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दज्जाल

दज्जाल

दज्जाल दजल लफ़्ज़ से बना है और दजल के मअना फ़रेब हैं। उसका असली नाम साइफ़ बाप का नाम आइद और माँ का नाम कातेहा उर्फ़ क़तामा है। वह पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के ज़माने में तीहा नामी मक़ाम (यह मक़ाम मदीने से तीन मील के फ़ासले पर है।) पर बुध के दिन सूरज छिपते वक़्त पैदा हुआ था। पैदाइश के बाद बहुत तेज़ी के साथ बढ़ रहा था इसकी दाहिनी आँख फ़ूटी हुई थी और बाईं आँख पेशानी पर चमक रही थी। कुछ दिनों के बाद वह ख़ुदाई का दावा करने लगा। पैग़म्बरे इस्लाम जो इसके बारे में मुसलसल ख़बरे पा रहे थे, सलमाने फ़ारसी और कुछ असहाब को साथ लेकर तीहा गये और उसको तबलीग़ करनी चाही। मगर उसने हज़रत को बहुत बुरा भला कहा और आप पर हमला किया, लेकिन आपके असहाब ने आपका दिफ़ा किया। आपने उससे फ़रमाया था कि ख़ुदाई का दावा छोड़ दे और मेरी नबूवत को तस्लीम करले। उलमा ने लिखा है कि दज्जाल के माथे पर यज़दानी ख़त में अलकाफ़िर बिल्लाह लिखा हुआ था और आँख के ठेले पर भी क़ाफ़, फ़े, रे लिखा हुआ था। जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) मदीने तशरीफ़ लाने लगे तो उसने एक बहुत भारी पत्थर हज़रत के रास्ते में रख दिया किताबों में मिलता है कि यह पत्थर एक पहाड़ की मानिंद था। यह देख कर हज़रत जिब्राईल आसमान से नीचे आये और उसे हटा कर अलग रख दिया। अभी आप मदीने पहुँचे ही थे कि दज्जाल एक बहुत बड़ा लशकर लेकर मदीने जा पहुँचा। हज़रत ने अल्लाह से दुआ की कि ऐ अल्लाह इसे उस वक़्त तक के लिए महबूस (क़ैद) कर दे जब तक इसे ज़िंदा रखने का इरादा हो। इसी दौरान जनाबे जिब्राईल आये और उन्होंने दज्जाल की गर्दन को पुश्त की तरफ़ से पकड़ कर उठा लिया और उसे जज़ीर -ए- तबरिस्तान में ले जाकर क़ैद कर दिया। लतीफ़ा यह है कि जब जनाबे जिब्राईल उसे उठा कर ले जाने लगे तो उसने ज़मीन पर हाथ मार कर तहतुश शरा तक की दो मुठ्ठी ख़ाक उठा ली थी और उसे तबरिस्तान में लेजाकर डाला था। जिब्राईल ने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से अर्ज़ किया की आपकी वफ़ात के 970 साल बाद यह ख़ाक पूरी दुनिया में फैलेगी और उसी वक़्त से क़ियामत के आसार शुरू हो जायेंगे।

(ग़ायत उल मक़सूद सफ़ा 64 व इरशाद उत तालेबैन सफ़ा न. 394)


पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का इरशाद है कि दज्जाल के क़ैद होने के बाद तमीम दारमी जो पहले नसरानी था उसने दज्जाल को जज़ीर -ए- तबरिस्तान में अपनी आँखों से देखा है। उसकी मुलाक़ात की तफ़सील किताबों में मौजूद है।


