चार शाबान एसे महान व्यक्ति का शुभ जन्म दिवस है जिसका नाम इतिहास में निष्ठा और त्याग का पर्याय बन चुका है।
शाबान महीने की चार तारीख़ को हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सुपुत्र अब्बास बिन अली का शुभ जन्म दिवस है। अपने भीतर पाए जाने वाले नैतिक गुणों के कारण वे "अबुलफ़ज़्ल" के उपनाम से प्रसिद्ध हुए जिसका अर्थ होता है नैतिक गुणों का स्वामी। आज हम जो इस महापुरूष की याद मना रहे हैं तो वह इसलिए है कि उनकी जीवनशैली सदैव ही लोगों के मोक्ष एवं कल्याण के लिए मार्गदर्शन रही है।
चार शाबान सन २६ हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के मानने वालों के मन में प्रसन्नता की एक लहर दौड़ गई। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घर में जन्म लेने वाले शिशु के माता-पिता को हार्दिक बधाई प्रस्तुत करने के उद्देश्य से मदीनावासी, उनके घर की ओर बढ़ने लगे। नवजात शिशु की कृपालु माता "उम्मुल बनीन" ने अपने सुपुत्र को हज़रत अली की गोद में दिया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे के कान में अज़ान कही और इस प्रकार अनन्य ईश्वर की महानता की गवाही उनका रोम-२ देने लगा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ईश्वरीय ज्ञान के स्वामी थे और उसी ज्ञान के आधार पर उन्हें अपने नवजान शिशु में शौर्य एवं वीरता स्पष्ट रूप से दिखाई दी। इसी बात के दृष्टिगत उन्होंने अपने सुपुत्र का नाम अब्बास रखा अर्थात साहस और वीरता मे सिंह जैसा तथा रणक्षेत्र का विजेता।
हज़रत अब्बास की माता का नाम "फ़ातिमा बिन्ते हेज़ाम" था। बाद में उन्होंने "उम्मुल बनीन" के नाम से ख्याति पाई। वे हज़रत फ़ातिमा के बच्चों के लिए बहुत अच्छी माता और हज़रत अली की अच्छी पत्नी थी परन्तु अली अलैहिस्सलाम के घर में वे स्वयं को सदैव ही हज़रत फ़ातेमा की संतान की सेविका मानती थीं। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की माता के महत्व और उनके उच्च स्थान के संबन्ध में बहुत कुछ कहा और लिखा गया है। इस बारे में वरिष्ठ धर्मगुरू "ज़ैनुद्दीन" जो "शहीदे सानी" के नाम से मश्हूर हैं, लिखते हैं कि "उम्मुल बनीन" सदगुणों की स्वामी महिला थीं। उनको पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्ललाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के पवित्र परिवार से विशेष लगाव था। यही कारण है कि उन्होंने स्वयं को इस परिवार की सेवा के लिए अर्पित कर दिया था। उधर पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को भी उम्मुल बनीन से विशेष लगाव था। अपनी वीरता, अदम्य साहस, सुन्दरता, निष्ठा, त्याग और मर्यादापूर्ण व्यवहार के कारण हज़रत अब्बास को "क़मरे बनी हाशिम" की उपाधि दी गई थी जिसका अर्थ होता है बनी हाशिम परिवार का चन्द्रमा। इस बारे में पवित्र क़ुरआन के वरिष्ठ व्याख्याकार तथा पैग़म्बरे इस्लाम व उनके पवित्र परिजनों के कथनों का ज्ञान रखने वाले इब्ने "शहरे आशूब" अपनी पुस्तक "मनाक़िब" में इस प्रकार लिखते हैं- हज़रत अब्बास को "क़मरे बनी हाशिम" के नाम से इसलिए पुकारा जाता था क्योंकि उनका सुन्दर मुख, चन्द्रमा की भांति दमकता रहता था।
पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों ने भी हज़रत अब्बास के महत्व के बारे में बहुत कुछ कहा है। अपनी शहादत से पूर्व हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत अब्बास को बुलाया और उन्हें अपने सीने से लगाते हुए इस प्रकार कहा थाः- शीघ्र ही प्रलय के दिन मेरी आंखें तुम्हारे माध्यम से प्रकाशमई होंगी अर्थात तुम्हारे कारण मुझे बहुत प्रसन्नता मिलेगी।
