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हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहादत

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहादत

आज 15 रजब पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे आलेही सल्लम की नवासी और हज़रत अली हज़रत फ़ातेमा अलैहिमस्सलाम की सुपुत्री हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहादत का दिन है। वर्ष 62 हिजरी क़मरी के रजब महीने की पंद्रहवीं तारीख़ को, इस्लामी इतिहास की इस महान महिला ने अपने पालनहार की पुकार का उत्तर देते हुए इस नश्वर संसार को त्याग दिया था। हज़रत ज़ैनब ने इस्लामी इतिहास के एक संवेदनशील एवं निर्णायक कालखंड में, अमर भूमिका निभाई थी। ज़ैनब, नाम सुन कर बरबस ही इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और कर्बला में उनकी अद्वितीय शौर्यगाथा महान आंदोलन की याद ताज़ा हो जाती है। कर्बला की घटना के हर क्षण में, चाहे वह भाई के विदा होने का कटु एवं हृदय विदारक समय हो, चाहे आशूरा की घटना के पश्चात बंदी बना कर नगर-नगर घुमाए जाने का मार्मिक समय हो या फिर अत्याचारी शासक के समक्ष सत्य की रक्षा का साहस भरा समय हो, हज़रत ज़ैनब की उपस्थिति, सभी कालखंडों में अद्वितीय है।अलबत्ता यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि हज़रत ज़ैनब सभी मैदानों में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों द्वारा प्रशिक्षित एक संपूर्ण महिला का सर्वोच्च एवं अग्रणी उदाहरण थीं। ज्ञान, उपासना, ईश्वर से भय, वाग्मिता, वाकपटुता, प्रतिरोध, सत्य की निष्ठापूर्ण रक्षा, आत्मसम्मान एवं वफ़ादारी, इस अद्वीतीय हस्ती के चरित्र के गुणों का एक छोटा सा भाग हैं। हज़रत ज़ैनब एक ऐसी महान हस्ती थीं जो अपने अस्तित्व की गहराइयों से अपने पिता हज़रत अली और माता हज़रत फ़ातेमा के चरित्र एवं व्यवहार पर ईमान रखती थीं। वे कथन और व्यवहार में अत्यंत विनम्र, दयालु, सच्ची एवं शिष्टाचारी थीं। दूसरों की रक्षा के लिए वे अपनी जान तक को ख़तरे में डाल देती थीं और हर अवसर पर दूसरों को स्वयं पर प्राथमिकता देती थीं। कर्बला की घटना में भी उन्होंने अपने हिस्से का पानी बच्चों को पिला दिया और स्वयं प्यासी रहीं। उस अत्यंत कठिन एवं जटिल स्थिति में और ऐसे संकटों में भी जो किसी भी मनुष्य को तोड़ कर रख देते हैं, हज़रत ज़ैनब पूरी दृढ़ता के साथ डटी रहीं और समय अवसर की सही पहचान के साथ उन्होंने अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने कभी शत्रु के दरबार में भाषण दे कर, कभी बच्चों और महिलाओं को दिलासा सांत्वना दे कर और कभी इमाम हुसैन के सुपुत्र इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की रक्षा करके अपने भाई इमाम हुसैन के आंदोलन के बाद की घटनाओं का संचालन किया और ख़तरों से भरे इस मार्ग में केवल अपने पालनहार से सहायता मांगती रहीं। कर्बला से कूफ़ा और फिर वहां से शाम या समकालीन सीरिया तक की यात्रा के दौरान उस समय के अत्याचारियों के समक्ष उन्होंने जो ख़ुत्बे या भाषण दिए उनसे उनके ज्ञान, परिपक्वता और महानता का पता चलता है। भाषण देने की क्षमता के अतिरिक्त विभिन्न अवसरों पर सही निर्णय लेने नीति अपनाने की हज़रत ज़ैनब अलैहस्सलाम की योग्यता को उनके चरित्र की कुछ अन्य महत्वपूर्ण विशेषताओं में गिना जा सकता है। वे भली भांति जानती थीं कि कहां पर ठहर कर बात करनी चाहिए और कहां पर कड़े स्वर में बात करके लोगों के हृदयों में आग भड़का देनी चाहिए। प्रिय श्रोताओ इस्लामी इतिहास की इस महान महिला की शहादत के दिन के अवसर पर हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं और उनके द्वारा दिए गए भाषणों पर एक दृष्टि डालना चाहते हैं ताकि उनके व्यक्तित्व की दृढ़ता, आत्मा की महानता और ईमान की प्रबलता को उनके ख़ुत्बों या भाषणों के माध्यम से किसी सीमा तक पहचान सकें। कर्बला से वापसी की यात्रा में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने इब्ने ज़ियाद और