Hindi
Wednesday 27th of November 2024
0
نفر 0

आदर्श जीवन शैली-५

 

हमने आवश्यक लक्ष्य, कार्यक्रम और समय को सही ढंग से व्यवस्थित करने के बारे में बताया था। इन सिद्धांतों के पालन से हम अपनी जीवन शैली को सही दिशा दे सकते हैं और यह जीवन में प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। यही कारण है कि इस्लामी शिक्षाओं में और इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के आचरण में इस पर बहुत अधिक बल दिया गया है। जीवन में हमारी सारी व्यक्तिगत व सामूहिक ज़िम्मेदारियां, इन सिद्धांतों का पालन करके जीवन को सुधारा जा सकता है। इस कार्यक्रम में हम आपको आदर्श जीवन शैली में व्यक्तिगत ज़िम्मेदारियों के बारे में आपको बताएंगे।

 

व्यक्तिगत ज़िम्मेदारियों से उद्देश्य वह ज़िम्मेदारियां हैं जो हर व्यक्ति समाज व परिवार में रहते हुए बिना ध्यान दिए अंजाम देता है। चिंतन मनन, ज्ञान प्राप्ति, उपासना, व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान, स्वस्थ्य आहार, व्यायाम, मनोरंजन व पिकनिक, साफ़ सुधरे कपड़े पहनना और किसी विशेष काम या कला में दक्ष होना उन विषयों में है जो व्यक्तिगत ज़िम्मेदारियों की श्रेणी में आते हैं। आइये अब हम जीवन में ज्ञान प्राप्ति और चिंतन मनन के महत्त्व पर चर्चा करते हैं और इस्लाम की दृष्टि से इसका महत्त्व बयान करेंगे।

 

चिंतन मनन हर काम और निर्णय के साथ होना चाहिए। शायद जीवन के मामलों में चिंतन मनन के न पाये जाने का मुख्य कारण सतही सोच है। चूंकि मनुष्य जल्दबाज़ होता है और उसे अपने दृष्टिगत चीज़ों को पान की जल्दी होती है, यही जल्दबाज़ी कारण बनती है कि अच्छा व बुराई, सुन्दरता व बदसूरती, सत्य व असत्य और सुधार व भ्रष्टता को पहचान नहीं पाते। यही कारण है कि बहुत सी व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक परेशानियों और अनुचित्ताओं की मुख्य जड़ बिना सोचे समझे काम करना है। पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से बयान किया गया है कि मैं सलाह देता हूं कि जब भी तुम कोई काम करने का इरादा रखो तो उसके परिणाम के बारे में सोचो, यदि विकास का कारण है तो उसे अंजाम दो और यदि तबाही का कारण बने तो उसे छोड़ दो।

 

भौतिक व अध्यात्मिक जीवन में चिंतन मनन की शक्ति की अनदेखी करना उसको कमज़ोर करने का कारण बनता है किन्तु चिंतन मनन व सोच विचार से लाभ उठाने के कारण बुद्धि की उपयोगिता बढ़ जाती है। निठल्ला जीवन व्यतीत करने से मनुष्य की सोचने की क्षमता को कम कर देता है। इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने एक साथी से जिसने आवश्यकता मुक्ति के कारण व्यापार को छोड़ दिया और निठल्ला जीवन व्यतीत करने लगा, कहा कि व्यापार और काम से लगे रहो कि बेरोज़गारी मनुष्य की बुद्धि को कम कर देती है।

 

दूसरी ओर इस्लाम धर्म ने स्वयं को अधिक कामों में उलझाने की निंदा और अधिक कामों से बचने को कहता है क्योंकि अधिक काम मनुष्य से उस काम के बारे में सोचने की क्षमता छीन लेता है जिसको वह अंजाम देता है और उसे कल्पनाओं, चिंताओं और विचारों में उलझा देता है।

 

मामलों में चिंतन मनन के अतिरिक्त ज्ञान की प्राप्ति भी इस्लाम की दृष्टि में पवित्र और श्रेष्ठ वास्तविकता है। इस्लाम धर्म ने ज्ञान की प्राप्ति का सम्मान करते हुए मुसलमानों पर बल दिया है कि वह किसी भी स्थिति में ज्ञान प्राप्त करें। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम पर हिरा नामक गुफा में उतरने पर पहली आयात ज्ञान के बारे में थी। इस आयत में ईश्वर स्वयं को मनुष्य को ज्ञान सिखाने वाला बताता है। पवित्र क़ुरआन में पढ़ने और पढ़ाने को ईश्वरीय दूतों की विशेषता बताया गया है। पवित्र क़ुरआन में एक अन्य स्थान पर अज्ञानियों पर ज्ञानियों की श्रेष्ठता के बारे में बात कही गयी है। पवित्र क़ुरआन में इसी प्रकार ज्ञानी और अज्ञानियों के समान न होने पर भी बल दिया गया है। इस्लाम की शिक्षाओं में बिना चिंतन मनन और ज्ञान के परिपूर्णता के मार्ग पर चलता असंभव बताया गया है। ईश्वर भी ज्ञानियों को विशेष महत्त्व देता है और उनको अज्ञानियों की तुलना में श्रेष्ठतम समझता है।

 

ज्ञान के महत्त्व के बारे में इतना ही काफ़ी है कि हर मुसलमान पुरुष और महिला पर इसकी प्राप्ति अनिवार्य की गयी और दिनचर्या के समस्त मामलों में और परलोक में सफलता, ज्ञान की प्राप्ति अलबत्ता लाभदायक व लाभप्रद ज्ञान पर निर्भर होता है। वह ज्ञान जो लाभ न पहुंचाए वह उस दवा की भांति है जो रोगी को लाभ न पहुंचाए। बुद्धिमत्ता और चिंतन मनन लोक परलोक के संबंध में मनुष्य की सोच को मज़बूत करते हैं और उसे इस बात पर सक्षम बनाते हैं कि वह लोक परोलक में अपने हितों की समीक्षा करे और अपने वास्तविक हित के अनुसार काम करे।

