अल्लामा तबरिसी बहवाला-ए-मुहम्मद बिन याक़ूब कुलैनी लिखते है कि इस्हाक़ बिन याक़ूब ने बज़रिये मुहम्मद बिन उस्मान अमरी हज़रत इमाम महदी (अ0) की ख़िदमत में एक ख़त इरसाल किया, जिसमें कई सवालात लिखे थे। हज़रत ने ख़त का जवाब तहरीर फ़माया और तमाम सवालात के जवाबात तहरीर इनायत फरमा दिये, जिसके अजज़ा ये हैं-
(1) जो हमारा मुनकिर है, वह हम से नहीं (2) अज़ीज़ों में से जो मुख़ालेफ़त करते हैं उनकी मिसाल इब्ने नूह और बरादराने यूसुफ़ की है (3) फ़ुक़ा यानी जौ की शराब का पीना हराम है (4) हम तुम्हारे माल सिर्फ़ इस लिए (बतौरे ख़ुम्स क़बूल करते हैं कि तुम पाक हो जाओ और निजात हासिल कर सको (5) मेरे ज़हूर करने और न करने का ताल्लुक़ ख़ुदा से है जो लोग वक़्ते ज़हूर मुक़र्र करते हैं वह ग़लती पर हैं झूट बोलते हैं (6) जो लोग कहते हैं कि इमाम हुसैन (अ0) क़त्ल नहीं हुए वह काफ़िर झूटे और गुमराह हैं (7) तमाम वाक़ेए होने वाली चीज़ों में मेरे सुफ़रा पर एतेमाद करो वह मेरी तरफ़ से तुम्हारे लिए हुज्जत हैं और मैं हुज्जतुल्लाह हूँ (8) “मुहम्मद बिन उस्मान”अमीन और सिक़ाह हैं और उनकी तहरीर मेरी तहरीर है (9) मुहम्मद बिन अली महर अहवाज़ी का दिल इन्शा अल्लाह बहुत साफ़ हो जाएगा और उन्हें कोई शक न रहेगा (10) गाने वाले की उजरत व क़ीमत हराम है (11) मुहम्मद बिन नईम हमारे शियों में से हैं (12) अबु अल ख़त्ताब मुहम्मद बिन जैनब अजद है और इनके मानने वाले भी मलून हैं और मेरे बाप दादा इससे और इसके बाप दादा से हमेशा बेज़ार रहे हैं (13) जो हमारा माल खाते है वह वह अपने पेटों में आग भरते हैं (14) ख़ुम्स हमारे सादात शिया के लिए हलाल है (15) जो लोग दीने ख़ुदा में शक करते हैं वह अपने ख़ुद ज़िम्मेदार हैं (16) मेरी ग़ैबत क्यो वाक़ए हुई है, यह बात ख़ुदा की मसलहत से मुताल्लिक़ है इसके मुताल्लिक़ सावल बेकार है। मेरे आबाओ अजदाद दुनियाँ वालों के शिकन्जों में हमेशा रहे हैं लेकिन ख़ुदा ने मुझे इस शिकन्जे से बचा लिया है। जब मैं ज़ुहूर करूँगा बिल्कुल आज़ाद हूँगा। (17) ज़माना-ए-ग़ैबत में मुझ से फ़यदा क्या है इसके मुताल्लिक़ यह समझ लो कि मेरी मिसाल ग़ैबत में वैसी है, जैसे अबर में छुपे हुए आफ़ताब की। मैं सितारों की मानिन्द अहले अर्ज़ के लिए अमान हूँ।
तुम लोग ग़ैबत और ज़हूर के मुताल्लिक़ सावालात का सिलसिला बन्द करो और ख़ुदावन्दे आलम की बारगाह में दुआ करो और वह ज़ल्द मेरे ज़ुहूर का हुक्म दे, ऐ इस्हाक़ तुम पर और उन लोगों पर मेरा सालम जो हिदायत की इत्तेबा करते हैं। (अलामतुल वरा सफ़ा 258 मजालिसुल मोमेनीन सफ़ा 190 कशफ़ुल ग़ुम्मा सफ़ा 140)
इमाम ज़माना का मकतूबे गिरामी