हज़रत अब्बास के महत्व के संबन्ध में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के भी बहुत से कथन मिलते हैं। मुहमर्रम की ९ तारीख़ को सध्या के समय इमाम हुसैन ने हज़रत अब्बास को संबोधित करते हुए कहा था कि हे मेरे भाई! मेरा जीवन तुमपर न्योछावर हो। तुम घोड़े पर सवार होकर शत्रु के निकट जाओ। अपने इस संबोधन में इमाम हुसैन ने यह वाक्य कहकर कि मेरा जीवन तुमपर न्योछावर हो, हज़रत अब्बास के प्रति अपने अथाह प्रेम का प्रदर्शन किया है। अपने इस कथन के माध्यम से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एक प्रकार से हज़रत अब्बास की प्रशंसा की है। हज़रत अब्बास के बारे में इमाम जाफ़रे सादिक़ के शब्दों को हम हज़रत अब्बास की ज़्यारत में इस प्रकार पढ़ते हैं- मैं गवाही देता हूं कि आप ईश्वर के समक्ष पूर्णतयः समर्पित थे। आपने इमाम हुसैन की सत्यता की गवाही दी और उनके प्रति निष्ठावान रहे। आप अपने इमाम के हितैषी थे। इस बलिदान के कारण ईश्वर ने आपको शहीद के गुट में स्थान दिया और आप की आत्मा को सौभाग्यशाली लोगों की आत्माओं के साथ रखा।
हज़रत "अबुलफ़ज़्ल" ने जीवन के आरंभिक १४ वर्ष अपने प्रिय पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ व्यतीत किये। इतिहास इस बात का साक्षी है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी संतान के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया करते थे। हज़रत अब्बास ने अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बुद्धिमानी, निष्ठा और परिपूर्णता एवं प्रवीणता से बहुत लाभ उठाया था। "अबुलफ़ज़्ल" के जीवन पर उनके पिता की गहरी छाप पड़ी थी। इस विषय के महत्व को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि हज़रत अली का कहना है कि मेरे सुपुत्र अब्बास ने बचपन में उसी प्रकार से मुझसे ज्ञान अर्जित किया है जिस प्रकार से कबूतर का बच्चा अपनी माता से भोजन ग्रहण करता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत अब्बास के प्रशिक्षण में उनको मानवीय विशेषताओं से सुसज्जित कराने के साथ ही साथ उनके शारीरिक विकास और शारीरिक क्षमता के लिए भी प्रयास किये थे। हज़रत अली ने अपने सुपुत्र हज़रत अब्बास को तीरंदाज़ी सहित प्रचलित तत्कालीन युद्ध की समस्त कलाएं सिखाई थीं। निःसन्देह, हज़रत अली की संगत में रहकर हज़रत अब्बास को अपने पिता की विशेषताएं सीखने का सवर्णिम अवसर प्राप्त हुआ था जिनसे उन्होंने अपने जीवन में भविष्य में घटने वाली आगामी घटनाओं से लाभ उठाया था।
हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के जीवन का अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु, अपने भाइयों विशेषकर हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से उनका विशेष लगाव था और उनपर उनकी निर्भर्ता थी। उन्होंने अपने भाइयों की सेवा में उपस्थित होकर बहुत कुछ सीखा तथा उनके आध्यात्मिक एवं नैतिक विशेषताओं के विकास में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम अपने भाइयों के समक्ष शालीनता का बहुत ध्यान रखते थे। वे कभी भी इमाम हुसैन की अनुमति के बिना उनके निकट नहीं बैठे। इतिहास में मिलता है कि अपने ३४ वर्षीय जीवनकाल में हज़रत अब्बास ने अपने बड़े भाई हज़रत इमाम हुसैन को कभी भी भाई कहकर संबोधित नहीं किया बल्कि वे उन्हें, मेरे स्वामी कहकर संबोधित किया करते थे। अपनी शहादत के क्षण तक वे अपने भाई हुसैन के साथ रहते हुए उनका अनुसरण करते रहे।