यज़ीद के समक्ष कूफ़े और शाम में कई भाषण दिए। ये भाषण ऐसे समय में दिए गए जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे आलेही सल्लम के पवित्र परिजन, राजनैतिक दृष्टि से सबसे बुरी स्थिति में और अत्यधिक दबाव शत्रु के घेरे में जीवन व्यतीत कर रहे थे जबकि शत्रु स्वयं को सत्ता की चरम सीमा पर पहुंचते देख अपनी विदित विजय के नशे में चूर होकर उनके अपमान अनादर की चेष्टा में था किंतु हज़रत ज़ैनब ने अपने ठोस भाषणों से उसकी नींद उड़ा दी और उसका जीना दूभर कर दिया। उनके भाषणों ने यह सिद्ध कर दिया कि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों पर पड़ने वाली अत्यधिक कठिनाइयां और दुख भी उनकी मानसिक शक्ति को कमज़ोर नहीं कर सके थे। उन कठिन परिस्थितियों में, एक ऐसी महिला द्वारा, जिसके अधिकांश परिजनों की हत्या कर दी गई हो और स्वयं उसे बंदी बनाया गया हो, इस प्रकार के ठोस भाषणों का दिया जाना ईश्वर की सहायता के बिना संभव नहीं था और इसे हज़रत ज़ैनब अलैहस्सलाम के चमत्कारों में गिना जा सकता है।हज़रत ज़ैनब के ख़ुत्बे गहन इस्लामी शिक्षाओं और सामाजिक वास्तविकताओं से भरे हुए हैं और उनमें तत्कालीन अत्याचारी शासकों की बुराइयों को पूर्ण रूप से स्पष्ट किया गया है। ईश्वरीय संदेश वहि के मत की प्रशिक्षित सर्वोच्च हस्तियों में से एक, हज़रत ज़ैनब अपनी बात ईश्वर की प्रशंसा और उसके गुणगान से आरंभ करती हैं। वे ईश्वर की याद में इतनी लीन हैं कि अपने ऊपर पड़ने वाले समस्त दुखों पीड़ाओं को, ईश्वर की प्रसन्नता की तुलना में हीन समझती हैं और पूरी शक्ति के साथ उन्हें सहन करती हैं और इन सभी घटनाओं को सुंदर बताती हैं। जब कूफ़े के तत्कालीन शासक इब्ने ज़ियाद ने उनसे पूछा कि तुमने अपने भाई के साथ ईश्वर के कार्य को कैसा देखा? तो हज़रत ज़ैनब ने ईमान और विश्वास से भरे हृदय के साथ उत्तर दिया कि मैंने सुंदरता के अतिरिक्त कुछ नहीं देखा। ईश्वर ने यह निर्धारित किया था कि वे शहीद हों। वे अपने स्थायी ठिकाने की ओर बढ़ गए हैं और शीघ्र ही ईश्वर तुझे और उन्हें एक साथ उठाएगा तो फिर उस दिन देखना की वास्तविक विजेता कौन है? यह महान आत्मिक शक्ति, जो शत्रु के अपमान का कारण बनती है, ईश्वर पर ईमान और उसकी सहायता की ओर से विश्वास से ही प्राप्त होती है। इस प्रकार हज़रत ज़ैनब अलैहस्सलाम स्वयं को ईश्वर की अनंत शक्ति से जोड़ लेती हैं।हज़रत ज़ैनब अलैहस्सलाम समाज के मार्गदर्शन में इमामत के स्थान से पूर्णतः अवगत थीं। इसी कारण उन्होंने इस्लामी समाज के नेता इमाम के रूप में अपने भाई के उच्च स्थान की ओर संकेत करना और उनका परिचय कराना आवश्यक समझा, अतः उन्होंने कूफ़ा वासियों की निंदा करते हुए कहा कि तुम लोग किस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र एवं स्वर्ग के युवाओं के सरदार की हत्या के कलंक को स्वयं से दूर करोगे। वह व्यक्ति जो तुम लोगों की शरण स्थली था, तुम्हारी शांति एवं एकता का रक्षक था, वह तुम्हारा पथप्रदर्शक, धर्म का नेता एवं धार्मिक आदेशों का मार्गदर्शक था। ऐसे व्यक्ति की हत्या का कलंक मिटाना तुम्हारे लिए किस प्रकार संभव होगा। इस प्रकार के शब्द, अपने काल के इमाम के स्थान के पहचान में हज़रत ज़ैनब अलैहस्सलाम की परिपूर्णता को भली भांति स्पष्ट करते हैं।क़ुरआने मजीद की शिक्षाओं में दक्षता के चलते हज़रत ज़ैनब ने अपने भाषणों में ईश्वरीय आयतों से सहायता ली। उदाहरण स्वरूप उन्होंने सूरए अहज़ाब की तैंतीसवीं आयत की ओर संकेत करते हुए, जिसमें उनके नाना पैग़म्बरे इस्लाम, माता हज़रत फ़ातेमा, पिता हज़रत अली और दोनों भाइयों इमाम हसन इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम की पवित्रता और हर प्रकार की बुराई से दूर होने पर बल दिया गया है, पूरी दृढ़ता से ठोस स्वर में कहा कि समस्त प्रशंसा उस ईश्वर के लिए है जिसने पैग़म्बरे इस्लाम के माध्यम से हमें प्रतिष्ठा प्रदान की और हर प्रकार की बुराई से हमें दूर रखा। इसी प्रकार उन्होंने सूरए आले इमरान की 178वीं आयत की तिलावत करके