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इस्लामी संस्कृति व इतिहास-2

इससे पहले वाली कड़ी में हमने बताया कि मानव संस्कृति में इस्लामी सभ्यता व संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पूरे इतिहास में विदेशियों ने इस्लामी सभ्यता की महान व बड़ी-२ उपलब्धियों की अनदेखी करके मुसलमान विद्वान व वैज्ञानिकों की कुछ खोजों को अपनी खोज बताने का प्रयास किया है। हमने पहले वाले कार्यक्रम में कुछ उन तत्वों व बातों की ओर संकेत किया था जिनकी इस्लामी सभ्यता के गठन में भूमिका रही है। हमने बताया था कि विभिन्न संस्कृतियों एवं जातियों के लोगों ने ईश्वरीय धर्म इस्लाम स्वीकार किया और इस धर्म ने हर प्रकार के भेदभाव और अंध विश्वास से दूर रहकर लोगों के लोक-परलोक के मामलों को समन्वित करने के लिए महान सभ्यता की आधार शिला रखी। आज के कार्यक्रम में हम कुछ उन दूसरे तत्वों के बारे में चर्चा करेंगे जिनकी इस्लामी सभ्यता व संस्कृति के उतार- चढ़ाव में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

 इस्लामी सभ्यता की एक महत्वपूर्ण विशेषता व मापदंड नैतिकता एवं अध्यात्म है। लेबनान के ईसाई लेखक जुर्जी ज़ैदान लिखते हैं" मदीना में प्रवृष्ट होने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम का सबसे पहला लाभदायक व महत्वपूर्ण क़दम, यह था कि उन्होंने मक्का और मदीना के मुसलमानों के बीच बंधुत्व व मित्रता का समझौता कराया।  मक्का से मदीना पलायन करने वाले मुसलमानों और पहले से मदीना में रहने वाले मुसलमानों के मध्य बंधुत्व का समझौता कराना एकता की दिशा में इस्लाम का पहला क़दम था जिसे पैग़म्बरे इस्लाम के आदेश व सुझाव पर किया गया। जुर्जी ज़ैदान के अनुसार उसी समय से मुसलमानों ने नैतिकता एवं आध्यात्म पर बल देकर इस्लाम धर्म के क़ानूनों को मान्यता एवं महत्व दिया और नैतिकता व अध्यात्म पर इस्लामी सभ्यता की बुनियाद रखी।

धर्म और नैतिकता का संस्कृति एवं सभ्यता से संबंध है और यह संस्कृति व सभ्यता के विकास में प्रभाव रखते हैं। वर्तमान समय के अधिकांश विचारक इस बात पर एकमत हैं कि पश्चिमी सभ्यता यद्यपि विज्ञान और उद्योग की दृष्टि से चरम बिन्दु पर है परंतु इस सभ्यता में नैतिकता का न केवल यह कि उस सीमा तक विकास नहीं हुआ है बल्कि वह पतन के मार्ग पर है। आज बहुत से विचारकों का विश्वास है कि पश्चिमी सभ्यता नैतिकता एवं आध्यात्म पर ध्यान न देने के कारण पतन की ओर जा रही है।

अमेरिकी लेखक Buchanan j. Patrick अपनी किताब west death में इस बात को लिखते हैं कि क्यों वह समाज विखंडित एवं मृत्यु के कगार पर है, जो वैज्ञानिक दृष्टि से प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है?