अल्लामा का बयान है कि हज़रत इमाम (अ0) ने जनाबे शेख़ मुफ़ीद अबु अब्दिल्लाह मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन नोमान के नाम एक मकतूब इरसाल फरमाया है। जिसमें उन्होने शेख़ मुफ़ीद की मदह फरनाई और बहुतसे वाक़ियात से मौसूफ़ को अगाह फरमाया है उनके मकतूबे गिरामी का तरजुमा यह है -
मेरे नेक बरादर और लायक़ मोहिब, तुम पर मेरा सलाम हो। तुम्हें दीनी मामले में ख़ुलूस हासिल है और तुम मेरे बारे में यक़ीन कामिल रखते हो। हम ख़ुदा की तारीफ़ करते हैं जिसके सिवा कोई माबूद नही हैं। हम दुरूद भेजते हैं हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स0) और उनकी आल पर हमारी दुआ है कि ख़ुदा तुम्हारी तौफीक़ाते दीनी हमेशा क़ाएम रख़े और तुम्हें नुसरते हक़ की तरफ़ हमेशा मुतावज्जह रखे। तुम जो हमारे बारे में सिद्क़ बयानी करते रहते हो, ख़ुदा तुमको इसका अज्र अता फ़रमाए। तुमने जो हमसे ख़त व किताबत का सिलसिला जारी रखा और दोस्तों को फ़ाएदा पहुँचाया, वह क़ाबिले मदह व सताइश है। हमारी दुआ है कि ख़दा तुमको दुशमनों के मुक़ाबले में कामयाब रखे। अब ज़रा ठहर जाओ, और जैसा हम कहते हैं उस पर अमल करो।
अगरचे हम ज़ालिमों के इमकानात से दूर हैं। जब तक दौलते दुनियाँ को हाथ में रहेगी उन लग़ज़िशों को जानते हों जो लोगों से अपने नेक असलाफ़ के ख़िलाफ़ जारी हो नही है।(शायद इससे अपने चचा जाफ़र की तरफ़ इरशाद फरमाया है) उन्होंने अपने अहदों को पसे पुश्त डाल दिया, गोया वह कुछ जोनते ही नहीं। ताहम हम उनकी रियायतों को छोड़ने वाले नहीं और न उनके ज़िक्र भूलने वाले हैं अगर ऐसा होता तो इन पर मुसीबतें नाज़िल होतीं और दुश्मनों का ग़लबा हासिल हो जाता, पस उनसे कहो कि ख़ुदा से डरो और हमारे अम्र नहीं अनिल मुनकर की हिफ़ाज़त करो और अल्लाह अपने नूर का कामिल करने वाला है, चाहे मुशरिक कैसी ही कराहीयत करें। तक़य्या को पकडे रहो, मैं उसकी निजात का ज़ामिन हूँ। जो ख़ुदा की मरज़ी का रास्ता चलेगा। इस साल जब जमादीयुल अव्वल का महीना आये तो इसके वाक़ियात से इबरत हासिल करना तुम्हारे लिए आसान व ज़मीन से रौशन आएतें ज़ाहिर होंगीं। मुसलमानों के गिरोह हुज़न व क़लक़ में बामुक़ाम इराक़ फंस जाएगें। और उनकी बद आमालियों की वजह से रिज़्क़ में तंगी हो जाएगी। फ़िर यह ज़िल्लत व मुसीबत शरीरों की हलाकत के बाद दूर हो जाएगी। उनकी हलाकत से नेक और मुत्तक़ी लोग ख़ुश होगें। लोगों को चाहिए कि वह ऐसे काम करें जिससे उनमें हमारी मुहब्बत ज़्यादा हो। यह मालूम होना चाहिए कि जब मौत यकायक आएगी तो बाबे तौबा बन्द हो जाएगा। और ख़ुदाई क़हर से निजात न मिलेगी। ख़ुदा तुमको नेकी पर क़ायम रख़े और तुम पर रहमत नाज़िल करे”
मेरे ख़्याल से यह ख़त अहदे ग़ैबत क़ुबरा का है, क्यों कि शेख़ मुफ़ीद की विलादत 11 ज़ीक़ाद 332 हिजरी और वफ़ात 3 रमज़ान 413 हिजरी में हुई और ग़ैबत सुग़रा का इख़्तेताम 15 शाबान 329 हिजरी में हुआ है। अल्लामा कबीर हज़रत शहीदे सालिस अल्लामा नूरुउल्लाह शुसतरी मजालिसुल मोमेनीन के सफ़ा 206 में लिखते हैं कि शेख़ मुफ़ीद के मरने के बाद हज़रत इमाम अस्र ने तीन शेर इरसाल फ़रमाए थे जो मरहूम की क़ब्र पर कन्दा हैं।
