![ईश्वरीय वाणी-४४ ईश्वरीय वाणी-४४](https://erfan.ir/system/assets/imgArticle/2015/08/70155_464826_m.jpg)
हमने बताया था कि सूरए क़सस, पैग़म्बरे इस्लाम के मक्का पलायन करने से पहले उतरा था। इस सूरए में वर्णित कथाओं के दौरान एकेश्वरवाद, प्रलय, पवित्र क़ुरआन के महत्त्व, प्रलय में अनेकेश्वरवादियों की स्थिति, मार्गदर्शन, पथभ्रष्टता तथा अन्य विषयों के बारे में महत्त्वपूर्ण पाठ सीखने को मिले।
सूरए क़सस की 51वीं आयत के बाद से कुछ आयतों में साफ़ दिलों और तैयार दिलों के बारे में बात की गयी हैं जो क़ुरआन की आयतों को सुनकर वास्तविकता को समझ जाते हैं और पूरे दिल व जान से उसे स्वीकार करते हैं जबकि यह साफ़ सुथरी वास्तवकिता, अज्ञानी और कट्टरपंथियों के अंधकारमयी दिलों पर बहुत कम ही प्रभाव डालती है। पवित्र क़ुरआन की व्याख्याओं में आया है कि यह आयतें, सत्तर ईसाई पादरियों के बारे में उतरी है जिन्हें हबशा के बादशाह नज्जाशी ने वास्तविकता की पहचान के लिए हबशा से मक्का भेजा गया था। जब पैग़म्बरे इस्लाम ने पवित्र क़ुरआन की कुछ आयतें उनके लिए पढ़ीं तो उनकी आंखों से उत्साह के आंसू जारी हो गये और उन्होंने तुरंत इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया।
और हमने निरंतर उन लोगों तक अपनी बातें पहुंचाई कि शायद इस प्रकार नसीहत प्राप्त करलें। जिन लोगों को हमने इससे पहले किताब दी है वह इस क़ुरआन पर ईमान रखते हैं और जब उनके सामने इस की तिलावत की जाती है तो कहते हैं कि हम ईमान ले आए, यह हमारे ईश्वर की ओर से सत्य है और हम तो पहले ही से स्वीकार किए हुए थे।
इन आयतों में इसी प्रकार एक के बाद एक निरंतर शिक्षाएं दी गई हैं, विभिन्न रूपों में, कभी नसीहत और उपदेश के रूप में, कभी चेतावनी और धमकी के रूप में, कभी बौद्धिक तर्कों द्वारा तो कभी अतीत के लोगों की पाठ सीखने योग्य घटनाओं द्वारा। यह संपूर्ण और बहुत प्रभावशाली संग्रह है जिसे हर तैयार दिल समझ सकता है और उसकी ओर आकर्षित हो सकता है।
यहूदी और ईसाई जिनके पास पहले से ईश्वरीय पुस्तक थी, पवित्र क़ुरआन पर ईमान ले आए क्योंकि वे उसे उनके पास मौजूद चिन्हों से समन्वित देखते थे। जब यह आयतें उनके सामने पढ़ी गयीं तो उन्होंने कहा कि हम ईमान ले आए। यह पूर्ण रूप से सत्य है और हमारे ईश्वर की ओर से है। हम न केवल आज अपने ईश्वर की आयतों को स्वीकार कर रहे हैं कि इससे पहले भी हम मुसलमान थे। हमने इस ईश्वरीय दूत की निशानियों को अपनी पुस्तक में देखा है और बहुत ही बेसब्री से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। इसीलिए जब हमने अपने खोये हुए रिश्तेदार को पा लिया तो सबसे पहले पूरे दिल व जान से उनके सत्य को स्वीकार किया और उनकी लायी हुई चीज़ों पर ईमान ले आए।
पवित्र क़ुरआन सत्य के प्रेमी इस गुट के भव्य पारितोषिक की ओर संकेत करते हुए कहता है कि उन्होंने अपने धैर्य के कारण दो बार पारितोषिक पाया, क्योंकि वे ईश्वरीय पुस्तकों पर ईमान रखते थे और उसके प्रति निष्ठावान और उस पर कटिबद्ध थे। वे पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लाने के कारण जिनका उनकी पुस्तकों में वर्णन किया गया है, पारितोषिक का पात्र बने।
