Hindi
Monday 25th of November 2024
0
نفر 0

ख़िलाफ़त पर फ़ासिद लोगों का क़ब्ज़ा

उम्मत की इमामत व रहबरी एक पाको पाकीज़ा व इलाही ओहदा है, यह ओहदा हर इंसान के लिए नही है। लिहाज़ा इमाम में ऐसी सिफ़तों का होना ज़रूरी है जो उसे अन्य लोगों से मुमताज़(श्रेष्ठ) बनायें ।

अक़्ल व रिवायतें इस बात को साबित करती हैं कि इमामत व ख़िलाफ़त का मक़सद समाज से बुराईयों को दूर कर के अदालत (न्याय) को स्थापित करना और लोगों के जीवन को पवित्र बनाना है। यह उसी समय संभव हो सकता है जब इमामत का ओहदा लायक़, आदिल व हक़ परस्त इंसान के पास हो। कोई समाज उसी समय अच्छा व सफ़ल बन सकता है जब उसके ज़िम्मेदार लोग नेक हों। इस बारे में हम आपके सामने दो हदीसे पेश कर रहे हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया कि दीन को नुक़्सान पहुँचाने वाले तीन लोग हैं, बे अमल आलिम, ज़ालिम व बदकार इमाम और वह जाहिल जो दीन के बारे में अपनी राय दे।

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से रिवायत की है कि आपने फ़रमाया कि दो गिरोह ऐसे हैं अगर वह बुरे होंगे तो उम्मत में बुराईयाँ फैल जायेंगी और अगर वह नेक होंगे तो उम्मत भी नेक होगी। आप से पूछा गया कि या रसूलल्लाह वह दो गिरोह कौन हैं ? आपने जवाब दिया कि उम्मत के आलिम व हाकिम।

मुहम्मद ग़िज़ाली मिस्री ने बनी उमैय्याह के समय में हुकूमत में फैली हुई बुराईयों को इस तरह बयान किया है।

ख़िलाफ़त बादशाहत में बदल गयी थी।

हाकिमों के दिलों से यह एहसास ख़त्म हो गया था, कि वह उम्मत के ख़ादिम हैं। वह निरंकुश रूप से हुकूमत करने लगे थे और जनता को हर हुक्म मानने पर मजबूर करते थे।

कम अक़्ल, मुर्दा ज़मीर, गुनाहगार, गुस्ताख़ और इस्लामी तालीमात से ना अशना लोग ख़िलाफ़त पर क़ाबिज़ हो गये थे।

बैतुल माल (राज कोष) का धन उम्मत की ज़रूरतों व फ़क़ीरों की आवश्यक्ताओं पर खर्च न हो कर ख़लीफ़ा, उसके रिश्तेदारों व प्रशंसको की अय्याशियों पर खर्च होता था।

तास्सुब, जिहालत व क़बीला प्रथा जैसी बुराईयाँ, जिनकी इस्लाम ने बहुत ज़्यादा मुख़ालेफ़त की थी, फिर से ज़िन्दा हो उठी थीं। इस्लामी भाई चारा व एकता धीरे धीरे ख़त्म होती जा रही थी। अरब विभिन्न क़बीलों में बट गये थे। अरबों और अन्य मुसलमान के मध्य दरार पैदा हो गयी थी। बनी उमैय्याह ने इसमें अपना फ़ायदा देखा और इस तरह के मत भेदों को और अधिक फैलाया, एक क़बीले को दूसरे क़बीले से लड़ाया। यह काम जहाँ इस्लाम के उसूल के ख़िलाफ़ था वहीं इस्लामी उम्मत के बिखर जाने का कारण भी बना।

चूँकि ख़िलाफ़त व हुकूमत ना लायक़, बे हया व नीच लोगों के हाथों में पहुँच गई थी लिहाज़ा समाज से अच्छाईयाँ ख़त्म हो गयी थीं।

इंसानी हुक़ूक (आधिकारों) व आज़ादी का ख़ात्मा हो गया था। हुकूमत के लोग इंसानी हुक़ूक़ का ज़रा भी ख़्याल नही रखते थे। जिसको चाहते थे क़त्ल कर देते थे और जिसको चाहते थे क़ैद में डाल देते थे। सिर्फ़ हज्जाज बिन यूसुफ़ ने ही जंग के अलावा एक लाख बीस हज़ार इंसानों को क़त्ल किया था।

अखिर में ग़ज़ाली यह लिखते हैं कि बनी उमैय्याह ने इस्लाम को जो नुक़्सान पहुँचाया वह इतना भंयकर था, कि अगर किसी दूसरे दीन को पहुँचाया जाता तो वह मिट गया होता।


source : http://alhassanain.com
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

वुज़ू के वक़्त की दुआऐ
वहाबियत, वास्तविकता व इतिहास-2
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का ...
ख़ुतब ए फ़िदक का हिन्दी अनुवाद
क़ासिम इबने हसन (अ)
वहाबियत, वास्तविकता और इतिहास-7
संसार की सर्वश्रेष्ठ महिला हज़रत ...
यमन में अमरीका, इस्राइल और सऊदी ...
इमाम सज्जाद अलैहिस्लाम के विचार
पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत

 
user comment