इस्लाम से पहले ,अबुसुफ़यान (यज़ीद का दादा) जिहालत की मान्यताओं, बुत परस्ती व शिर्क का सबसे बड़ा समर्थक था।
जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने बुत परस्ती और समाज में फैली बुराईयों को दूर करने का काम शुरू किया, तो अबु सुफ़यान को हार का सामना करना पड़ा।
अबुसुफ़यान, उसकी बीवी व उसके बेटे जहाँ तक हो सकता था पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को दुखः पहुँचाते रहे।
उन्होंने इस्लाम को मिटाने के लिए जंगे बद्र व ओहद की नीव डाली।
जंगे बद्र में अबुसुफ़यान के तीन बेटे इस्लाम की मुख़ालेफ़त में लड़े, मुआविया, हनज़ला व अम्र, हनज़ा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हाथों क़त्ल हुआ, अम्र क़ैदी बना और मुआविया मैदान से भाग गया था।
यह जब मक्के पहुँचा तो इसके पैर भागने की वजह से इतने सूज गये थे कि इसने दो महीने तक अपना इलाज कराया था। अबु सुफ़यान की बीवी जंगे ओहद के ख़त्म होने के बाद मैदान में आयी।
इस्लामी शहीदों के गोश्त के टुकड़ों को जमा करके उनसे हार बनाया और अपने गले में पहना। पैग़मेबरे इस्लाम (स.) के चचा हज़रत हमज़ा अलैहिस्सलाम के मुर्दा ज़िस्म से उनके कलेजे को निकाल कर चबाने की कोशिश की।
फ़तहे मक्का के बाद इसी अबु सुफ़यान व इसकी बीवी ने क़त्ल होने से बचने के लिए ज़ाहिरी तौर पर इस्लाम क़बूल कर लिया।
मगर पूरी जिन्दगी उन दोनों के दिलों से इस्लाम दुश्मनी न निकल सकी और वह इसी हालत में मर गये।
उन दोनों के बाद उनका बेटा मुआविया इस्लाम की जड़ों को काटने, इस्लाम की शक्ल को बदलने, जिहालत के निज़ाम और बनी उमैय्यह की रविश को फिर से ज़िन्दा करने की कोशिशे करता रहा।
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