उन हज़रात के नाम जिन्होंने जमाना-ए-ग़ैबते सुग़रा में इमाम को देखा है
चार ख़ुसूसी और सात उमूमी वकीलों के अलावा जिन लोगों ने हज़रत इमामे अस्र (अ0) को देखा है, उनमें से बाज़ के नाम यह हैं:
बग़दाद के रहने वालों में से
(1) अबु अल क़ासिम बिन रईस (2) अबु अब्दुल्लाह इब्ने फ़राख़ (3) मसरूर अल तबाख़ (4) अहमद व मुहम्मद पिसराने हसन (6) असहाक़ कातिब अज़नू बख़्त (7) साहिबे अलफ़राए (8) साहिबे असरतह अल मख़तूमा (9) अबु अब्दुल्लाह बिन जलैस (10) अबु अब्दुल्लाह अल कन्दी (11) अबु अब्दुल्लाह अल जन्दी (12) हारून अन फ़राज़ (13) अलनैला हमदान के बाशिन्दों में से(14) मुहम्मद बिन कशमरो (15) जाफ़र बिन हमदानदेनूर के रहने वाले में से(16) हसन बिन हनवान (17) अहमद बिन हरवान (अज़ असफ़हान) (18) इब्ने बाज़शाहला (अज़ ज़ैमर) (19) ज़ैदान, अज़ क़ुम (20) हसन बिन नस्र (21) मुहम्मद बिन मुहम्मद (22) अली बिन मुहम्मद बिन इसहाक़ (23) मुहम्मद बिन इसहाक़ (24) हलन बिन याक़ूब (अज़रै) (25) क़सम बिन मूसा (26) फ़रज़न्द क़सीम बिन मूसा (27) इब्ने मुहम्मद बिन हारून (28) साहिबे अल अस्सक़ा (29) अली बिन मुहम्मद (30) मुहम्मद बिन याक़ूब कुलैनी (31) अबु जाफ़र अरक़ा (अज़ कज़वीन) (32) मरवास (33) अली बिन अहमद (अज़ फ़ारस) (34) अकमजरूह (शहज़ोर) (35) इब्ने अल जमाल (अज़कुद्स) (36) मजरूह (अज़मरो) (37) साहिबे अलफ़ दीनार (38) साहिबे अलमाल व अरक़ता अल बैज़ा (39) अबु साबित (अज़ नेशापूर) (40) मुहम्मद बिन शेऐब बिन सालेह (अज़ सालेह) (41) फ़जल बिन यज़ीद (42) हमन बिन फ़ज़ल (43) जाफ़री (44) इब्ने अल अजमी (45) शमशाती (अज़ मिस्र) (46) साहिबे अल मौलूदैन (47) साहिबे अलमाल (48) अबु नहाए (अज़ नसीबैन) (49) अल हुसैनी (ग़ायतल मक़सूद जिल्द 1 सफ़ा 121)
ज़ियारते नाहिया और उसूले काफ़ीः
कहते है कि इसी ज़मानए ग़ैबत में नाहिया मुक़द्देसा से एक ऐसी ज़ियारत बरामद हुई है जिसमें तमाम शोहदाए करबला के नाम और उनके क़ातिलों के असमा हैं। इसे “ज़ियारते नाहिया” से मौसूम किया जाता है।
इसी तरह यह भी कहा जाता है कि उसूले काफ़ी जो कि हज़रत सिक़ातुल इस्लाम अल्लामा कुलैनी अल मोतावफ़्फ़ी 328 हिजरी की 20 साला तसनीफ़ है। वह जब इमाम अस्र की ख़िदमत में पेश हुई तो आपने फ़रमाया هذا كافي لشيعتنا। यहहमारे शियों के लिएकाफ़ी है।
ज़ियारत नाहिया की तौसीक़बहुत से उलामाने की हैजिनमेंअल्लामातबरसी और मजलिसीभी हैं। दुआ-ए-सबा सब ही सेमरवी है।
ग़ैबते कुबरा में इमाम महदी (अ0) का मरकज़ी मुक़ाम