विशेषज्ञों ने पश्चिमी सभ्यता के पतन के संदर्भ में विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किये हैं। पुनर्जागरण के बाद पश्चिम में फैली विचारधारा तीन स्तंभों पर आधारित थी। प्रथम मनुष्य, दूसरे उदारवाद और तीसरे सेकुलरिज़्म। पहली धारणा के अनुसार मनुष्य एक स्वतंत्र व स्वाधीन प्राणी है, परलोक से उसका कोई संबंध नहीं है और उसे ईश्वरीय मार्ग दर्शन की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके अतिरिक्त पश्चिमी संस्कृति व सभ्यता लिब्रालिज़्म पर विश्वास और केवल व्यक्तिगत हितों के महत्व के दृष्टिगत नैतिक एवं आध्यात्मिक सिद्धांतों का इंकार करती है। इस बात में संदेह नहीं है कि इन सिद्धांतों का इंकार, पश्चिमी समाज में किसी प्रकार की रोक- टोक न होने का परिणाम है। पश्चिमी सभ्यता की एक विशेषता व आधार सेकुलरिज़्म या भौतिकवाद और इसके परिणाम में क़ानून और सामाजिक कार्यक्रम बनाने के क्षेत्रों में धर्म का इंकार किया जाता है। आज पश्चिमी सभ्यता पर लिब्रालिज़्म, भौतिकवाद और मनुष्य को मूल तत्व के रूप में मानने वाली विचार धारा का बोलबाला है जो मनुष्य के जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित कर रही है। अमेरिकी लेखक Buchanan इस प्रश्न के उत्तर में कि क्यों वह संस्कृति असहनीय हो गई है जिसका पश्चिम दम भरता है? कहते हैं" यह सभ्यता नैतिकता एवं आध्यात्म से विरोधाभास रखने और पारम्परिक व धार्मिक हस्तियों के साथ इस संस्कृति के क्रिया- कलापों के कारण घृणा का पात्र बन गयी है। वास्तव में पश्चिमी सभ्यता पर जिस सोच का बोलबाला है वह ईश्वरीय एवं मानवीय प्रवृत्ति से विरोधाभास रखती है।

अमेरिकी लेखक Buchanan नैतिकता की अनदेखी और पश्चिमी मनुष्य के जीवन से धर्म की समाप्ति को पश्चिमी सभ्यता के पतन का एक कारक मानते हैं। वह अपनी पुस्तक में लिखते हैं" वर्ष १९८३ में जब वाइट हाउस में चिकित्सा संकट के संबंध में चर्चा हो रही थी, एडस की बीमारी के कारण ६०० अमेरिकियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। समलैंग्गिकों ने प्रकृति से युद्ध की घोषणा कर दी थी और प्रकृति ने भी बुरी तरह उन्हें दंडित किया। वर्तमान समय में संक्रामक विषाणु एचआईवी से ग्रस्त लाखों लोग प्रतिदिन मिश्रित औषधि COCKTAIL के सेवन से जीवित हैं। यौन चलन या बिना रोक- टोक यौन संबध भी मानव पीढ़ी को बर्बाद कर देने के लिए आरंभ हो चुका है। गर्भपात, तलाक़, जन्म दर में कमी, युवाओं द्वारा आत्म हत्या, मादक पदार्थों का सेवन, महिलाओं एवं बड़ी उम्र के लोगों के साथ दुर्व्यहार, बिना रोक टोक यौन संबंध और इस प्रकार के दूसरे दसियों विषय सबके सब इस बात के सूचक हैं कि पश्चिमी सभ्यता पतन की ओर बढ़ रही है" अमेरिकी लेखक Buchanan पश्चिमी समाज के प्रभाव को हीरोइन की भांति मानते हैं जो आरंभ में व्यक्ति को आराम देता है परंतु शरीर में मिल जाने के बाद मनुष्य को बर्दाद कर देता है। एक अन्य अमेरिकी लेखक KENNETH MINOG अपनी किताब नये मापदंड में लिखते हैं" नैतिकता से इतनी अधिक दूरी के कारण हम यह दावा नहीं कर सकते कि युरोपीय और पश्चिमी सभ्यता बेहतर है"

सैद्धांतिक रूप से उस समाज के बाक़ी व प्रगतिशील रहने की गारंटी है जिस समाज अथवा सामाजिक परिवेश में नैतिकता में विकास हो और लोग आध्यात्मिक एवं नैतिक सिद्धांतों का सम्मान करें। " इस्लामी और ईरानी संस्कृति व सभ्यता की प्रगतिशीलता" नामक मूल्यवान पुस्तक के लेखक डाक्टर अली अकबर विलायती लिखते हैं" यदि कोई समाज मान्य व स्वीकार्य सीमा तक सभ्यता में विकास कर चुका हो परंतु वह क़ानून का सम्मान न करे तो यह सभ्यता कमज़ोर हो जायेगी और अंततः असुरक्षा व अराजकता समाज के स्तंभों को हिला देंगी तथा उस सभ्यता की प्रगति रुक जायेगी। क्योंकि उद्देश्यहीन सभ्यता निरंकुशता का कारण बनेगी। इसीलिए इस्लामी सभ्यता का आधार नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों, एकता, और व्यक्तिगत तथा सामाजिक क़ानूनों पर रखा गया है।

