अइम्मा (अ.ह.) अपने ऐसे साथियों और अनुयायियों को हुकूमत में शामिल होने का आदेश देते थे जिनमें काफी हद तक राजनीतिक अंतर्दृष्टि और समझ पाई जाती थी जिसका उद्देश्य हुकूमत में रहकर अत्याचार को रोकने और भ्रष्टाचार को कम करके इस्लामी समाज की सेवा करना था।
विलायत पोर्टलः अइम्मा (अ.ह.) अपने ऐसे साथियों और अनुयायियों को हुकूमत में शामिल होने का आदेश देते थे जिनमें काफी हद तक राजनीतिक अंतर्दृष्टि और समझ पाई जाती थी जिसका उद्देश्य हुकूमत में रहकर अत्याचार को रोकने और भ्रष्टाचार को कम करके इस्लामी समाज की सेवा करना था।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने बनी अब्बास के हारून रशीद नामक खलीफा के दौर में जीवन बिताया। हारून रशीद ऐसा इंसान था जो किसी पर भी दया नहीं करता था और जिस व्यक्ति को भी अपने राजनीतिक भविष्य के लिए खतरा समझता था, चाहे वह उसका सबसे करीबी और सबसे वफ़ादार साथी ही क्यों न हो, फ़ौरन उसकी हत्या करवा देता था। अबू मुस्लिम ख़ुरासानी का मामला इसका स्पष्ट उदाहरण है। अतः ऐसे व्यक्ति की ओर से अल्वी लोगों विशेष रूप से इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) के साथ किये गये व्यवहार को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
हारून रशीद के युग में अली अलैहिस्सलाम की संतान के खिलाफ दबाव, भय और वहशत की हवा इतनी ज़्यादा थी कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम और आपके साथी तक़ैय्या करने पर मजबूर हो गए थे। इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) ने ऐसी गंभीर और घुटे हुए वातावरण में अपने अनुयायियों को एक संगठित राष्ट्र के रूप में एकजुट रखने की भारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई। बनी अब्बास हुकूमत आपके मुबारक वुजूद को अपने लिए बड़ा खतरा माना करती थी, क्योंकि आपके कारण अहलेबैत (अ.ह.) के शियों को एक केंद्र और धुरी मिल चुकी थी, जिसके पास वह एकजुट और संगठित रहते थे।
हारून रशीद हुकूमत के नशे में मस्त था और अपनी हुकूमत को एक राज्य के रूप में देखता था। वह अक्सर सूरज को संबोधित करके कहा करता था कि ऐ सूरज चमकता रह, तू जहां भी चमकेगा वहाँ मेरी हुकूमत का हिस्सा होगा। हारून रशीद हुकूमत विरोधी सभी आंदोलनों को कुचल देने के बावजूद इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) के मुबारक वुजूद से भयभीत रहता था और उन्हें अपनी हुकूमत की राह में सबसे बड़ी बाधा और बड़ा खतरा समझता था। हारून रशीद के इस डर के दो बड़े कारण थेः 1. वह खुद को इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) के महान व्यक्तित्व की तुलना में बेहद पस्त और छोटा महसूस करता था और
2. वह अच्छी तरह जानता था कि इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) खुद को इमामत के लायक और उसके योग्य समझते हैं और उनके अनुयायी भी यही विश्वास रखते हैं और इमाम अलैहिस्सलाम का अपने अनुयायियों के साथ बहुत मजबूत संपर्क स्थापित है।
हारून रशीद पहले मुद्दे के समाधान के लिए खुद को पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलिही वसल्लम का सम्बंधी प्रकट करके इस कमी दूर करने की कोशिश करता रहता है और लोगों की नजर में सम्मानजनक बनने की कोशिश करता था, ताकि इस तरह अपनी हुकूमत के आधार को मजबूत बना सके। लेकिन इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) हमेशा सच्चाई का उजागर करके उसकी परियोजनाओं को मिट्टी में मिला देते थे। मशहूर था कि हारून रशीद एक साल युद्ध के लिए जाता है और एक साल हज के लिए जाता है। 197 हिजरी की बात है जब हारून रशीद हज के लिए जा रहा था, वह अपनी इस यात्रा के दौरान एक राजनीतिक उद्देश्य प्राप्त करना चाहता था और मुसलमानों से अपने बेटे के हाथ पर बैअत लेकर उसे अपना उत्तराधिकारी निर्धारित करने का इच्छुक था। उसे अपने इस उद्देश्य को प्राप्त करने में कोई बाधा नहीं दिख रही थी, सिवाये इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) के, जिन्हें वह इस काम में बड़ी बाधा समझता था।
source : wilayat.in