रिवायतों के मुताबिक़ दज्जाल हज़रत महदी अलैहिस्सलाम के ज़हूर के 18 दिन बाद ख़रूज करेगा। इमाम के ज़हूर और दज्जाल के ख़रूज से पहले तीन साल तक सख़्त क़हत पड़ेगा। पहले साल एक बटे तीन बारिश और एक बटे तीन फ़सल ख़त्म हो जायेगी। दूसरे साल ज़मीन व आसमान की बरकत व रहमत ख़त्म हो जायेगी। तीसरे साल बिल्कुल बारिश नही होगी और दुनिया मौत की आग़ोश में पहुँचने के क़रीब हो जायेगी। दुनिया ज़ुल्म व जौर, इज़तेराब व परेशानी से भर चुकी होगी। इमाम के ज़हूर के बाद 18 दिन के वक़्त में दुनिया अच्छी हालत में बदल जायेगी। अचानक दज्जाल के ख़रूज का शोर मचेगा। एक रिवायत के मुताबिक़ वह हिन्दुस्तान के अख़वंद दरवीज़ा नामी पहाड़ से ज़ाहिर होगा और वहाँ से बलंद आवाज़ से कहेगा कि मैं सबसे बड़ा ख़ुदा हूँ, मेरी इताअत करो। उसकी यह आवाज़ मशरिक से मग़रिब तक जायेगी। बाद वह तीन या चालीस दिन तक वहां रहकर लश्कर तैयार करेगा। फिर इराक़ व शाम होते हुए इस्फ़हान के एक करिये यहूदिया से ख़रूज करेगा। उसके हमराह एक बहुत बड़ा लश्कर होगा। जिसकी तादादा सत्तर लाख लिखी गई है। जिन, देव, परी शैतान इनके अलावा होंगे। वह अबलक़ रंग के गधे पर सवार होगा। उसके जिस्म का ऊपरी हिस्सा सुर्ख़, हाथ पांव सियाह व फिर सुमों तक सफ़ेद होगा। उसके दोनों कानों के दरमियान चालीस मील का फ़ासला होगा। वह 21 मील ऊँचा और 90 मील लम्बा होगा। उसका हर क़दम एक मील का होगा। उसके दोनों कानों में ख़लक़े कसीर बैठी होगी। चलते वक़्त उसके बालों से हर क़िस्म के गानों की आवाज़ आयेगी। वह जब गधे पर सवार होकर चलेगा तो उसके दाहिनी तरफ़ एक पहाड़ उसके साथ साथ चलेगा,जिसमें नहरें, फल और हर क़िस्म की नेअमतें होंगी। उसकी बाईं जानिब भी एक पहाड़ होगा जिसमें तरह तरह सांप बिच्छू होंगे। वह लोगों को इन चीज़ों के ज़रिये बहकायेगा और कहेगा कि देखो मैं ख़ुदा हूँ। जो मेरा हुक्म मानेगा उसे जन्नत में रखूंगा और जो मेरी बात नही मानेगा उसे जहन्नम में डाल दूँगा। इसी तरह वह चालीस दिन में पूरी दुनिया का चक्कर लगा कर इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इस्कीम को नाकाम बनाने की कोशिश में ख़ाना – ए- काबा को गिराना चाहेगा और काबे व मदीने को तबाह करने के लिए एक बहुत बड़ा लश्कर तैनात करेगा और ख़ुद कूफ़े के लिए रवाना हो जायेगा। उसका मक़सद इमाम महदी अलैहिस्सलाम की क़यामगाह कूफ़े को तबाह करना होगा। लेकिन जैसे ही वह कूफ़े के क़रीब पहुँचेगा इमाम महदी अलैहिस्सलाम वहाँ पहुँच जायेंगे और अल्लाह के हुक्म से उसे जड़ से उखाड़ फेंकेंगे। घमासान की जंग होगी और शाम तक फैले हुए लश्कर पर इमाम अलैहिस्सलाम ज़बरदस्त हमले करेंगे। आख़िर में वह मलून इमाम के हमलों की ताब न लाकर शाम के उक़ब -ए- रफ़ीक या लुद नामी मक़ाम पर जुमे के दिन तीन घड़ी दिन चढ़े मारा जायेगा। उसके मरने के बाद दस मील तक दज्जाल उसके गधे और लशकर का खूँन ज़मीन पर जारी रहेगा। उलमा ने लिखा है कि दज्जाल के क़त्ल के बाद इमाम अलैहिस्सलाम उसके लश्कर पर एक ज़बर्दस्त हमला करेंगे और सबको क़त्ल कर देंगे। नतीजा यह होगा कि ज़मीन पर कोई दज्जाल का मानने वाला बाक़ी नही रहेगा।


(इरशादुत तालेबीन सफ़ा 397 व ग़ायत उल मक़सूद जिल्द न.2 सफ़ा न.71 व ऐनुल हयात सफ़ा न. 126 व किताब अलवसाइल सफ़ा 181 व क़ियामत नाम सफ़ा 7 व मआर्प़ उल मिल्लत सफ़ा 328 व दिगर किताबें)

 

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