मुहर्रम के आने के साथ ही करबला वालों की याद हृदयों में पुनःजीवित हो जाती है। हर व्यक्ति अपने स्तर से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पवित्र आन्दोलन से स्वंय को जोड़ने का प्रयास करता है। इसका कारण यह है कि इमाम हुसैन का आन्दोलन मात्र एक युद्ध नहीं था बल्कि यह आन्दोलन नैतिकता का उच्च पाठ है।वह समय जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपना आन्दोलन आरंभ किया था बड़ी संख्या में कूफ़ावासियों को पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों का समर्थक एवं चाहने वाला माना जाता था। वे लोग उमवी शासक यज़ीद के भ्रष्टाचार, उसके अत्याचार और उस दुष्ट की अयोग्यता से अवगत थे तथा साथ ही वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के उच्च स्थान एवं उनके महत्व को भलिभांति जानते थे इसके बावजूद कूफ़ेवालों में से बहुत ही कम लोगों ने इमाम हुसैन की सहायता की। यहां पर देखना यह है कि इमाम के साथियों में वे कौन सी विशेषताएं थीं जिनके कारण उन्होंने उस काल में इमाम पर अपनी जान न्योछावर की कि जब अधिकांश लोग निश्चेतना की गहरी नींद में थे। निश्चित रूप से इमाम हुसैन के निष्ठावान साथियों की विशेषताओं में सबसे स्पष्ट विशेषता, बलिदान व त्याग की भावना थी। करबला की घटना को इमाम के निष्ठावान बलिदानी साथियों की पहचान प्राप्त किये बिना समझना संभव नहीं है जिन्हें उनकी दूरदृष्टि करबला लाई थी।इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों की स्पष्ट विशेषताओं में से एक विशेषता उनका विश्वास और उस मार्ग की गहरी पहचान थी जिसपर उन्होंने क़दम बढ़ाया था। विश्वास, मनुष्य के संकल्प को उस मार्ग के प्रति सुदृढ कर देता है जो उसके सामने होता है। विश्वास उस ज्वाला की भांति है जो संदेह और शंकाओं को जलाकर राख कर देती है। अगर पहचान न हो तो फिर पथभ्रष्टता अस्तित्व में आती है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथी गहरी पहचान रखते थे। उनको पता था कि वे किसकी सहायता के लिए आए हैं और कहां जा रहे हैं। वे सही और ग़लत दोनों रास्तों को भलिभांति जानते थे। इमाम हुसैन के साथियों की ईश्वरीय मूल्यों की रक्षा की भावना तथा उनके निकट इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महान स्थान और महत्व को उनके उन कथनों से समझा जा सकता है जो उन्होंने युद्ध में जाते समय कहे हैं। इस बात को जिस प्रकार से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के १४ वर्षीय भतीजे क़ासिम बिन हसन के वक्तव्यों में देखा जा सकता है। इसी प्रकार यह भावना ८३ वर्षीय उनके साथी हबीब इब्ने मज़ाहिर के वक्वयों में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। ऐसा लगता है मानो इमाम हुसैन के ७२ साथियों के भीतर एक ही आत्मा थी।मित्रो हम आपको करबला में इमाम हुसैन के एक साथी के जीवन के बारे में कुछ संक्षेप से बताते हैं। सफेद और लंबे बाल, तेजस्वी मुख और चमकती हुई आंखों ने उन्हें सबसे भिन्न रूप दिया था। वे कुछ विलंब से करबला के लिए निकले । हबीब इब्ने मज़ाहिर घोड़े पर सवार होकर इमाम हुसैन के एक अन्य अनुयाई मुस्लिम इब्ने औसजा के साथ कूफ़े से बाहर आए। यद्यपि हबीब इब्ने मज़ाहिर की आयु सत्तर वर्ष है किंतु वे फुर्तीले युवा की भांति घोड़ा दौड़ा रहे हैं ताकि स्वयं को करबना पहुंचाएं। दो घनिष्ठ मित्र जिन्हें विगत में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सेवा का गौरव प्राप्त रहा है अब वे उनके पुत्र की सहायता के लिए आगे बढ़ रहे हैं। हबीब इब्ने मज़ाहिर मार्ग में थोड़ा रूककर पीछे की ओर देखते हैं। उनके पीछे कूफ़े नगर के अंधकार के अतिरिक्त कुछ अन्य दिखाई नहीं दे रहा है। विश्वासघाती नगर। हबीब उन दिनों को याद करते हैं कि जब कुफेवाले इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दूत मुस्लिम इब्ने अक़ील के स्वागत के लिए बड़ी खुशी-खुशी आगे आए थे। जब कूफेवालों ने यह सुना कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कूफ़ा आने वाले हैं तो उन्होंने खुशी के आंसू बहाए थे। किंतु धमकी, लालच और धोखे के कारण कल के मित्र आज शत्रु के सहायक बन गए थे।