उन्नीस रमज़ान वह शोकमयी तिथि है जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर विष भरी तलवार मारी गयी। हज़रत अली (अ) पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के परिजनों में अत्यन्त वरिष्ठ व्यक्ति और इस्लामी शासक थे। वही अली जिनकी महानता की चर्चा इस्लामी जगत में ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों के विद्वानों और इतिहासकारों द्वारा भी की जाती है। वही अली जिनकी सत्यता, अध्यात्म, साहस, वीरता, धैर्य, समाज सेवा एवं न्यायप्रियता आदि की गवाही, मित्र ही नहीं शत्रु भी देते थे। एक स्थान पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा था कि ईश्वर की सौगन्ध नग्न शरीर के साथ मुझे कांटों पर लिटाया जाए या फिर ज़ंजीरों से बांध कर धरती पर घसीटा जाए तो मुझे यह उससे अधिक प्रिय होगा कि अल्लाह और पैग़म्बर से प्रलय के दिन ऐसी दशा में मिलूं कि मैंने किसी पर अत्याचार कर रखा हो।
अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे व्यक्ति से जो अत्याचार के ऐसे विरोधी और न्याय के इतने प्रेमी थे कि एक ईसाई विद्वान के कथनानुसार अली अपनी न्याय प्रियता की भेंट चढ़ गये। अब प्रश्न यह उठता है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम से इतनी शत्रुता क्यों की गयी? इस प्रश्न के उत्तर के लिए हमें हज़रत अली (अ) के समय के इतिहास और सामाजिक स्थितियों को देखना होगा। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के पश्चाम के पच्चीस वर्षों में इस्लामी समाज कई वर्गों में बंट चुका था। एक गुट वह था जो बिना सोचे समझे सांसारिक दुःख सुख, कर्तव्य सब कुछ छोड़कर केवल नमाज़ और उपासना को ही वास्तविक इस्लाम समझता था और इस्लाम की वास्तविकता को समझे बिना कट्टरवाद को अपनाए हुए था। आज के समय में उस गुट को यदि देखना चाहें तो पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान के तालेबान गुट में "ख़वारिज" नामी उस रूढ़िवादी गुट की झलक मिलती है। दूसरा गुट वह था जो सोच समझकर असीम छल-कपट के साथ इस्लाम के नाम पर जनता को लूट रहा था, उन पर अत्याचार कर रहा था और स्वयं ऐश्वर्य से परिपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा था। यह दोनों की गुट हज़रत अली के शासन काल में उनके विरोधी बन गये थे। क्योंकि हज़रत अली को ज्ञान था कि मूर्खतापूर्ण अंधे अनुसरण को इस्लाम कहना, इस्लाम जैसे स्वभाविक धर्म पर अत्याचार है और दूसरी ओर चालबाज़ी करके जनता के अधिकारतं का दमन करने तथा बैतुलमाल अर्थात सार्वजनिक कोष को अपने हितों के लिए लुटाने वाला गुट भी इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत कार्य कर रहा है। इस प्रकार वे ख़वारिज तथा मुआविया जो स्वयं को ख़लीफ़ अर्थात इस्लामी शासक कहलवाता था, दोनों की शत्रुता के निशाने पर आ गये थे। ख़वारिज का गुट उनके जैसे विद्वान और आध्यात्मिक को इस्लाम विरोधी कहने लगा था और मुआविया हज़रत अली के व्यक्तित्व से पूर्णता परिचित होते हुए भी उनके न्याय प्रेम के आधार पर उन्हें अपने हितों के लिए बहुत बड़ा ख़तरा समझता था।इस प्रकार ये दोनों ही गुट उन्हें अपने रास्ते से हटाना चाहते थे कई इतिहासकारों का कहना है कि खवारिज के एक व्यक्ति अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम ने मुआविया के उकसावे में आकर हज़रत अली पर विष में डूबी हुई तलवार से वार किया था। 