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Tuesday 26th of November 2024
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धार्मिक प्रशिक्षा -4

हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने सुपुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम को संबोधित करते हुए फरमाते हैं” बच्चे का दिल खाली ज़मीन की भांति होता है जो भी उसमें बोया जायेगा वही उगेगा। मैंने तुम्हारी प्रशिक्षा बचपन और तुम्हारा
धार्मिक प्रशिक्षा -4

हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने सुपुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम को संबोधित करते हुए फरमाते हैं” बच्चे का दिल खाली ज़मीन की भांति होता है जो भी उसमें बोया जायेगा वही उगेगा। मैंने तुम्हारी प्रशिक्षा बचपन और तुम्हारा दिल सख्त होने से पहले आरंभ किया”
 
 
 
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बयान के अनुसार बचपने में बच्चों की प्रशिक्षा आरंभ करने का महत्वपूर्ण कारण यह है कि बाल्याकाल में उसका हृदय हर प्रकार के पाप से पवित्र व स्वच्छ होता है। उसके हृदय में सच्चाई, ईमान और निष्ठा का बीज बोया जा सकता है और कुफ्र, अनेकेश्वरवाद, झूठ और दिखावे जैसी चीज़ों का भी बीज बोया जा सकता है। प्रशिक्षा विशेषज्ञों ने बच्चे की आत्मा की उपमा छोटे पौधे से दी है जिसे आसानी से झुकाया जा सकता है। इस प्रकार से कि अगर वह पथभ्रष्ठ हो जाये तो थोड़े से प्रयास से उसे सुधारा जा सकता है परंतु जब वह बड़ा हो जाये तो उसे सुधारना कठिन हो जाता है जिस तरह जब पौधा छोटा होता है और वह टेढ़ा हो जाये तो उसे बड़ी आसानी से सीधा किया जा सकता है परंतु जब वह बड़ा हो जाता है तो उसे सीधा करने के लिए लकड़ी आदि का सहारा नहीं लिया जाता है।
 
 
 
 
 
हालिया वर्षों में समाजशास्त्रियों एवं मनोचिकित्कों का ध्यान इस ओर गया है कि बच्चों के दिमाग़ के विकास में घर के वातावरण का अवश्य प्रभाव पड़ता है  जबकि इस्लाम की महान हस्तियां सदियों से इस बात पर बल देती रही हैं कि बच्चों के मानसिक विकास पर घर के वातावरण का प्रभाव पड़ता है और माता- पिता बच्चों के मानसिक और ग़ैर मानसिक विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकते हैं।
 
अध्ययन इस बात के सूचक हैं कि माता- पिता खाना खाने के समय दुआ देकर, दान देकर, ग़रीबों और निर्धनों की सहायता करके बच्चों के आध्यात्मिक विकास में सहायक बन सकते हैं।
 
बच्चों के विकास में धार्मिक परिवारों के प्रभाव के बारे में विभिन्न अध्ययन किये गये हैं। इनमें दो अध्ययन दो अमेरिकियों dollahite और marks ने अंजाम दिया है। इन लोगों ने ७२ धार्मिक परिवारों पर अध्ययन किया है जिनमें मुसलमान, ईसाई और यहूदी शामिल हैं। वे लोग इस परिणाम पर पहुंचे कि महान ईश्वर पर भरोसा, दुआ के माध्यम से आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान, दूसरों को क्षमा कर देना, पापों से दूरी और परोपकार एवं परित्याग जैसे कार्य बच्चों के आध्यात्मिक विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। इसी प्रकार इन दो अमेरिकी अध्ययनकर्ताओं ने १० से २० वर्ष आयु के युवाओं पर अध्ययन किया है। परिणाम इस बात के सूचक हैं कि जो धार्मिक परिवार हैं उनके बच्चों और नौजवानों पर उस परिवार की आस्थाओं का प्रभाव पड़ता है। जब धार्मिक परिवार के बच्चों से साक्षात्कार लिया गया तो उन्होंने बताया कि उनके धार्मिक विचार व आस्था का मुख्य कारण उनका परिवार है।
 
 
 
 
 
इसी प्रकार इस संबंध में दूसरे अध्ययन भी किये गये हैं जो इस बात के सूचक हैं कि धार्मिक मामलों में स्वतंत्र रूप से बहस करने का बच्चों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अगर धार्मिक बहसें बच्चों की आयु के अनुसार होती हैं तो और अधिक प्रभाव पड़ता है। माता -पिता और बच्चों के बीच आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा से धार्मिक शिक्षाओं से अवगत होने के लिए बच्चों  में भूमि प्रशस्त होती है। अगर धार्मिक विषयों पर माता- पिता स्वतंत्र रूप से बच्चों से बात करते हैं और उन्हें बताते हैं तो बच्चों के दिमाग़ में जो प्रश्न आते हैं वे उसे स्वतंत्र व आज़ाद रूप से अपने माता- पिता के घर के दूसरे सदस्यों से पूछ लेते हैं। जब माता -पिता स्वतंत्र रूप से धार्मिक विषयों के बारे में बच्चों से बात करते हैं तो बच्चों पर वे अपने दृष्टिकोणों को नहीं थोपते हैं। इस प्रकार अध्ययनकर्ता धार्मिक विषयों व शिक्षाओं से अवगत होने के लिए परिवार की भूमिका को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। इसी प्रकार अध्ययनकर्ता इस बिन्दु पर बल देते हैं कि अधिकांशतः धार्मिक विश्वास व शिक्षाओं का स्रोत परिवार होते हैं और वह भी बाल्याकाल में।
 