हबीब इब्ने मज़ाहिर और मुस्लिम इब्ने औसजा ने करबला की ओर अपने मार्ग पर बढ़ना जारी रखा। हबीब, कल की शाम को याद कर रहे थे कि जब उन्होंने अपने परिवार से विदाई ली थी क्योंकि उनकी दृष्टि में यह उनकी ऐसी यात्रा थी जिससे वापसी संभव नहीं थी।मुस्लिम इब्ने औसजा के साथ हबीब इब्ने मज़ाहिर छह मुहर्रम को करबला पहुंचे , इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने हबीब इब्ने मज़ाहिर को गले लगाया और उन्होंने अपने स्वामी और आक़ा की सेवा में अपनी उपस्थिति के प्रति आभार प्रकट करने के लिए रोते हुए करबला की धरती पर सजदा किया। अब करबला थी और हबीब थे, इमाम के सबसे बूढ़े साथी।रातों के समय हबीब इब्ने मज़ाहिर की क़ुरआन पढ़ने की आवाज़ करबला के वातावरण में गूंजती थी। पवित्र क़ुरआन से उन्हें हार्दिक लगाव था। इबीब इब्ने मज़ाहिर शत्रु के सैनिकों से कभी-कभी बात भी करते थे कि शायद वह अपने फैसले से पलट जाएं। वे उन्हें सबोधित करते हुए कहते थे कि हे लोगो, तुम बुरे लोग हो। कल पत्र लिखकर तुमने ही इमाम हुसैन को आमंत्रित किया था और आज तुमने अपना ही वचन तोड़ दिया और अपने वचन का बिल्कुल भी सम्मान नहीं किया। यदि तुमने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नवासे की उनके परिजनों और उनके निष्ठावान साथियों के साथ हत्या कर दी तो प्रलय के दिन तुम्हारे पास क्या जवाब होगा? आशूर की रात बलिदान की भावना से हबीब का पूरा अस्तित्व भावविभोर था । इमाम हुसैन का यह आदेश उन तक पहुंचा कि कल के लिए स्वयं को तैयार करो जिसमें शहादत के अतरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है। हबीब की क़ुरआन की तिलावत और दुआओं की आवाज़ हृदयों पर अपना प्रभाव डाल रही थी। आधी रात व्यतीत हो चुकी थी। ऐसे में ख़ैमे में हबीब की आवाज़ गूंजी। नाफ़ेअ बिन हेलाल परेशानी की स्थिति में हबीब के निकट पहुंचे। हबीब ने उनकी चिंता का कारण पूछा। नाफ़ेअ बिन हेलाल ने कहा मैंने ख़ैमों के किनारे अपने स्वामी इमाम हुसैन को देखा जो धरती से कांटे चुन रहे थे। मैं भी उनके साथ हो लिया। इमाम ने कहा कि मैं कांटे चुन रहा हूं कि ताकि कल जब ख़ेमे लूटे जाएं और उनमें आग लगाई जाए तो ख़ेमों के बाहर निकलते समय मेरे परिजनों के पैरों में कांटे न चुभें। मैंने भी कांटे चुनने में इमाम की सहायता की। मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे और हाथों से ख़ून। कुछ समय पश्चात जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ख़ैमों में वापस जाने लगे तो मैं भी उनके पीछे-पीछे गया। इमाम अपनी बहन ज़ैनब के ख़ैमे में गए। मैने सुना की अली की सुपुत्री हज़रत ज़ैनब कह रही थीं कि भाई क्या आपने साथियों को परख लिया है ? कहीं कल युद्ध में वे आपका साथ छोड़कर न चले जाएं? नाफ़े ने कहा कि हे हबीब, पैग़म्बर की बेटी कल के बारे में चिन्तित हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें हमपर भरोसा नहीं है। चलो चलते हैं और उनके समक्ष अपनी निष्ठा और वफ़ादारी सिद्ध करते हैं।उस रात जब हबीब इब्ने मज़ाहिर, इमाम हुसैन की बहन की चिंता से अवगत हुए तो वे अपने कुछ साथियों के साथ उनके ख़ैमे के पीछे गए और कहा, हे पैग़म्बर की बेटी, यदि इसी समय मेरे स्वामी इमाम हुसैन आदेश दें तो मैं शत्रु के साथ युद्ध करने के लिए तैयार हूं और अपनी जान उनपर न्योछावर कर दूंगा ।हबीब कहते जा रहे थे और रोते जा रहे थे। उनकी बात पर हज़रत ज़ैनब उनकी प्रशंसा करते हुए कहने लगीं । धन्य हो हे मेरे भाई के साथियो, तुम लोग पैग़म्बर की बेटियों के ख़ैमों की रक्षा करना।इमाम हुसैन की आवाज़ हबीब के कानों में पहुंची। हे मेरी बहन, मैने अपने साथियों की परीक्षा लेली है। ईश्वर की सौगंध मैंने उनको चट्टान की भांति सुदृढ पाया है। आशूर की रात को हबीब ने अपने साथियों से कहा, कल हमको ही रणक्षेत्र का पहला शहीद होना चाहिए। जब तक हम लोग हैं उस समय तक हम इमाम हुसैन के परिजनों में
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