उसके बाद उनकी विशेषताओं और गुणों की ओर संकेत किया गया। वह लोग हैं जिन्होंने ने काम किए, बुराईयों से दूर रहे। बजाए इसके कि वह बुराई का जवाब बुराई से देते, नेकी से जवाब दिया और जो आजीविका उन्होंने प्रदान की उसे उन्होंने ईश्वर की राह में ख़र्च किया। वे कभी भी बुरी बात नहीं करते और अज्ञान लोगों से बहुत अच्छे ढंग से मिलते हैं।
पवित्र क़ुरआन के सूरए क़सस की आयत संख्या 76 से 82 तक में धनाड्य और घमंडी क़ारून की कहानी का वर्णन किया किया है जिसने बहुत सारी धन संपत्ति एकत्रित कर रखी थी। आरंभ में क़ारून मोमिनों में था किन्तु निश्चेतना और घमंड के कारण पथभ्रष्ट हो गया था। धन के घमंड ने उसे अनेकेश्वरवाद की खाई में ढकेल दिया और अंततः वह ईश्वर के महान दूत हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से संघर्ष पर उतारू हो गया। इसका परिणाम यह निकला कि उसकी धन संपत्ति उसकी तबाही का कारण बन गयी और उसकी मौत दूसरों के लिए पाठ बन गयी।
क़ारून हज़रत मूसा के सगे संबंधियों में था और उसे तौरेत का काफ़ी ज्ञान था। उसके पास बहुत अधिक सोने चांदी और हीरे जवाहेरात थे। पवित्र क़ुरआन के अनुसार, उसके पास इतनी धन संपत्ति थी कि उसके पास मौजूद सोने औ हीरे से भरी पेटियां, शक्तिशाली मज़दूरों के बस की बात नहीं थी। यहां पर आपको यह बताते चलें कि इस्लामी संस्कृति में, धन संपत्ति स्वयं बुरी नहीं है बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि यह धन संपत्ति कैसे प्राप्त हुई और किन मार्गों पर ख़र्च हो रही है। प्रत्येक दशा में पवित्र क़ुरआन क़ारून के भविष्य की ओर संकेत करता हैः
निसंदेह क़ारून मूसा की जाति में से था किन्तु उसने जाति पर अत्याचार किया और हमने भी उसे इतने ख़ज़ाने दिए था कि एक शक्तिशाली गुट से भी उसकी कुंजियां नहीं उठ सकती थीं फिर जब उस से जाति ने कहा कि इतना न इतराव कि ईश्वर इतराने वालों को पसंद नहीं करता है और जो कुछ ईश्वर ने दिया है कि उससे प्रलय के घर का प्रबंध करो और दुनिया में अपना भाग भूल न जाओ और भलाई करो जिस प्रकार ईश्वर ने तुम्हारे साथ भलाई की है और धरती में भ्रष्टाचार का प्रयास न करो कि अल्लाह भ्रष्टाचार फैलाने वालों को पसंद नहीं करता है।
यह एक वास्तविकता है कि हर एक की संसार में एक सीमित और निर्धारित भाग है, अर्थात उसके खाने पीने, घर और आवश्यकता के लिए जितने पैसे की आवश्यकता होती है उसकी मात्रा सीमित है। बाक़ी माल दूसरों का भाग है और उनको विरासत में मिलता है और मनुष्य वास्तविकता में उनका अमानत दार होता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस बिन्दु को बहुत ही सुन्दर ढंग से पेश करते हैः हे आदम की संतान, जो भी तुम्हारे खान पान से अधिक तुम्हारे हाथ लगे, उसके बारे में ख़ज़ाने के मालिक होते हैं।
चूंकि संसार में कुछ धनाड्य लोग धन संपत्ति को जमा करने और दूसरों पर वर्चस्व जमाने के लिए समाज को निर्धनता की खाई में ढकेल देते हैं और हर चीज़ पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं। पवित्र क़ुरआन क़ारून और समस्त धनाड्य लोगों को याद दिलाता है कि यह भौतिक संभावनाएं तुम्हें धोखा न दें, इन को ज़मीन पर भ्रष्टाचार फैलाने के लिए प्रयोग न करो किन्तु क़ारून न माना और घमंड पर उतार रहा कि उसके पास बेहिसा धन दौलत है। उसने कहा कि यह धन दौलत तो मैंने अपनी चतुराई और ज्ञान से प्राप्त की है। उसी स्थान पर पवित्र क़ुरआन क़ारून और उस जैसों का ठोस उत्तर देते हुए कहता है कि क्या वह नहीं जानता कि ईश्वर ने उस से पहले भी जातियों को तबाह किया जो उससे अधिक शक्तिशाली और धनाड्य थे।