 
 
 
 
धार्मिक कहानियों का बयान भी वह शैली है जो बच्चों के धार्मिक व अध्यात्मिक विकास  में महत्वपूर्ण भूमिका रखती है। अधिकांश बच्चे कहानियों को सुनना पसंद करते हैं और माता- पिता अच्छी- अच्छी कहानियों को बयान करके बच्चों को धार्मिक शिशाएं दे सकते हैं। बच्चों से कहानी कहने से माता- पिता और बच्चों के बीच का संबंध और प्रगाढ़ होता है। धार्मिक कार्यों व संस्कारों के अंजाम देने से बच्चों एवं नौजवानों में अध्यात्मिकता का बीज बोया जाता है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम सुन्दर व लाभदायक संस्कारों से भरा पड़ा है जिसे महान ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने के लिए लोग अंजाम देते हैं। जैसे नमाज़, रोज़ा, हज,धार्मिक स्थलों का दर्शन, दान और परोपकार जैसे कार्य बच्चों एवं नौजवानों में धार्मिक मूल्य स्थानांतरित करने के महत्वपूर्ण कार्य हैं।  परिवार में माता- पिता भाई- बहन और दादा- दादी के अतिरिक्त जिन लोगों का बच्चों से संपर्क होता है वे बच्चों में धार्मिक भावनाओं को परवान चढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। माता की भूमिका के बारे में अंजाम दिये गये विभिन्न शोध बहुत महत्वपूर्ण हैं परंतु प्रश्न यह है कि बच्चों की प्रशिक्षा में माता की भूमिका इतनी अधिक क्यों महत्वपूर्ण है? इस संबंध में अध्ययनकर्ताओं ने जो शोध किया है उसके आधार पर यहां कई बातें बयान की गयी हैं।
 
 
 
पहली बात यह है कि महिलाएं धार्मिक संस्कारों व कार्यों को अंजाम देने में अधिक रुझान रखती हैं। दूसरा कारण यह है कि अधिकांश समय मां ही बच्चों के साथ घर में रहती है इसलिए बच्चों के प्रशिक्षण में वह अधिक भूमिका निभा सकती है। महिलाएं मातृत्व की भावना के कारण बच्चों की भावना के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। इस प्रकार बच्चे और नौजवान अपने दिल की बात बाप की अपेक्षा मां से अधिक सरलता से बयान कर देते हैं और चूंकि धार्मिक आस्थाएं व बातें हार्दिक चीज़ें हैं इसलिए बच्चे व नौजवान इस संबंध में मां से बात करने को प्राथमिकता देते हैं। अलबत्ता यह बात नहीं भूलना चाहिये कि कुछ परिवारों में इस भूमिका का निर्वाह पिता करते हैं। जिन परिवारों में धार्मिक व आध्यात्मिक मूल्यों की प्रशिक्षा के लिए पिता प्रयास करते हैं उनके अधिक अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। जो पिता अपने बच्चों की प्रशिक्षा के लिए अधिक समय देते हैं, उनकी आवश्यकताओं पर ध्यान देते हैं उनके बच्चों के संबंध उनसे और अधिक मज़बूत व प्रगाढ़ हो जाते हैं और अपने दिल की बातों को बड़ी सरलता से अपने पिता से बयान कर देते हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि आज की जटिल दुनिया में माता –पिता बच्चों की प्रशिक्षा के लिए जो शैली अपनाते हैं वह बच्चों के लिए निर्णायक है।
 
 
 
यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि धार्मिक प्रशिक्षा से उद्देश्य वास्तविकता के प्रति मनुष्य के प्रेम को मज़बूत करना है जिसे महान ईश्वर ने हर इंसान की प्रवृत्ति में रखा है। बच्चों की प्रशिक्षा में माता – पिता की कला यह होनी चाहिये कि वे धार्मिक प्रशिक्षा में बच्चों के लिए महान ईश्वर की पैदा की हुई रोचक निशानियों को बयान करें और महान ईश्वर तथा अपने बच्चों के संबंधों को मज़बूत करें। दूसरी ओर माता –पिता को चाहिये कि वह बच्चों और नौजवानों के धार्मिक दृष्टिकोणों को बेहतर बनाने के लिए प्रेम, कृपा, धैर्य और सच्चाई जैसी विशेषताओं के बारे में अपने अनुभवों को स्थानांतारित करें। (MM)


source : irib.ir
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