शताब्दियो (सदियो) से शहर ख़ुनसार ने मानव समाज के लिए बड़े विद्वान, साहित्यिक और कलात्मक एवम स्थिर चेहरो को जन्म दिया है।
विद्वान (इल्मि) और मलाकूती चेहरे जैसे स्वर्गीय आयतुल्लाह अलउज़मा आक़ा हुसैन ख़ुनसारी (र.अ.), स्वर्गीय आयतुल्लाह अलउज़मा आक़ा जमाल ख़ुनसारी (र.अ.), स्वर्गीय आयतुल्लाह अलउज़मा आक़ा सैय्यद मुहम्मद तक़ी ख़ुनसारी (र.अ.), स्वर्गीय आयतुल्लाह अलउज़मा आक़ा सैय्यद अहमद ख़ुनसारी (र.अ.), एवम दूसरे हज़ारो विद्वान इरान के इसी शहर से संबंध रख़ते है।
विद्वान हुसैन अनसारीयान ने 18 आबान (ईरानी साल का नवां महीना) सन 1323 हि.शम्सी को इसी शहर ख़ुनसार में जन्म लिया।
आप के पिता हाज शेख़ के परिवार से थे। यह जाना पहचाना परिवार जिसने इस्लाम धर्म की बहुत ज़्यादा(बहुत अधिक) सेवा की है, इस परिवार में बड़े बड़े विद्वानो ने जन्म लिया जिनमे स्वर्गीय आयतुल्लाह शैख़ मूसा अनसारियान ख़ुनसारी(र.अ.) का इल्मि एवम धार्मिक व्यक्तिकल्ब विशेषज्ञो से ढका छिपा नही है, इसी परीवार से संबंध रख़ते थे।
स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी(र.अ.) का कथन हैः कि शियों की फिक़्ह में किताबुस्सलात (यानी नमाज़ के पाठ)में सब से अच्छी किताब आयतुल्लाह अनसारियान(र.अ.) की है उनकी दसियों किताबै मौजूद हैं लेकिन उनमें से एक किताब मुनयातुत्तालिब है जो नजफ के प्रसिद्ध विद्वान (आलिम) आक़ा नाईनी के भाषणों का नोट है जो आप के कठिन परिश्रम का परीणाम है।
नजफ़ शहर में आयतुल्लाह इस्फ़हानी के बाद अधिकतर उलमा आप ही को मुजतहिद मानते थे परन्तु आयु ने साथ नही दिया और आयतुल्लाह इस्फ़हानी से पहले ही आप की म्रत्यु हो गई।
प्रोफेसर अनसारियान की माता का परिवार, इसी शहर के मुस्तफवी सादात परिवार से संबंधित है आप (प्रोफेसर) के मातृ पूर्वज इस शहर के माने जाने और विश्वासनीय वयक्ति थे अधिकतर देखने में आया कि जब भी नजफ़ या क़ुम्म के विद्वानो (उलमा) में से कोई विद्वान (आलिम) ख़ुनसार शहर आता तो इनके घर ज़रूर आता।
प्रोफेसर अपने बचपन का क़िस्सा इस प्रकार बताते है कि जब वह 3 वर्ष के थे तो एक दिन आयतुल्लाह सैय्यद मुहम्मद तक़ी ख़ुनसारी (र.अ.) हमारे पूर्वज (दादा) के घर पधारे, मैने दरवाज़ा खोला और सीधा जाकर आयतुल्लाह की आलिंगन (गोद) मे बैठ गया। मेरे दादा जी के विरोध करने पर उनहोने मना किया और दुलार करते हुए मुझ से प्रश्न किया तुम भविष्य मे क्या बनना चाहते हो? मैने उत्तर दिया आप जैसा बनूगा तो उन्होने मेरे लिए प्रार्थना की।