सभ्यता सहित समाज और मनुष्य से संबंधित विषयों में  उतार- चढ़ाव आते हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि हर सभ्यता अपने लम्बे जीवन में कुछ चरणों से गुज़रती है जिसके दौरान वह कभी विकास करती है तो कभी पतन की ओर जाती है। जैसाकि हमने बताया कि नैतिकता व आध्यात्मिकता का होना संस्कृति व सभ्यता के विकास का कारण बन सकता है। इसके विपरीत यदि कोई समाज सभ्य हो परंतु वह नैतिक और धार्मिक आधारों की अनदेखी कर दे तो दीर्घावधि में उसे अपूर्णीय क्षति का सामना होगा। इस बात का एक स्पष्ट प्रमाण एन्डालुशिया andalusia में मुसलमानों का कटु परिणाम है। बहुत से विशेषज्ञ इस्लामी एवं नैतिक मूल्यों की उपेक्षा को andalusia में मुसलमानों के पतन का कारण मानते हैं। यह ऐसी स्थिति में है कि ईश्वरीय धर्म इस्लाम नैतिक व आध्यात्मिक गुणों को निखारने एवं उनकी सुरक्षा पर बहुत बल देता है। इस्लामी इतिहास में आया है कि पैग़म्बरे इस्लाम का मक्का से मदीना पलायन का एक कारण यह था कि मुसलमान मक्के में प्रचलित अज्ञानता की संस्कृति से दूर हो जायें और नैतिक गुणों को निखारने हेतु अपने आपको नये वातावरण में रहने के लिए तैयार करें।

सभ्यताओं के पतन का एक कारण अज्ञानता, स्वार्थ और भ्रष्टाचार है। अमेरिकी लेखक वेल डोरेन्ट ज्ञान और संस्कार में टकराव को सभ्यता की तबाही का एक कारण मानता है। इस्लामी समाज का विशेषज्ञ एवं इतिहासकार इब्ने खलदून भी स्वार्थ, तानाशाही और भ्रष्टाचार को सभ्यताओं की बर्बादी का कारक समझता है। दूसरे कारक कि जो सभ्यताओं के पतन की भूमि प्रशस्त करते हैं, समाज में एकता व एकजुटता का अभाव है। ईरानी इतिहासकार एवं लेखक अब्दुल हुसैन ज़र्रीन कूब समाज में एकता व एकजुटता के अभाव को सभ्यता के ठहराव का कारण मानते हैं और मेल-जोल तथा एकता को समाज की एकजुटता का कारण बताते हैं। उनका मानना है कि अमवी शासकों के काल से अरब मूल्यों व मान्यताओं को ग़ैर अरब मूल्यों पर वरियता दी जाने लगी तथा धीरे- धीरे वह ऊंची इमारत जिसकी बुनियाद मदीने में रखी गयी थी, ख़राब होने लगी और इस्लामी सभ्यता के पतन का काल उसी समय से आरंभ हो गया। ज़र्रीन कूब भ्रष्टाचार और एश्वर्य को भी, जो लगभग शाम अर्थात वर्तमान सीरिया में बनी उमय्या की सरकार की स्थापना के समय आरंभ हुआ, इस्लामी सभ्यता की कमज़ोरी का एक अन्य कारक मानते हैं।

विदेशी शत्रुओं का आक्रमण भी संस्कृति के कमज़ोर होने या ठहराव का कारण बन सकता है। विदेशी शत्रुओं ने बारम्बार इस्लामी सभ्यता वाले क्षेत्रों पर आक्रमण किया है। इस्लामी जगत में मंगोलों के आक्रमण और क्रूसेड युद्ध जैसे बड़े युद्ध इस्लामी क्षेत्रों पर आक्रमण के कुछ उदाहरण हैं परंतु सौभाग्य से मुसलमान अपनी संस्कृति को नहीं भूले और आक्रमण के कुछ समय बाद दोबारा अपनी सभ्यता के अनुसार रहने लगे। प्रत्येक दशा में यदि इस्लामी देशों के इतिहास पर सूक्ष्म दृष्टि डालें तो यह बात स्पष्ट हो जायेगी कि इतिहास के विभिन्न कालों में इस्लामी सभ्यता को परवान चढ़ाने में मुसलमानों ने बहुत प्रयास किया है।


source : irib.ir
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