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अशीष पर शुक्र अदा करना

अशीष पर शुक्र अदा करना

लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान

                                                                               

किताब का नाम: तोबा आग़ोशे रहमत

 

जैसे कि हमने इस से पूर्व कहा था कि शुक्र के तीन मूल है वह निम्न लिखित है।

प्रथम: नेमत प्रदान करने वाले की पहचान और उन विशेषताओ की पहचान जो उसके योग्य है, और आशीष (नेमत) की पहचान, और यह हक़ीक़त कि यह सारी गुप्त और प्रकट नेमतै उसी की ओर से है। हक़ीक़ी परोपकारी उसके अलावा कोई दूसरा नही है, मनुष्य और आशीषो (नेमतौ) के बीच सभी माध्यम उसके आदेश से उसी के क़ब्ज़े मे है।

द्धितीय: एक हालत का अहसास है और हाल का अर्थ है परोपकारी के एहसान के सामने अधीनता और विनम्रता, कि यह सारी नेमतै (एहसास) परमेश्वर की ओर से मानव के लिए उपहार है कि जो मनुष्य के वजूद पर परोपकारी की कृपा की निर्देशिका (दलील) है, और हाल की निशानी यह है कि भौतिक मामलो के बारे मे प्रसन्न न हो सिवाय इसके जो तुम्हे परमेश्वर से निकट करने का कारण हो।

तृतीय:अमल (कार्य) है। अमल तीन चरणो ह्रदय, ज़बान और अंगो से प्रकट करना चाहिए।

ह्रदय का अमल, परमेश्वर की स्तुति और        

शुक्र का प्रकट करना, और धन्यवाद, तसबीह और विशलेषण (तहलील) एवं अच्छे कामो का आदेश और बुरे कामो से रोकना ज़बान का काम है।

पूजा और आज्ञाकारिता मे गुप्त एवं प्रकट नैमतो का लागू करना, और उनकी पाप एवं परमेश्वर की अस्विकृति (मुखालफ़त) से रक्षा करना अंगो का काम है।

इसका अर्थ है कि यह शुक्र का वास्तविक अर्थ है, यह स्पष्ट हो गया कि शुक्र पूर्णता की विशेषताओ से है, और यह पूर्ण रूप से आशीष वालो मे बहुत कम मिलता है, जैसा कि क़ुरआन कहता है:

وَقَلِيلٌ مِنْ عِبَادِىَ الشَّكُورُ

वक़लीलुम मिन इबादीयश्शकूरु[1]

शुक्र का मतलब इस प्रकार सभी आशीषो के मुक़ाले मे बौधिक और धार्मिक आधार पर आवश्यक है, और हर आशीष का उसके मार्ग मे उपयोग करना जिसका परमेश्वर ने आदेश दिया है उस आशीष का शुक्र है, शुक्र के समपन्न होने से ही वास्तव मे परमेश्वर की पूजा और पूर्ण दासता समपन्न होती है।

فَكُلُوا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّهُ حَلاَلاً طَيِّباً وَاشْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ إِن كُنتُم إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ

फ़कुलू मिम्मा रज़क़कोमुल्लाहो हलालन तय्येबा वशकुरू नैमतिल्लाहे इनकुन्तुम इय्याहो तअबुदून[2]

पवित्र और हलाल चीज़ो मे से परमेश्वर ने जो तुम्हे दिया है उसका प्रयोग करो और परमेश्वर की आशीषो (नैमतो) पर उसका शुक्र (धन्यवाद) करो, यदि वास्तव मे, ईश्वर के दास हो।

                                              . . .فَابْتَغُوا عِندَ اللَّهِ الرِّزْقَ وَاعْبُدُوهُ وَاشْكُرُوا لَهُ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ               

... फ़ब्तग़ू इन्दल्लाहिर्रिज़्क़ा वबुदूहु वश्कुरूलहू इलयहि तुरजऊन[3]

रोज़ी को ईश्वर से मांगो और उसकी पूजा और शुक्र करो; तुम्हारी वापसी उसी की ओर है।

इमाम सादिक़ (अ.स.) ने शुक्र के अर्थ मे इस प्रकार कहा है:

شُكْرُ النِّعْمَةِ اجْتِنابُ المَحارِمِ وَتَمامُ الشُّكرِ قَولُ الرَّجُلِ : الحَمْدُ للهِ رَبِّ العَالَمِينَ

शुक्रुन्नेमते इजतेनाबुल महारिमे वतमामुश्शुक्रे क़ोलुर्रजोले अलहमदो लिल्लाहे रब्बिलआलामीन[4]

सभी अवैध वस्तुओ से दूरी करना और मनुष्य का कथन अलहमदो लिल्लाहे रब्बिलआलामीन (सारी प्रशंसा उस ईश्वर के लिए है जो ब्राहमाण का पालनहार है) आशीष पर शुक्र है।

इस आधार पर, पूजा और आज्ञाकारिता, लोगो की सेवा, उनपर एहसान और उनके साथ अच्छाई करना एंव सभी प्रकार के पापो से दूरी करना, आशीष (नैमत) पर शुक्र करना है।



[1] सूरए सबा 34, आयत 13

[2] सुरए नहल 16, आयत 114

[3] सूरए अंकबूत 29, आयत 17

[4] काफ़ी, भाग 2, पेज 95, पाठ शुक्र, हदीस 10; बिहारुल अनवार, भाग 68, पेज 40, पाठ 61, हदीस 29

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