जब कभी भी उस समय, ज्वलन्त (नूरानी) चेहरे और उनकी की हुई प्रार्थना का विचार मेरे मन मे आता है तो मै समझता हूँ कि वह मेरे जीवन का कितना सुन्दर क्षण था।
उस्ताद अनसारियान अभी 3 वर्ष के ही थे कि भाग्य से परिवार वाले तेहरान मे स्थानात्रित हो गये और उस शहर के एक धार्मिक महल्ले (ख़ुरासान मार्ग) मे जीवन व्यतीत करने लगे।
उस समय आदरणीय आयुल्लाह हाज शेख़ अली अकबर बुरहान (र.अ.)क्षेत्र के इल्नी दात्यिव को पूरा कर रहे थे, उस्ताद ने एसे ही शिक्षक से लाभ उठाया, और सदैव इस बात के प्रचारक है कि आज तक मैने विद्वानो (उलमा) मे से उनके समान किसी को नही देखा।
आयतुल्लाह बुरहान एक शिक्षित एवम स्वछंद (ज़ाहिद) मुजतहिद थे उस समय (उन दिनो) वह लुरज़ादेह मस्जिद मे नमाज़ पढाया करते थे। वह विद्वान (आलिम) मस्जिद को इस प्रकार चला रहे थे कि वृद्ध, किशोर एवम बच्चे सभी उसकी ओर खिचे हुऐ थे, इसी प्रकार उन्होने इसी क्षेत्र मे एक धार्मिक पाठशाला खोली जिसमे पहली कक्षा से ही विधार्थी ख़द उन्ही से शिक्षा ग्रहण करते थे।
उस्ताद अनसारियान स्वर्गीय बुरहान के बारे मे इस प्रकार कहते है कि मैने उनसे सभाओ और कक्षा मे कई बार सुना है कि वह नही चाहते, कि उनकी मृत्यु तेहरान मे हो और अंतिम संसकार (दफ्न) भी वही पर किया जाये, और सदैव प्रार्थना करते थे यहा तक शबे क़दर (पवित्र रमज़ान मास की विशेष रात्रि) मे भी परमेश्वर से यही प्रार्थना करते थे, परिणाम स्वरूप सन् 1338 (हि. शम्सी) 1959 मे जब मेरी आयु 14 वर्ष से अधिक नही थी, हज की तीर्थ यात्रा मे मरमेश्वर के घर (ख़ानए काबा) के समीप (नज़दीक) उनका निधन हो गया और वही जददा शहर मे हज़रत हव्वा (ईश्वरीय दूत हज़रद आदन की पत्नि) की क़ब्र के समीप उनका अंतिम संसकार किया गया।
उस नैतिकता के गुरू (उस्तादे अख़लाक़) के प्रकाशित मुखड़े के दर्शन, एवम उनके जीवन और स्वभाव के तरीक़ो से प्रभावित हुआ जैसा कि आज भी प्रोफेसर अपने ईश्वरीय अध्यापक के रिक्त स्थान को अपने अंदर महसूस करते है।
प्रोफेसर अनसारियान बचपन से ही ईश्वरीय चेहरो (जैसे खुनसार शहर के बड़े विदवान आयतुल्लाह सैय्यद मुहम्मद तक़ी ग़ज़नफ़रि {र.अ.})से परिचित थे। दूबारा अपने स्वर्गीय शिक्षक के एक वाक़िया का वर्णन करते हैं कि जो उस्ताद के आत्मिक और बुद्दिमान मनुष्यो के प्रति प्रेम व मुहब्बत को बयान करता हैः शुरु मे जब मे मैं धार्मिक पाठशाला (दीनी मदरसे) में आया और आयतुल्लाह ग़ज़न्फ़री इस से सूचित हुए तो उन्हों ने मेरे धार्मिक विधार्थी होने के संबंध मे मेरी ज़बरदस्त दावत की, जिस मे मेरे पिता के परीवार और महल्ले वालो को भी बुलाया।
