लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने का अल्लाह तआला ने हुक्म दिया है और अल्लाह के पैग़म्बरों की भी एक ज़िम्मेदारी थी कि समाज में मतभेदों को दूर करते हुए शांति बनाए रखें और इस रास्ते में किसी भी कोशिश से वह पीछे नहीं रहे।
अल्लाह तआला ने सूरा-ए-बक़रा की आयत नं 27 में उन लोगों के बारे में जो सम्बंध तोड़ते हैं, फ़रमाता हैः फ़ासिक़ (गुनहगार व भ्रष्ट) वह लोग हैं जो अल्लाह के वचन को पक्का हो जाने के बाद तोड़ते हैं और जिन रिश्तो कों अल्लाह ने मज़बूत बनाए रखने का हुक्म दिया है उन्हें तोड़ते हैं और ज़मीन पर उपद्रव करते हैं, निस्चित रूप से यह लोग घाटा उठाने वालों में से हैं।
रसूले इस्लाम स.अ. लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराने के बारे में फ़रमाते हैं क्या में तुम्हें ऐसी चीज़ के बारे में न बताऊं जो नमाज़, रोज़े और ज़कात से ज़्यादा श्रेष्ठ है, और वह काम लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराना है, चूंकि लोगों के बीच रिश्तों में दूरी पैदा होना घातक, जानलेवा और दीन से दूरी का कारण बनता है। (कंज़ुल उम्माल 5480, मुंतख़ब मीज़ानुल हिक्मा 324)।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि जब लोगों के बीच मतभेद पैदा हो जाये और आपस में दूरियां पैदा हो जाएं, ऐसा सदक़ा है जिसे अल्लाह तआला पसंद करता है।(अल-काफ़ी 2/209/1,मुंतख़ब मीज़ानुल हिक्मा 324)।
अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम, अपने बेटे इमाम हसन अ. को सम्बोधित करते हुए फ़रमाते हैं कि मैंने रसूले इस्लाम स.अ. से सुना है कि लोगों के बीच सुलह सफ़ाई कराना एक साल की मुस्तहब नमाज़ों और रोज़ों से बेहतर है। (नहजुल बलाग़ा वसीयत 47)।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम भी फ़रमाते हैं कि .........अल्लाह उस पर रहमत नाज़िल करे जो हमारे दो दोस्तो के बीच सुलह सफ़ाई कराए, ऐ मोमिनों आपस में दोस्त रहो और एक दूसरे से मुहब्बत करो। (उसूले काफ़ी, 72, पोज 187)।
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