बहुत से धनाड्य लोगों में कुछ बुराईयां पायी जाती हैं जिनमें से एक यह है कि वह अपने पैसों का रोब दूसरों पर मारते हैं। वह अपने पैसों का धौंस जमा कर दूसरों का अपमान करते हैं और इस काम से आनंदित होते हैं। कभी कभी यही पैसों का रोब उनकी जान के लिए मुसिबत बन जाता है क्योंकि दूसरों के दिल में ईर्ष्या पैदा होती है और उसके विरुद्ध भावनाओं को भड़काते हैं। यही रोब व दबदबा एक दिन उनकी धन संपत्ति को निगल जाता है और उनके जीवन को तबाह व बर्बाद कर देता है।
क़ारून अपने वैभव का प्रदर्शन करने के लिए समस्त आभूषणों और सोने व हीरे पहन कर अपनी जाति के सामने प्रकट होता था और यह दृश्य देखकर वह लोग जिनके मन में संसार का प्रेम भरा हुआ था, लालसा से कहते थे कि काश जितनी क़ारून के पास धन संपत्ति है उतनी ही हमको भी मिल जाती, वास्तव में वह अपार अनुकंपाओं का स्वामी है किन्तु इसके विपरीत जो लोग जागरूक और वास्तविकता से अवगत थे कहते थे कि धिक्कार हो तुम पर, तुम क्या बकते हो, जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने ने भले काम किए ईश्वर ने उनको जो पारितोषिक दिया है वह इस धन संपत्ति से बेहतर है।
एक दिन की बात है कि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने क़ारून से इच्छा व्यक्त की कि अपनी धन दौलत में से ज़कात निकाले किन्तु उसने यह काम नहीं किया और कुछ लोगों को हज़रत मूसा के विरुद्ध उकसा दिया। क़ारून ने हज़रत मूसा पर निराधार आरोप लगाने में भी तनिक संकोच नहीं किया और इस प्रकार उसकी उदंडता अपने चरम पर पहुंच गयी। यहीं से ईश्वरीय प्रतिशोध आरंभ होता है। ईश्वर ने क़ारून और उसके घर को ज़मीन की गहराई में धंसा दिया और कोई भी गुट ईश्वरीय प्रकोप से उसे बचा नहीं सका और वह भी यह नहीं जानता था कि कैसे अपने सगे संबंधियों को बचा सके। इस प्रकार से ईश्वर ने उदंडी क़ारून और उसके साथियों की नाक रगड़ दी और उसका भविष्य सबके लिए पाठ बन गया।
बाद की आयत, कल तक तमाशा देखने वालों की स्थिति को बयान करती है जो क़ारून की धन दौलत और उसके वैभव को देखकर लालसा का शिकार हो गये थे और कहते थे कि काश जितनी दौलत क़ारून को मिली है उतनी दौलत हमें भी मिल जाती। आयत कहती है कि कल तक तमाशा देखने वाले जो यह कामना करते थे कि मैं भी उसकी तरह होता जब उन्होंने क़ारून की तबाही और उसकी दुर्दशा देखी तो कहने लगे कि धिक्कार हो हम पर, ईश्वर जिसको चाहे धन दौलत दे और जिस पर चाहे ज़िंदगी तंग कर दे। यदि ईश्वर ने हमारे ऊपर परोप न किया होता तो वह हमें भी धरती में धंसा देता। आज हम पर यह सिद्ध हो गया कि किसी के पास अपना कुछ भी नहीं है जो कुछ भी है वह अल्लाह की ओर से है।
हमने बताया था कि क़ारून, आत्ममुग्ध और घमंडी धनाड्य लोगों का प्रतीक है जिसकी दुर्दशा की ओर पवित्र क़ुरआन ने बहुत ही रोचक ढंग से संकेत किया गया है। यह कहानी, इस वास्तविकता को बयान करती है कि कभी धन दौलत का घमंड और रौब, मनुष्य को पागल कर देता है और यही पागल पन उसे अपने धन दौलत को दिखाने और लोगों पर रोब व दबदबा बनाने तथा घमंड पर उत्तेजित करता है और पैसे पर घमंड और उससे अपार प्रेम के कारण ही संभव है कि इंसान बुरे काम करने लगे और ईश्वर तथा सत्य के मुक़ाबले में उठ खड़ा हो। (AK)
source : irib.ir