जवानी मे ज्ञान की वादी मे क़दम रखने के अवसर पर ऐसे धर्मपरायण विद्वान की दावत ने मुझ पर बहुत ही उत्साहवर्धक प्रभाव डाला। धर्मपरायण विद्वान स्वर्गीय ग़ज़नफ़री का जीवन सरल था और शाह के शासन मे कई वर्षो तक ख़ुनसार शहर मे नमाज़े जुमा पढ़ाई।
उन देवता सिफ़त चेहरो मे से एक चेहरा स्वर्गीय आयतुल्लाह सैय्यद हुसैन अलवी (र.अ.) का था। स्वर्गीय अलवी ख़ुनसार के प्रसिद्ध मुजतहिदो मे से थे जो ख़ुनसार के ऊचाई के क्षेत्र वाली (उसताद की माता के परिवार के महल्ले की) मस्जिद मे नमाज़ पढ़ाते और शिक्षा देते जिसमे सैकड़ो इस्लामी विधार्थीयो ने आप से शिक्षा ली। जब नजफ़े अशरफ़ (ईराक़ का एक प्रसिद्ध धार्मिक शहर) से शिक्षा हासिल कर ख़ुनसार लौटे तो आपके शिक्षको ने अपने पत्रो मे मुजतहिद लिखा था।
फिर प्रोफ़ेसर से उनकी बाते सुनते है: जिस वर्ष मैने क़बा,अमामा पहना और अपने स्वर्गीय नाना सैय्यद मुहम्मद बाक़िर मुस्तफ़वी (र.अ.), नानी और अपने परिवार के लोगो से मिलने ख़ुनसार गया था तो रोड पर मुझ से परिचित किसी व्यक्ति ने देखकर मुझ से कहा: क्या तुम आदरणीय असदुल्लाह की मस्जिद मे 10 रात्रियो तक भाषण दे सकते हो? मैने उत्तर दिया हाँ, जब मै पहले दिन मस्जिद गया तो वहा स्वर्गीय आयतुल्लाह अलवी को बैठा देख कर मुझे आश्चर्य हुआ कि इतने बड़े विद्वान होकर मुझ जैसे का भाषण सुनने आये है, मैने मन मे विचार किया शायद जिसकी मस्जिद है उस से कोई संबंध हो परन्तु मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि वह प्रत्येक 10 भाषण (मजलिस) मे आये मेरे भाषणो मे उनका आना सिर्फ मेरा उत्साह बढ़ाने हेतु होता था।
उनही मे से एक आयतुल्लाह हाजी सैय्यद मुहम्मद अली इब्नुर्रेज़ा ख़ुनसारी (दामत बरकातोह) है कि जिनके साथ रिश्तेदारी के नाते प्रोफ़ेसर का बचपने से उनके साथ उठ बैठ थी इस आलिम के प्रति प्रोफ़ेसर इस प्रकार विचार बयान करते है: कि मैने बचपने ही से इब्नुर्रेज़ा ख़ुनसारी (दामत बराकातोह)मे एक चीज़ देखी कि ज्ञान मे आगे समाज मे साहिबे हैसियत है वह मेरे ह्रदय मे बैठ गया, प्रत्येक बृहस्पतिवार को इशा की नमाज़ के पशचात ज़ियारते वारेसा (हज़रत अबाअब्दिल्लाहिल हुसैन {अ.स.}) खड़े खड़े रोते हुए लोगो के लिए पढ़ा करते थे इस विद्वान के हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) से इस प्रकार के संबंध ने मेरे उपर प्रभाव करने के पश्चात मेरे अन्दर नई जान डाल दी।