इमाममहदी (अ0) चूंकिउसी तरह ज़िन्दा औरबाक़ी हैं जिस तरहहज़रत ईसा (अ0) हज़रतइदरीस (अ0) हज़रतख़िज़्र(अ0) हज़रत इलयास नीज़ दज्जाल,बताल, याजूज माजूज और इबलीस लईनजिन्दाऔर बाक़ी है उनसब का मरकज़ीमक़ाम मौजूद है। जहाँ यहरहते हैं मसलन हज़रतईसा चौथे आसमान पर (क़ुरआन मजीद) हज़रत इदरीस जन्नत में (क़ुरआन मजीद) हज़रत ख़िज़्रऔर इलयास, मजमउल बहरैन यानी दरया-ए-फ़ारसव रूमके दरमियान पानी के क़सरमें (अजायबुल क़सस अल्लामाअब्दुलवाहिद सफ़ा 176) और दज्जालव बतालतबरिस्तानजज़ीर-ए- मग़रिब में (किताब ग़ायतुलमक़सूदजिल्द 1 सफ़ा 102) और याजूजमाजूज बहरे रोम के अक़बमें दो पहड़ोंके दरमियान (ग़ायतुलमक़सूदजिल्द 2 सफ़ा 74) और इबलीस लईन, इस्तेमारेआरज़ी के वक़तवाले पाये तख़्तमुल्तानमें (किताब इरशादउत तालेबीन अल्लामाआख़ुन्ददरवीज़ासफ़ा 243) तो लामुहालाहज़रत इमाम महदी (अ0) काभी कोई मरकज़ीमुक़ाम होनाज़रूरीहै। जहाँ आप तशरीफ़फ़रमा हों और वहाँसे सारी काएनातअन्जामदेते हों इसी लिएकहा जाता है किज़माना-ए- ग़ैबते हज़रतमहदी (अ0) (जज़ीरएख़ज़राऔरबहरे अबयज़) में अपनी औलादअपने असहाब समेत क़याम फ़रमा हैं और वहींसे ब एजाज़तमाम काम किया करते हैं और हरजगह पहुँचा करते है, यह जज़ीर-ए- ख़ज़रा, सरज़मीनेविलाएतबरबर में दरमियान दरिया-ए- इन्लिसवाक़े है यहजज़ीरहमामूर व आबादहै, इस दरियाके साहिल में एकमौजा भी हैजो बशक्ले जज़ीरा है उसेइन्लिसवाले (जज़ीरए रफ़जा) कहते हैं, क्योंकिउसमें सारी आबादी शियों की है।इस तमाम आबादीकी ख़ुराक वग़ैरा जज़ीर-ए-ख़ज़रासे बाराहे बहरेअबयज़ साल में दोबार इरसाल की जातीहै।मूलाहेज़ाहो (तारीख़ जहाँ आरा, रेआज़ उल उलमाकफ़ाया तुल महदी, कशफ़ुलकेफ़ना, रियाज़ उलमोमेनीन, ग़ाएतुलमक़सूद, रिसालाजज़ीर-ए ख़ज़रा, बहरे अबयज़ और मजालिसअल मोमेनीन, अल्लामानूर उल्ला शुस्तरीव बिहारुलअनवार, अल्लामामजलिसीकिताब रौज़तुलशोहदा अल्लामाहुसैन वाज़ेए क़ाशफ़ीसफ़ा 438) में इमाम महदी(अ0) के अक़साएबिलादेमग़रिबमें होने और उनकेशहरों पर तसररूफ़रखने और साहिबेऔलाद वग़ैरा होने का हवालाहै।
इमाम शिबलंजी अल्लामा अब्दुल अल मोमिन ने भी अपनी किताब नूरुल अबसार के सफ़ा 152) में इस की तरफ़ ब हवाला किताब जामेए उल फ़नून इशारा किया है ग़यास अल ग़ास के सफ़ा 72 में है कि यह वह दरिया है जिसके जानिबे मशरिक़ चीन जानिबे ग़रबी यमन, जानिबे शुमाली हिन्द,जानिबे जुनूबी दरिया-ए- मोहित वाक़े हैं। इस बहरे अबयज़ व अख़ज़र का तूल 2 हज़ार फ़रसख़ और अर्ज़ पाँच सौ फ़रसख़ है। इसमें बहुत से जज़ीरे आबाद हैं जिनमें एक सरान्दीब भी है इस किताब के सफ़ा 295 में है कि“साहेबुज़्ज़मान” हज़रत इमाम महदी (अ0) का लक़ब है। अल्लामा तबरसी लिखते हैं कि आप जिस मकान में रहते हैं उसे “बैतुल हम्द”कहते हैं। (सफ़ा अल वरा सफ़ा 263)
जज़ीर-ए- ख़िज़रा में इमाम (अ0) से मुलाक़ात
