इस्लाम अत्याचर-ज़ूल्म-सित्म को दूर करने व एक वेरासती हुकूमत, और सल्तनती हकुमत को दूर व किनार रखने, और राष्ट्र कि तक़दीर को संम्भलने के लिए मासूमीन (अ0) व्यतीत एक कमेटी ( शुरा) ...
दीन अरबी शब्द है जिस का मतलब आज्ञापालन, परोतोषिक आदि बताया गया है लेकिन दीन या दीन की परिभाषा होती है इस सृष्टि के रचयता और उसके आदेशों पर विश्वास व उस के प्रति आस्था रखना इस ...
हमारा अक़ीदह है कि पैग़म्बरों और रसूलों का का सब से बड़ा इफ़्तेख़ार यह था कि वह अल्लाह के मुती व फ़रमाँ बरदार बन्दे रहे। इसी वजह से हम हर रोज़ अपनी नमाज़ों में पैग़म्बरे ...
इमाम अली अ.स. ने यह जानते हुए कि पैग़म्बर स.अ. की वफ़ात के बाद ख़िलाफ़त, इमामत और रहबरी मेरा हक़ है और मुझ से मेरे इस हक़ के छीनने वाले ज़ुल्म कर रहे हैं (शरहे नहजुल-बलाग़ा, ...
हमारा अक़ीदह है कि क़ियामत के दिन पैग़म्बर,आइम्मा-ए-मासूमीन और औलिया अल्लाह अल्लाह के इज़्न से कुछ गुनाहगारों की शफ़ाअत करें गे और वह अल्लाह की माफ़ी के मुस्तहक़ क़रार ...
भटकी हुई हयात के रहबर हुसैन हैंसेहरा हैं करबला तो समन्दर हुसैन हैंखुशबू पयामे हक की हैं सारे जहान मेंगुलज़ार-ए-मुस्तफा के गुल-ए-तर हुसैन हैंइश्क-ए-हुसैन से मेरी उक़बा संवर ...
मुफ़ज़्ज़ल बिन क़ैस ज़िन्दगी की दुशवारी से दो चार थे और फ़क्र व तंगदस्ती कर्ज़ और ज़िन्दगी के अख़राजात से बहुत परेशान थ। एक दिन हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक अलैहिस्सलाम की ...
हमारा अक़ीदह है कि मस्ला- ए- तवस्सुल भी मस्ला-ए- शफ़ाअत की तरह है। मस्ला-ए –तवस्सुल मानवी व माद्दी मुश्किल में घिरे इँसानों को यह हक़ देता है कि वह अल्लाह के वलीयों से तवस्सुल ...
पैग़म्बरों, ईश्वरीय दूतों और महान हस्तियों की क़ब्रों पर मज़ार एवं मस्जिद का निर्माण वह कार्य है जिसके बारे में वहाबी कहते हैं कि यह चीज़ धर्म में नहीं है और इसके संबंध ...
आम तौर से यह बात समझी जाती है कि जवानी में केवल लड़के ही हस्त मैथुन (मुश्त ज़नी) जैसा खतरनाक काम करते हैं जब कि यह गलत है क्योंकि इस बात का सुबूत मौजूद है कि हस्त मैथुन ...
ईमाम अली (अ.स.) फ़रमाते हैं :लोगों! क़ुरआन के जमा करने वालों और पैरोकारों में से हो जाओ और उस को अपने परवरदिगार के लिये दलील क़रार दो।अल्लाह को उस के कलाम के पहचानों। ...
बहुत से जवान इरादे की कमज़ोरी और फ़ैसला न करने की सलाहियत की शिकायत करते हैं कहते हैं कि हमने बुरी आदत को छोड़ देने का फ़ैसला किया लेकिन उसमें सफल नही हुए इमाम अली (अ) की नज़र ...
हमारा अक़ीदह है कि तौहीद की बहुत सी क़िस्में हैं जिन में से यह चार बहुत अहम हैं।
तौहीद दर ज़ात
यानी उसकी ज़ात यकता व तन्हा है और कोई उसके मिस्ल नही है
तौहीद दर सिफ़ात
यानी ...
हमारा अक़ीदह है कि इस दुनिया और आख़ेरत के बीच एक और जहान है जिसे “बरज़ख़” कहते हैं।मरने के बाद हर इँसान की रूह क़ियामत तक इसी आलमे बरज़ख़ में रहती है।“व मिन वराइहिम ...
फ़रिश्तों के वुजूद पर हमारा अक़ीदह है कि और हम मानते हैं कि उन में से हर एक की एक ख़ास ज़िम्मेदारी है-
एक गिरोह पैगम्बरों पर वही ले जाने पर मामूर हैं[1]।
एक गिरोह इँसानों के ...
इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ज़ुहूर से पहले बहुत सी निशानियां ज़ाहिर होंगी। जब आपका ज़ुहूर होगा तो पूरब व पश्चिम पर आपकी हुकूमत होगी। ज़मीन अपने सारे ख़ज़ाने उगल देगी। ...
इस सूरे में 286 आयते हैं और पवित्र क़ुरआन के तीस भागों में से दो से ज़्यादा भाग इसी सूरे से विशेष हैं। पवित्र क़ुरआन के उतरने वाले सूरों के क्रमांक की दृष्टि यह 86वें नंबर पर ...
और मैने तुम्हे नसीहत की मगर तुम नसीहत करने वालों को पसंद नही करते।
सूरः ए आराफ़ आयत 78
समाजी ज़िन्दगी, दर अस्ल इंसान का बहुत से नज़रियों व अफ़कार से दो चार होना है। उनमें ...
हमारा अक़ीदह है कि अगर कभी इंसान ऐसे मुतस्सिब लोगों के दरमियान फँस जाये जिन के सामने अपने अक़ीदेह को बयान करना जान के लिए खतरे का सबब हो तो ऐसी हालत में मोमिन की ज़िम्मेदारी ...
हमारा अक़ीदह है कि उसका वुजूद नामुतनाही है अज़ नज़रे इल्म व क़ुदरत,व अज़ नज़रे हयाते अबदीयत व अज़लीयत,इसी वजह से ज़मान व मकान में नही आता क्योँकि जो भी ज़मान व मकान में होता ...