जिन लोगो से प्रोफ़ेसर के गहरे संबंध रहे है उनमे से एक स्वर्गीय इलाही क़ुमशेई (र.अ.) जिनके नैतिकता के पाठयक्रम (दरसे अख़लाक़) से बहुत अधिक सीख मिली है।
इन कारको (अवामिल) का संग्रह (परिवारी कारक और नैतिकता के कोच) कारण हुआ के उस्ताद ने हाई स्कूल के पश्चात धार्मिक पढ़ाई के लिए स्वर्गीय इलाही क़ुमशेई (र.अ.) से परार्मश के उपरान्त धार्मीक पाठशाला मे प्रवेश किया।
उस्ताद ने तेहरान और क़ुम के दो शिक्षालयो मे शिक्षा ग्रहण की तेहरान मे अरबी ग्रामर पढ़ी ग्रामर ख़त्म करके आयतुल्लाह मिर्ज़ा अली फ़लसफ़ी दामत बरकातोह जो उस समय लुरज़ादेह मस्जिद मे नमाज़ पढ़ाया करते थे उनसे मआलेमुल ओसूल किताब विशेष रूप से पढ़ाने का आग्रह किया ऐसे अनूठे विद्वान (कमनज़ीर आलिम) (कि जिनकी गिनती उन लोगो मे होती है कि जिनके लिए स्वर्गीय आयतुल्लाह अबुल क़ासिम ख़ुई (र.अ.) ने लिखित रूप मे इजतेहाद का दरजा दिया है) ने उस्ताद के निवेदन को स्वीकार कर लिया और आप ने उनके पास लुमआ के दो भाग और मआलिम समाप्त करके आयतुल्लाह फ़लसफ़ी दामत बरकातोह से क़ुम विश्वविघालय (होज़ए इल्मिया क़ुम) जाने की अनुमति मांगी। आयतुल्लाह फ़लसफ़ी ने उत्साह बढ़ाते हुए आप को गले लगाया और जब आपने सदुपदेश देने को कहा तो आयतुल्लाह फ़लसफ़ी ने पवित्र पैग़म्बर रसूले ख़ुदा (स.अ.व.अ.व.)की एक हदीस सुनाई (मन काना लिल्लाहे कानल्लाहो लहू) जो परमेश्वर के काम आऐगा परमेश्वर उसके काम आऐगा, प्रोफ़ेसर अनसारियान कहते है कि उस दिन से आज तक मेरा प्रयास रहा कि उनके आदेश का पालन करूँ और सदैव परमेश्वर के साथ रहूँ और मैने देखा भी कि मेरे पूरे जीवन मे परमेश्वर मेरे साथ है हाँ निश्चित रूप से, जो भी परमेश्वर के साथ रहेगा परमेश्वर भी उसके साथ रहेगा।
प्रोफ़ेसर का क़ुम विश्वविघालय (हौज़ए इलमिया क़ुम) मे भी तेहरान की तरह प्रयास रहा कि परमेश्वर के भक्तो के साथ रहै इसीलिए आप स्वर्गीय आयतुल्लाह हाज शेख अब्बास तेहरानी (र.अ.) के पास जाते थे और उनसे सम्पूर्ण लाभ उठाते थे।
भाषणो मे खुद उनकी और छात्रो की आँखो से आँसू जारी रहते थे।अंत मे स्वर्गीय आयतुल्लाह हाज अब्बास तेहरानी (र.अ.) के हाथो अमामा क़बा (यह एक प्रकार का विशेष पहनावा है) जैसा रूहानी वस्त्र पहना और अपनी शिक्षा को जारी रखा।
रसाइल, मकासिब और केफ़ाया (धार्मिक पुस्तको के नाम) आयतुल्लाह एतेमादी, स्वर्गीय आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकरानी, आयतुल्लाह सालेही नजाफ़ाबादी एवम आयतुल्लाह सानेई जैसे अनमोल विद्वानो से शिक्षा ग्रहण की।
