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Tuesday 30th of April 2024
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घर परिवार और बच्चे-७

ईश्वर ने मनुष्य को जीवन प्रदान करके उसके सामने एक लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य है, समस्त प्रतिभाओं और क्षमताओं का उपयोग करते हुए संपूर्ण मनुष्य बनना। जीवन प्रदान करने वाले और लक्ष्य का निर्धारण करने वाले ईश्वर ने जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कुछ क़ानून और दिशानिर्देश इंसान के अधिकार में दिए। इन्हीं क़ानूनों और दिशानिर्देशों का दूसरा नाम इस्लाम है। यही कारण है कि मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए इस्लाम उसके जीवन के हर बिंदु को विभिन्न आयामों से देखता है और आवश्यक दिशानिर्देश देता है। इं
घर परिवार और बच्चे-७

ईश्वर ने मनुष्य को जीवन प्रदान करके उसके सामने एक लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य है, समस्त प्रतिभाओं और क्षमताओं का उपयोग करते हुए संपूर्ण मनुष्य बनना। जीवन प्रदान करने वाले और लक्ष्य का निर्धारण करने वाले ईश्वर ने जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कुछ क़ानून और दिशानिर्देश इंसान के अधिकार में दिए। इन्हीं क़ानूनों और दिशानिर्देशों का दूसरा नाम इस्लाम है। यही कारण है कि मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए इस्लाम उसके जीवन के हर बिंदु को विभिन्न आयामों से देखता है और आवश्यक दिशानिर्देश देता है। इंसान को भटकाव की अथाह गहरी खाईयों में गिरने से रोकता है और उसे मानवता के शिखर पर पहुंचा देता है। जिस तरह एक इंसान जब अपने खेत में कोई फ़सल बोना चाहता है तो वह खेत में सीधे जाकर दानें नहीं छिड़कता है, बल्कि वह ज़मीन को तैयार करता है और उसे जोतकर नर्म करता है और खाद डालकर उसे ताक़तवर बनाता है। ज़मीन जब फ़सल बोने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती है तो वह फ़सल बोता है। लेकिन इसके बाद भी यहां उसकी ज़िम्मेदारी ख़त्म नहीं हो जाती, बल्कि समय समय पर फ़सल की देखभाल और उसकी दूसरी ज़रूरतों को पूरा करना ज़रूरी होता है, वरना वह अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगा।
 
 
 
 
 
इसी तरह इस्लाम की नज़र में मनुष्य के पालन-पोषण और बच्चों की परवरिश का सिलसिला गर्भ धारण या गर्भावस्था से नहीं, बल्कि इससे काफ़ी पहले शुरू हो जाता है। इसके लिए जितनी भी औपचारिकताएं होती हैं, इस्लाम उन्हें महत्वपूर्ण क़रार देता है।
 
इस्लामी शिक्षाएं उससे काफ़ी पहले जीवन साथी के चयन, गर्भाधान पूर्व संस्कार, गर्भाधान संस्कार, गर्भावस्था संस्कार, प्रसव का चरण, बचपना, युवावस्था, संतान के जीवन साथी का चयन और उनका वैवाहिक जीवन, विवाह के बाद भी उनका मार्गदर्शन इत्यादि क़दम क़दम पर मनुष्य का मार्गदर्शन करती हैं।
 
 
 
 
 
इस्लाम की नज़र में मनुष्य की परवरिश का सिलसिला उसी समय से शुरू हो जाता है कि जब एक लड़का या लड़की अपना जीवन साथी चुनने की आयु में पहुंच जाते हैं और बच्चेदार होना चाहते हैं। इसलिए कि मां-बाप आने वाली नस्ल के भविष्य के लिए भूमि प्रशस्त करते हैं। यह मां-बाप ही होते हैं कि जिनके व्यक्तित्व की विशेषताएं जीन और परवरिश द्वारा बच्चों तक स्थानांतरित होती हैं। यही कारण है कि इस्लाम ने जीवन साथी के चयन के विषय को बहुत महत्व दिया है और इसके लिए कुछ मानदंड बयान किए हैं।    
 
 
 
जैसा कि आपने सुना पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजन जिनके पास ईश्वरीय ज्ञान है, इसी ज्ञान का उपयोग करते हुए मनुष्य का उसके लक्ष्य की ओर मार्गदर्शन करते हैं। क़ुराने मजीद और ईश्वरीय दूतों ने इंसान के व्यक्तित्व के निर्माण के लिए अनेक सिफ़ारिशें की हैं। अगर इंसान इन सिफ़ारिशों का पालन करेगा तो निःसंदेह वह अपना लक्ष्य हासिल कर लेगा।
 
 
 
 
 
इस्लामी शिक्षाओं में इस महत्वपूर्ण बिंदु पर काफ़ी बल दिया गया है कि इंसान के व्यक्तित्व के निर्माण या पालन-पोषण की प्रक्रिया बच्चों से नहीं बल्कि मां-बाप से शुरू होती है। इसीलिए जीवन साथी के चयन के विषय को इस्लामी शिक्षाओं में काफ़ी महत्व दिया गया है।


source : irib
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