हज़रत इमाम महदी (अ0) की क़याम गाह जज़ीर-ए- ख़िज़रा में जो लोग पहुँचे हैं। उनमें से शेख़ सालेह, शेख़ ज़ैनुल आबेदीन अली बिन फ़ाज़िल माज़िन्दरानी का नाम नुमाया तौर पर नज़र आता हैं। आपकी मुलाक़ात तसदीक़ फ़ज़ल बिन यहिया बिन अली ताबई कूफ़ी व शेख़ आलिम आमिल शेख़ शम्सुद्दीन नजी व शेख़ जलालुद्दीन, अब्दुल्लाह इब्ने अवाम हिल्ली ने फ़रमाई है।
अल्लामा मजलिसी ने आपके सफ़र की सारी रूदाद एक रिसाले की सूरत में ज़ब्त की है। जिसका मुसलसल ज़िक्र बिहारूल अनवार में मौजूद है रिसाला जज़ीर-ए- ख़िज़रा के सफ़ा 1 में है कि शेख़ अजल सईद शहीद बिन मुहम्मद मक्की ओर मीर शमसुद्दीन मुहम्मद असद उल्लाह शूसतरी ने भी तसदीक़ की है।
मोअल्लिफ़े किताबे हाज़ा कहता है कि हज़रत की विलादत हज़रत की ग़ैबत हज़रत का ज़हूर वग़ैरा जिस तरह रमज़े ख़ुदावन्दी और राज़े इलाही है उसी तरह आपकी जाए क़याम भी एक राज़ है जिसकी इत्तेला-ए-आम ज़रुरी नही है, वाज़े हो कि कोलम्बस के इदराक से भी क़ब्ल अमरीका का वजूद था।
इमाम ग़ायब का हर जगह हाज़िर होना
अहादीस से साबित है कि इमाम महदी (अ0) जो कि मज़हरूल अजायब हजरत अली (अ0) के पोते हैं, हर मक़ाम पर पहुँचतें और हर जगह अपने मानने वालों के काम आते हैं। उलमा ने लिखा है।
कि आप ब वक़्ते ज़रूरी मज़हबी लोगों से मिलते हैं लोग देखते हैं यह और बात है कि उन्हें पहचान न सकें। (ग़ाअतुल मक़सूद)
इमाम महदी (अ0) और हज्जे काबा
यह मुसल्लेमात में से है कि हज़रत इमाम महदी (अ0) हर साल हज्जे काबा के लिए मक्का-ए-मोअज़्ज़मा इसी तरह तशरीफ़ ले जाते है जिस तरह हज़रत ख़िज़्र व इलयास (अ0) जाते हैं। (सिराज अल कुलूब सफ़ा 77)
अली अहमद कूफ़ी का ब्यान है कि मैं तवाफ़े काबा में मसरूफ़ था कि मेरी नज़र एक निहायत ख़ूब सूरत नौजवान पर पडी मैंने पूछा आप कौन हैं और कहाँ से तशरीफ़ लाए हैं!आपने फ़रमाया! انا المهدي وانا القاسمमै महदी आख़रूज़ ज़मान और क़ाएम आले मुहम्मद (स0) हूँ।
ग़ानम हिन्दी का ब्यान है कि इमाम महदी (अ0) की तलाश में एक मर्तबा बग़दाद गया, एक पुल से गुज़रते हुए मुझे एक साहिब मिले वह मुझे एक बाग़ में ले गए और उन्होंनें मुझसे हिन्दी ज़बान में कलाम किया और फ़रमाया कि तुम इस साल हज के लिए न जोओ, वरना नुक़सान पहुँच जाएगा।मुहम्मद बिन शाज़ान का कहना है कि मैं एक दफ़ा मदीने में दाख़िल हुआ तो हज़रत इमाम महदी (अ0) से मुलाक़ात हुई, उन्होने मेरा नाम ले कर मुझे पुकारा, चूंकि मेरे पूरे नाम से कोई वाक़िफ़ न था इस लिए मुझे ताज्जुब हुआ। मैंने पूछा आप कौन हैं? फ़रमाया इमामे ज़मान हूँ।
अल्लामा शेख़ सुलेमान कुन्दूज़ी बलख़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि अब्दुल्लाह इब्ने सालेह ने कहा मैंने ग़ैबते क़ुबरा के बाद इमाम महदी (अ0) को हजरे असवत के नज़दीक इस हाल में देखा है कि उन्हें लोग चोरों तरफ़ से घेरे हुए हैं।
source : irib.ir