इन किताबो की समाप्ती के पश्चात फ़िक़्ह (आदेश) ओसूल (सिध्दांतो) के विषयो मे इजतेहाद (एक डिग्री है) हेतु दर्से ख़ारिज (पाठयक्रम से बाहर, जिसमे आयतुल्लाह किसी मसले मे दूसरे विद्वानो के स्पष्टीकरण पर टिप्पणी करके उसका वर्णन करता है) मे गऐ इस मैदान मे भी स्वर्गीय आयतुल्लाह सैय्यद मुहम्मद मुहक़्क़िक़ दामाद (र.अ.), स्वर्गीय आयतुल्लाह मुनतज़ेरी (र.अ.), स्वर्गीय आयतुल्लाह शेख अबुलफ़ज़्ल नजफ़ी (र.अ.), और विशेष रूप से कई वर्षो तक स्वर्गीय आयतुल्लाह अलउज़मा हाज मिर्ज़ा हाशिम आमुली (र.अ.) जैसे महान धर्म गुरूओ (फ़ुक़्हा) से लाभ उठाया। उस्ताद के उन दिनो के पठन (पढ़ाई) का परिणाम स्वर्गीय आयतुल्लाह अलउज़मा हाज मिर्ज़ा हाशिम आमुली (र.अ.) फ़िक़्ह एवम ओसूल के भाषणो का नोट जिसको आप ने एकत्रित किया है। और दूसरे विषय जैसे हिकमत की आयतुल्लाह गिलानी से और इल्मे मआनी व बयान की तेहरान मे आदरणीय हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलेमीन जवादी से शिक्षा ली।
वर्णनीय है कि उस्ताद ने इतने प्रयासो के पश्चात स्वर्गीय आयतुल्लह मिलानी (र.आ.), स्वर्गीय आयतुल्लाह अख़ुन्द हमादानी (र.अ.), स्वर्गीय आयतुल्लाह क़ुमरेई (र.अ.), स्वर्गीय आयतुल्लाह अलउज़मा हाज सैय्यद मुहम्मद रज़ा गुलपाएगानी (र.अ.), स्वर्गीय आयतुल्लाह सैय्यद अहमद ख़ुनसारी (र.अ.), स्वर्गीय आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी (र.अ.), और स्वर्गीय आयतुल्लाह अलउज़मा इमाम ख़ुमैनी (र.अ.) जैसे विद्वानो और धर्म गुरूओ से रेवाई आज्ञा पत्र (इजाज़ऐ इजतेहाद) प्राप्त किया।
प्रोफ़ेसर ने धर्मशास्त्र और विश्वविधालय (हौज़ए इल्मिया) की अंतिम डिग्रीया प्राप्ति एवम हौज़ए इल्मिया के महान अध्यापको से लाभ उठाने के पश्चात अपने मुख्य उद्देश्य तक पहुचने के लिए जो कि एक धार्मिक छात्र के लिए आवश्यक है वह रिसर्च करना, किताब लिखना और धर्म का प्रचार करना है, हौज़ए इल्मिया क़ुम से लौट आए और आज तक चालीस वर्षो से अधिक, और लगभग तीस हज़ार घंटे देश और विदेश मे भाषणो के माध्यम से अपने दिव्य कर्तव्यो की सेवा कर रहे है।
आप के भाषणो की छह (6) हज़ार कैसिटे बिना दोहराए और 80 विषय से अधिक 128 प्रतिया पुस्तके जो प्रोफ़ेसर के विवश होकर तेहरान मे निवास का परीणाम है।
प्रोफ़ेसर की फारसी रचनाए
1. क़ुरआन करीम का अनुवाद।
2. नहजुल बलाग़ाह का अनुवाद।
3. सहीफ़ाए सज्जादिया का अनुवाद।
4. मफ़ातीहुल जेनान का अनुवाद एवम पुनर्लेखन।
5. शरहे दुआए कुमैल (दुआए कुमैल का वर्णन 2 भाग, पुर्नमुद्रण) ।
6. अहलेबैत (अ.स.) अरशियाने फ़रश नशीन।