हज़रत अब्बास की पत्नी का नाम "लोबाबा" था जो "उबैदुल्लाह इब्ने अब्बास" की पुत्री थीं। हज़रत अब्बास की संतान भी विभन्न प्रकार की विशेषताओं की स्वामी थी। हज़रत अब्बास के ज्येष्ठ पुत्र "उबैदुल्लाह" आगे चलकर मक्का और मदीने के न्यायमूर्ति बने। हज़रत अब्बास के एक अन्य सुपुत्र "फ़ज़्ल" ने भी बहुत अधिक ज्ञान अर्जित किया। इतिहास यह भी बताता है कि हज़रत अब्बास के एक सुपुत्र मुहम्मद, करबला में शहीद हो गए थे।
ईश्वर के शत्रुओं के मुक़ाबले में ईश्वर पर भरोसा ही महापुरुषों की सफलता का रहस्य होता है। हज़रत अब्बास में यह विशेषता कूट-कूट कर भरी थी। बचपन से ही उनके भीतर ईश्वर के प्रति लगाव पाया जाता था जिसे उनके जीवन में घटने वाली घटनाओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हज़रत अब्बास के भीतर ईश्वर पर भरोसा इतना अधिक मौजूद था कि उसने उनके भीतर नैतिक विशेषताओं को अत्यधिक विकसित कर दिया था। हज़रत अब्बास की ज्ञान संबन्धी और आध्यात्मिक विशेषताओं के बारे में कहा जाता है कि उनके भीतर तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय बहुत अधिक पाया जाता था जिसके कारण लोग उनसे आकर्षित होते थे। विभिन्न विषयों में पाई जाने वाली उनकी दूरदर्शिता के कारण लोग उनसे विचार-विमर्श करते और अपनी समस्याओं का समाधान चाहते थे। वे लोगों की धार्मिक समस्याओं का भी समाधान करते और उनके प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर दिया करते थे। लोगों की समस्याओं का समाधान, हज़रत अब्बास के दैनिक कार्यों में सम्मिलित था। यही कारण है कि उन्हें "बाबुल हवाएज" के नाम से भी जाना जाता है अर्थात आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला।
हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के भीतर पाई जाने वाली विशेषताओं में स्पष्टतम विशेषता, त्याग या बलिदान की भावना थी। उन्होंने अपनी इस विशेषता के चरम का प्रदर्शन, करबला की हृदयविदारक घटना में किया था। अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक वे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सहायक रहे। इस बात को इस प्रकार से समझा जा सकता है कि करबला की घटना में इमाम हुसैन के नाम के साथ ही हज़रत अब्बास का नाम जुड़ा हुआ है। हज़रत अब्बास, करबला में इमाम हुसैन की सेना के सेनापति थे। करबला के रणक्षेत्र में उन्होंने अपनी निष्ठा और वफ़ादारी का प्रदर्शन किया। हज़रत अब्बास पर उनके पिता का यह कथन चरितार्थ होता है कि सर्वश्रेष्ठ मोमिन वह है जो अन्य मोमिनों के लिए अपनी जान, माल और परिवार को न्योछावर कर दे। हज़रत अब्बास में पाई जाने वाली निष्ठा, धर्म के बारे में उनके दृष्टिकोण के ही कारण थी। उनकी यह ठोस विचारधारा उनकी भावनाओं को गति प्रदान करती थी और उन्हें ईश्वर के मार्ग में बलिदान के लिए प्रेरित करती थी।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सुपुत्र हज़रत अब्बास, उदारता और दानशीलता का स्रोत हैं। हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमारे शरीर और हमारी आत्मा को इस विभूतिपूर्ण स्रोत से तृप्त करे। प्रिय पाठकों हज़रत अब्बास की शुभ जन्म दिवस के अवसर पर आपकी सेवा में पुनः बधाई प्रसतुत करते हैं।
source : alhassanain