19 रमज़ान की रात हज़रत अली (अ) मस्जिद से अपने घर आये। आपकी पुत्री हज़रत ज़ैनब ने रोटी, नमक और एक प्याले में दूध लाकर पिता के सामने रखा ताकि दिन भर के रोज़े के पश्चात कुछ खा सकें। हज़रत अली ने जो ये भोजन देखा तो बेटी से पूछा कि मैं रोटी के साथ एक समय में दो चीज़ें कब खाता हूं। इनमें से एक उठा लो। उन्होंने नमक सामने से उठाना चाहा तो आपने उन्हें रोक दिया और दूध का प्याला ले जाने का आदेश दिया और स्वयं नमक और रोटी से रोज़ा इफ़्तार किया। हज़रत अली द्वारा इस प्रकार का भोजन प्रयोग किए जाने का यह कारण नहीं था कि वे अच्छा भोजन नहीं कर सकते थे बल्कि उस समय समाकज की परिस्थिति ऐसी थी कि अधिकतर लोग कठिनाईपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे और शासन की बागडोर हाथ में होने के बावजूद हज़रत अली का परिवार अपना सब कुछ ग़रीबों में बांटकर स्वयं अत्यन्त कठिन जीवन व्यतीत कर रहा था। हज़रत अली का विश्वास था कि शासक को चाहिए कि जनता के निम्नतम स्तर के लोगों जैसा जीवन व्यतीत करे ताकि जनता में तुच्छता और निराशा की भावना उत्पन्न न हो सके।इस प्रकार हज़रत अली नमक रोटी से अपनी भूख मिटाकर ईश्वर की उपासना में लग गये। आपकी पुत्री का कथन है कि उस रात्रि मेरे पिता बार-बार उठते, आंगन में जाते और आकाश की ओर देखने लगते। इसी प्रकार एक बेचैनी और व्याकुलता की सी स्थिति में रात्रि बीतने लगी। भोर समय हज़रत अली उठे, वज़ू किया और मस्जिद की ओर जाने के लिए द्वार खोलना चाहते थे कि घर में पली हुई मुरग़ाबियां इस प्रकार रास्ते में आकर खड़ी हो गयीं जैसे आपको बाहर जाने से रोकना चाहती हों। आपने स्नेह के साथ पछियों को रास्ते से हटाया और स्वयं मस्जिद की ओर चले गये। वहां आपने मुंह के बल लेटे हुए इब्ने मुल्जिम कत भी नमाज़ के लिए जगाया। फिर आप स्वयं उपासना में लीन हो गये। इब्ने मुल्जिम मस्जिद के एक स्तंभ के पीछे विष में डूबी तलवार लेकर छिप गया। हज़रत अली ने जब सजदे से सिर उठाया तो उसने तलवार से सिर पर वार कर दिया। तलवार की धार मस्तिष्क तक उतर गयी, मस्जिद की ज़मीन ख़ून से लाल हो गयी और नमाज़ियों ने ईश्वर की राह में अपनी बलि देने के इच्छुक हज़रत अली को कहते सुनाः काबे के रब की सौगन्ध मैं सफल हो गया। और फिर संसार ने देखा कि अली अपने बिछौने पर लेटे हुए हैं। मुख पर पीलाहट है, परिजनों और आपके प्रति निष्ठा रखने वालों के चेहरे दुःख और आंसूओं में डूबे हुए हैं कि इब्ने मुल्जिम को रस्सियों में बांध कर लाया जाता है। आपके चेहरे पर दुःख के लक्षण दिखाई देते हैं आप अपने पुत्र से कहते हैं कि इसके हाथ खुलवा दो और ये प्यासा होगा इसकी प्यास बुझा दो। फिर आपने अपने लिए लाया दूध का प्याला उसको दिला दिया। कुछ क्षणों के पश्चात उससे पूछा क्या मैं तेरा बुरा इमाम था? आपके इस प्रश्न को सुनकर हत्यारे की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे। फिर आपने अपने सुपुत्र इमाम हसन से कहा कि यदि मैं जीवित रह गया तो इसके विषय में स्वयं निर्णय लूंगा और यदि मर गया तो क़ेसास अर्थात बदले में इस पर तलवार का केवल एक ही वार करना क्योंकि इसने मुझपर एक ही वार किया था।हम इस दुखदायी अवसर पर अपने न्यायप्रेमी सभी साथियों की सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि सत्य और न्याय के मार्ग पर निडर होकर चलने में हमारी सहायता कर।
source : hindi.irib.ir