7. मुआशरत (समाजशीलता) ।
8. जलवेहाई रहमते इलाही (इलाही रहमत के जलवे)।
9. फ़रहन्गे महरोज़ी (प्यार की संस्कृति) ।
10. इबरत आमूज़ ।
11. ज़ीबाइ हाई अख़लाक़ (सुंदर नैतिकता)।
12. तोबा आग़ोशे रहमत (पश्चताप दया की आलंगन)।
13. बर बाल अन्देशे (सोच के पंखो पर) भाग 1 ।
14. बर बाल अन्देशे (सोच के पंखो पर) भाग 2 प्रेस मे।
15. बा कारवाने नूर (प्रकाश के कारवान के साथ) ।
16. सीमाए नमाज.(नमाज. के बरकात)।
17. लुक़मान हकीम।
18. फ़ोरूग़ी अज़ तरबीयते इस्लामी (इस्लमी शिक्षा से प्रकाश की कड़ियाँ)।
19. रसाइले हज (हज-मक्का की तीर्थ यात्रा पर ग्रंथ)।
20. दीवाने मिसकीन (इरफ़ानी- रहस्मय दोहो का संग्रह)।
21. पुरसिशहा वा पासुख़हा (प्रश्नोत्तर) पाँच भाग, प्रेस मे है।
22. निज़ामे ख़ानवादे दर इसलाम (इसलाम मे परिवार की प्रणाली)।
23. मुनिसे जान (प्रियतम)।
24. इरफ़ाने इस्लामी (मिसबाहुश्शरीया का वर्णन) – (इस्लामी रहस्यवाद ) 15 भाग, पुर्नमुद्रण।
25. दयारे आशेक़ान (सहीफ़ए सज्जादिया का स्पष्टीकरण और वर्णन) - (प्रेमियो की भूमि) 15 भाग, पुर्नमुद्रण।
26. सैरी दर मआरिफ़े इस्लाम, (इस्लामी शिक्षाओ का सर्वेक्षण) भाग 1, अक़ल किलीदे गंजे सआदत (बुध्दि ख़ुशी के ख़ज़ाने की कुंजी)।
27. सैरी दर मआरिफ़े इस्लाम, (इस्लामी शिक्षाओ का सर्वेक्षण) भाग 2, अक़ल महरमे राज़े मलाकूत (बुध्दि स्वर्ग की गुप्त विश्वासपात्र)।
28. सैरी दर मआरिफ़े इस्लाम, (इस्लामी शिक्षाओ का सर्वेक्षण) भाग 3, हदीसे अक़ल वा नफ़्स (बुध्दि और आत्मा पर परीचर्चा)।
29. मजमूअए सुख़नरानीहाई मौज़ूई (22 विषयो पर आयोजित व्याख्यान का संग्रह)।
30. इस्लाम वा कारवान वा कोशिश (इस्लाम, कार्य और प्रयास)।
31. इस्लाम वा इल्म वा दानिश (इस्लाम, ज्ञान और शिक्षा)।
32. इमाम हसन इब्ने अली (अलैहिस्सलाम) रा बेहतर बेशनासीम (इमाम हसन पुत्र अली को भलीभांती पहचाने)।
33. मानवयत, असासीतरीन नियाज़े असरे मा (आध्यमिकता हमारे समय की सबसे बड़ी आवश्यकता)।
34. बे सुए क़ुरान वा इसलाम (क़ुरआन और इस्लाम के प्रति)।
35. मरज़े रोशनाई (प्रकाश की सीमा – गज़ल का संग्रह)।
36. मुनाजाते आरेफ़ान (रहस्यवादीयो की प्रार्थनाएं - शेरो का संग्रह)।
37. चश्मए सार इश्क़ (प्यार के फ़व्वारे – शेरो का संग्रह)।
38. गुलज़ारे मुहब्बत (प्रेम का बग़ीचा – शेरो का संग्रह)।
39. इबरतहाई रोज़गार (समय से सीख)।
40. नसीमे रहमत (दया की हवा)।
41. अख़लाक़े ख़ूबान (सज्जनो के नैतिक)।
42. दर बारगाहे नूर (प्रकाश की दहलीज़ पर)।
43. चहल हदीसे हज (मक्का की तीर्थ यात्रा की चालीस हदीसे)।