 

मनुष्य की आध्यात्मिक परिपूर्णता में चिंतन मनन की इतनी अधिक भूमिक है कि इस्लाम धर्म में चिंतन मनन को एक बेहतरीन उपासना के रूप में याद किया गया है और एक घंटे के चिंतन मनन के लिए सत्तर वर्ष की उपासना का पारितोषिक निर्धारित किया गया है। चिंतन मनन और सोच विचार मनुष्य की  बुद्धि व बौद्धिक शक्ति के प्रशिक्षण का कारण बनती है और इसके परिणाम स्वरूप मनुष्य श्रेष्ठ गंतव्य तक पहुंच जाता है।

 

जो कोई चिंतन मनन नहीं करता वह अपनी सृष्टि से निश्चेत रहता है और स्थिति में संभव है कि वह अनेकेश्वरवाद का शिकार हो जाए। इस आधार पर हर व्यक्ति को चौबीस घंटों के दौरान कुछ ही समय को ज्ञान प्राप्ति और अपनी जागरूकता बढ़ाने के लिए विशेष करना चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम सल्ललाहो अलैह व आलेही व सल्लम चिंतन मनन और ज्ञान प्राप्ति के महत्त्व के बारे में कहते हैं कि वह दिन जिसमें ज्ञान में वृद्धि न हो और मुझे ईश्वर से निकट न करे उस दिन का सूर्योदय मेरे लिए शुभ नहीं है।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हवाले से बयान किया गया है कि ज्ञान प्राप्त करो क्योंकि ज्ञान शरीर की क्षमता है। हज़रत अली अलैहिस्सलमा के इस वाक्य का तात्पर्य यह है कि ज्ञान, मनुष्य को बेहतरी जीवन यापन के लिए सशक्त करता है। शरीर के सशक्त होने से तात्पर्य ज्ञान की छत्रछाया में सांसारिक अनुकंपाओं से लाभान्वित होना है। पवित्र क़ुरआन के प्रसिद्ध व्याख्याकर्ता अल्लामा तबातबाई इस बारे में लिखते हैं कि चिंतन मनन जितना सही होगा उतनी अधिक जीवन में सुदृढ़ता आएगी। सुदृढ़ जीवन सही सोच विचार व चिंतन मनन पर निर्भर है और जीवन में जितना अधिक चिंतन मनन से लाभ उठाया जाएगा जीवन उतना ही सुदृढ़ होगा।

 

दूसरी ओर बहुत से कथनों में ज्ञान की प्राप्ति को धर्म की परिपूर्णता के रूप में याद किया गया है। यहां पर ज्ञान से तात्पर्य वह ज्ञान है जो मनुष्य को कल्याण और परिपूर्णता के मार्ग की ओर ले जाता है न कि वह ज्ञान जो मनुष्य को पथभ्रष्टता की खाई में गिरा देता है। हर ज्ञान को मार्गदर्शन से संपन्न होना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अपने ज्ञान में वृद्धि करता है किन्तु उसके उपदेशों से उसके मार्गदर्शन में वृद्धि न हो तो वह ज्ञान ईश्वर से दूरी का कारण बनता है। प्रत्येक दशा में यह परिणाम निकाला जा सकता है कि इस्लाम धर्म की शिक्षाओं में ज्ञान को जीवन के श्रेष्ठ लक्ष्यों की सेवा में होना चाहिए न यह कि मनुष्य की पथभ्रष्टता का कारण बनना चाहिए। इस प्रकार से कुछ विषयों में चिंतन मनन की अधिक आवश्यकता होती है। जैसे एकेश्वरवाद, परलोक और ईश्वरीय मार्गदर्शन अर्थात नबूअत में अधिक से अधिक चिंतन मनन करना चाहिए। जब वैचारिक तर्कों के माध्यम से आस्था के आधार मज़बूत हो जाएंगे तो मनुष्य अपनी जीवन शैली में निसंदेह सकारात्मक प्रभाव का साक्षी होगा।

दूसरी ओर इस्लाम धर्म में उस ज्ञान की प्राप्ति के लिए बहुत अधिक बल दिया गया है जो दिनचर्या और हर समय व काल की आवश्यकता हो। इस्लाम धर्म की शिक्षाओं में हर उद्योग व हर उस पेशे को सीखने पर बल दिया गया है जो समाज और लोग के लिए आवश्यक हो। यदि यह काम पाप और भ्रष्टता की ओर न ले जाए तो उसका सीखना अनिवार्य है। इस आधार पर पता चला कि समाज व लोगों के विकास के लिए हर प्रकार के वैज्ञानिक व शोध संबंधी प्रयास का विशेष महत्त्व है। संक्षेप में यह कि चिंतन मनन और ज्ञान की प्राप्ति इस्लामी जीवन शैली में महत्त्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में पेश किया गया है और यह सभी लोगों की ज़िम्मेदारी है और ज्ञान से सही लाभ उठाते हुए उचित मार्ग का चयन किया जा सकता है और आदर्श जीवन का स्वामी बना जा सकता है।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

वहाबियों और सुन्नियों में ...
नमाज.की अज़मत
नक़ली खलीफा 3
दुआ ऐ सहर
क़ुरआन
आदर्श जीवन शैली-६
चेहलुम के दिन की अहमियत और आमाल
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलमा का जन्म ...
म्यांमार अभियान, भारत और ...

 
user comment