है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम अपने पवित्र परिजनों का सदैव सम्मान करते थे और लोगों से कहते थे कि वे उनके पवित्र परिजनों से प्रेम करें। पैग़म्बरे इस्लाम ने पवित्र क़ुरआन के बाद अपने पवित्र परिजनों का परिचय इस्लामी समुदाय व राष्ट्र के लिए अपनी सबसे बड़ी धरोहर व यादगार के रूप में किया है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्ला




इमाम जाफ़र सादिक़ अ. आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में
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इमाम सादिक़ अ. एक मुजाहिद (परिश्रमी) इन्सान थे, एक आलिम थे, और एक बहुत बड़े सिस्टम व नेटवर्क के लीडर थे। उनके आलिम होने के बारे में सब जानते हैं। इमाम सादिक़ अ. ने एजूकेशन का जो सिलसिला शुरू किया था वह सारे इमामों के ज़माने से बेहतर और ला जवाब था।


इमाम हुसैन अ. एक बेमिसाल हस्ती।
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अल्लाह तआला ने कुरआन में अपने मोमिन बंदों को हुक्म दिया है कि कोई भी काम केवल उसकी खुशी और मर्ज़ी के लिए अंजाम दें। ("صبغۃ اللہ و من احسن اللہ صبغۃ") कि ख़ुद पर ख़ुदाई रंग चढ़ा लो क्योंकि ख़ुदा के रंग से बेहतर कौन सा रंग है और एक और आयत में पैगंबर मोहम्मद स.अ. को सम्बोधित करके कहा कि ("ان تقوموا للہ مثنیٰ و فرادیٰ") दो दो होकर या अकेले अकेले अल्लाह के लिये उठ खड़े हो। कुरआन अल्लाह की राह में जिहाद करने वालों की प्रशंसा में कहता है कि ("اِنَّ اللہَ ا


इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) के राजनीतिक संघर्ष पर एक नज़र।
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अइम्मा (अ.ह.) अपने ऐसे साथियों और अनुयायियों को हुकूमत में शामिल होने का आदेश देते थे जिनमें काफी हद तक राजनीतिक अंतर्दृष्टि और समझ पाई जाती थी जिसका उद्देश्य हुकूमत में रहकर अत्याचार को रोकने और भ्रष्टाचार को कम करके इस्लामी समाज की सेवा करना था।




इमाम हसन अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस
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सन तीन हिजरी में रमज़ानुल मुबारक की पन्द्रह तारीख़ को पैगम्बरे इस्लाम(स) की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा(स) ने नूरानी वुजूद वाले एक ख़ूबसूरत बेटे को जन्म दिया था । यह फ़ातेमा व अली की पहली सन्तान थी और हज़रत मोहम्मद (स) का पहला नाती, जिसके आने का वह शिद्दत से इंतेज़ार कर रहे थे।










इमाम तकी अलैहिस्सलाम के मोजेज़ात
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(1) इमाम अली रज़ा (अ.स) की शहादत के बाद मुखतलिफ शहरो से 80 ओलामा और दानिशमंद हज करने के लिये मक्का रवाना हुए। वो सफर के दौरान मदीना भी गए , ताकि इमाम मौहम्मद तक़ी (अ.स) की ज़ियारत भी करलें। उन लोगो ने इमाम सादिक़ (अ.स) के एक खाली घर में क़याम किया।