44. हज वादीए अमन (मक्का की तीर्थ यात्रा, सुरक्षा की भूमि)।
45. चेहरेहाई महबूब वा मनफ़ूरे क़ुरान (क़ुरआन मे लोकप्रिय एवम घिनौने चेहरे)।
46. अदब वा आदाबे ज़ायिर (तीर्थयात्रियो के संस्कार)।
47. राही बेसूए अख़लाक़े इसलामी (इस्लामी आचार दिशा मे एक पथ)।
48. विलायत व रहबरि अज़ दीदगाहे नहजुल बलाग़ा (नहजुल बलाग़ा की दृष्टिकोण से नेतृत्व और विलायत)।
49. मजमूआए मक़ालात (लेखो का संग्रह)।
50. ऊबूदीयत (प्रस्तुतिकरण, आज्ञानकलता)।
51. शफ़ा दर क़ुरआन (क़ुरआन मे चिकित्सा)।
52. नफ़्स (आत्मा)।
53. तक़रीराते दरसे मरहूम आयतुल्लाह अलउज़मा हाज मिर्ज़ा हाशिम आमुली (र.अ.) (स्वर्गीय शिया धर्म गुरू मिर्ज़ा हाशिम आमुली के ब्याख्यानो पर लिया एनोटेशन)।
54. तक़रीराते दरसे ख़ारिज मरहूम हाज शेख अबुलफ़ज़्ल नजफ़ी ख़ुनसारी (र.अ.) (स्वर्गीय शिया धर्म गुरू हाजी शेख अबुलफ़ज़्ल नजफ़ी ख़ुनसारी के ब्याख्यानो पर लिया एनोटेशन)।
55. सैरी दर मआरिफ़े इसलामी (18 भाग मजमूअए सुख़नरानीहाई मोज़ूई) (इस्लामी शिक्षाओ का सर्वेक्षण 18 भाग, विशेष विषयो पर आयोजित व्याख्यान का संग्रह ।
प्रोफ़ेसर अनसारियान की दूसरी भाषाओ मे अनुवाद हुई रचनाऔ की सूची इस प्रकार है।
1. बा कारवाने नूर (अंग्रेज़ी)।
2. निज़ामे ख़ानवादे दर इस्लाम (इसलाम मे परिवार की प्रणाली) (अंग्रेज़ी)।
3. निज़ामे ख़ानवादे दर इस्लाम (इसलाम मे परिवार की प्रणाली) (उर्दू)।
4. निज़ामे ख़ानवादे दर इस्लाम (इसलाम मे परिवार की प्रणाली) (रूसी)।
5. निज़ामे ख़ानवादे दर इस्लाम (इसलाम मे परिवार की प्रणाली) (तुर्की इसतामबुली)।
6. निज़ामे ख़ानवादे दर इस्लाम (इसलाम मे परिवार की प्रणाली) (अरबी)।
7. शरहे दुआए कुमैल (दुआए कुमैल का वर्णन) (अरबी)।
8. शरहे दुआए कुमैल (दुआए कुमैल का वर्णन) (उर्दू)।
9. शरहे दुआए कुमैल (दुआए कुमैल का वर्णन) (अंग्रेज़ी)।
10. तोबा आग़ोशे रहमत (पश्चताप दया की आलंगन) (अरबी)।
11. तोबा आग़ोशे रहमत (पश्चताप दया की आलंगन) (अंग्रज़ी)।
12. तोबा आग़ोशे रहमत (पश्चताप दया की आलंगन) (इसतामबुली)।
13. तोबा आग़ोशे रहमत (पश्चताप दया की आलंगन) (उर्दू)।
14. लुक़मान हकीम (उर्दू)।
15. दयारे आशेक़ान (अंग्रेज़ी) 2 भाग।
16. अहलेबैत (पवित्र पैग़म्बर के परीवार वाले) (उर्दू)।
17. अहलेबैत (पवित्र पैग़म्बर के परीवार वाले) (अरबी)।
18. अहलेबैत (पवित्र पैग़म्बर के परीवार वाले) (अंग्रज़ी)।
19. अहलेबैत (पवित्र पैग़म्बर के परीवार वाले) (रूसी)।
20. मुआशेरत (समाजशीलता) (अरबी, उर्दू, अंग्रेज़ी)।