यज़ीद को संबोधित करते हुए कहाः यह घमंड टिकाऊ नहीं है और यह मदिरापान सदैव रहने वाला नहीं है बल्कि यह ईश्वरीय परीक्षा है, यह ईश्वर की ओर से पापियों को दी जाने वाली मोहलत है कि वे अपने दंड में वृद्धि का मार्ग प्रशस्त कर लें। कर्बला की विजेता इस महान साहसिक महिला ने अपने ख़ुत्बों में बारंबार यज़ीद इब्ने ज़ियाद को हीन बता कर उनकी निंदा की और इस्लाम क़ुरआने मजीद के विरुद्ध उनकी प्राचीन शत्रुता पर से पर्दा उठाया। हज़रत ज़ैनब अलैहस्सलाम ने अपने भाषणों में मुआविया के दुष्ट पुत्र यज़ीद की नैतिक बुराइयों को स्पष्ट किया और धार्मिक आदेशों की अवहेलना के कारण उसकी कड़ी भर्त्सना की। उन्होंने ईश्वर तथा पैग़म्बरे इस्लाम के विरोध के कारण यज़ीद को काफ़िर बताते हुए कहा कि तूने अपने इस कार्य से ईश्वर की उद्दंडता की और पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी क़ुरआन तथा उसके आदेशों का इन्कार किया। हज़रत ज़ैनब ने अपने भाषण के एक अन्य स्थान पर पूरी दृढ़ता के साथ यज़ीद को संबोधित करते हुए कहा कि यदि संसार के संकटों, दुखों और दबावों ने मुझे इस स्थिति में डाला होता कि मैं तुझसे बात करने पर विवश हो जाती तो मैं तुझे इससे भी कहीं तुच्छ समझती हूं कि तुझे संबोधन का पात्र बनाऊं। मैं तेरे मूल्य स्थान को तेरे विदित पद से कहीं अधिक हीन समझती हूं और तेरी अत्यधिक भर्त्सना करती हूं।असत्य पर सत्य की विजय पर आधारित ईश्वरीय परंपरा, हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैह की भाषणों का आधार है। उनकी बातों से यह बात स्पष्ट रूप से समझी जा सकती है कि संभव है कि असत्य विदित रूप से सत्तासीन हो जाए और अत्याचारी एवं सत्तालोलुप शासक, सत्ता की छाया में और धूर्तता के सहारे कुछ दिनों तक स्वयं को लोगों पर थोपे रखें किंतु अंततः विजय सत्य की ही होती है। हज़रत ज़ैनब अलैहसस्सलाम के भाषणों में महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि जो लोग सत्य और ईश्वर की प्रसन्नता की चाह रखते हैं उन्हें कठिनाइयों और संकटों में ही अपने अस्तित्व के गुणों को प्रकट करना चाहिए और ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छाओं की अनदेखी करते हुए त्याग से काम लेना चाहिए। इसी आधार पर जो लोग कर्बला में अंतिम क्षण तक हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ रहे और जिन्होंने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया वे अमर हो गए। हज़रत ज़ैनब ने यज़ीद को संबोधित करते हुए कहा कि इस संसार का जीवन नश्वर है और तेरा धन संपत्ति ऐश समाप्त हो जाएगा जिस प्रकार से कि इस संसार में हमारी कठिनाइयां और दुख समाप्त हो जाएंगे किंतु विजय हमारी ही होगी क्योंकि हम सत्य पर हैं।इस प्रकार इस महान महिला ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बादउनके आंदोलन के प्रचार को एक ईश्वरीय दायित्व समझा और अद्वितीय वाग्मिता एवं वाकपटुता के साथ अत्याचार के विरुद्ध उठ खड़ी हुईं। अपने जीवन के इस मोड़ पर हज़रत ज़ैनब ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे आलेही सल्लम के पवित्र परिजनों के अधिकारों का बचाव किया और इस बात की अनुमति नहीं दी कि शत्रु, कर्बला की घटना को अपने हित में प्रयोग कर सकें। हज़रत ज़ैनब की भाषण की शैली और उनकी वाकपटुता से अनायास ही उनके पिता की याद ताज़ा हो गई। उन्होंने ऐसे वाक्यों के माध्यम से वास्तविकताओं का वर्णन किया जो भाषण की कला में उनकी दक्षता के सूचक थे। प्रसिद्ध अरब साहित्यकार जाहिज़ ने, हज़रत ज़ैनब का भाषण सुनने वाले एक व्यक्ति को उद्धरित करते हुए लिखा है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद मैं कूफ़ा पहुंचा, उस समय हज़रत ज़ैनब ख़ुत्बा दे रही थीं। मैंने किसी भी बंदी महिला को उनसे अधिक स्पष्ट रूप से भाषण करते हुए नहीं देखा था, उनका भाषण सुनकर मुझे ऐसा लगा जैसे हज़रत अली अलैहिस्सलाम ख़ुत्बा दे रहे हों।


source : hindi.irib.ir
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