पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का कथन है किः मै मस्जिदुल हराम (ख़ान ए काबा) मे मक़ामे इब्राहीम के निकट बैठा हुआ था, एक ऐसा वृद्ध व्यक्ति आया जिसने अपना पूर्ण जीवन पापो मे व्यतीत किया था, मुझे देखते ही कहने लगाः
نِعْمَ الشَّفيعُ اِلَى اللهِ لِلْمُذْنِبينَ
“नैमश्शफ़िओ एलल्लाह लिलमुत्तक़ीन”
“आप ईश्वर के समीप पापीयो के लिए बेहतरीन शफ़ी है”।
फ़िर उसके पश्चात उसने ख़ान ए काबा का पर्दा पकड़ा और निम्नलिखित शीर्षक के अशआर पढ़ेः
“हे दयाशील एंव कृपालु प्रभु ! छटे इमाम के पूर्वज का वास्ता, क़ुरआन का वास्ता, अली का वास्ता, हसन एंव हुसैन का वास्ता, फ़ातेमा ज़हरा का वास्ता, निर्दोष इमामो का वास्ता, इमाम महदी का वास्ता, अपने पापी सेवक के पापो को क्षमा कर दे!”
उस समय हातिफ़े ग़ैबी की आवाज़ आईः
हे वृद्ध व्यक्ति!
तेरे पाप अधिक है परन्तु इन पवित्र नामो के तुफ़ैल मे जिनकी तूने सौगंध दी है, मैने तुझे क्षमा कर दिया, यदि तू धरती पर रहने वाले सारे व्यक्तियो के पापो को क्षमा करने की विनती करता तो क्षमा कर देता, उन लोगो को छौड़कर जिन्होने सालेह की ऊँटनी और ईश्वर दूतो की हत्या की है।[1]
[1] बिहारुल अनवार, भाग 91, पेज 28, अध्याय 28, हदीस 14 मुस्तदरेकुल वसाएल, भाग 5, पेज 230, अध्याय 35, हदीस 5762