Hindi
Friday 27th of December 2024
0
نفر 0

जन्नत

मर्द या औरत में जो भी अच्छे काम अंजाम दे और वह मोमिन भी हो तो उन लोगों को जन्नत में दाखिल कर दिए जाएगा और उन पर ज़रा भी ज़ुल्म नहीं होगा।

(सूरए निसा, 124)


आयत की वज़ाहत


जन्नत एक नेमत है इंसान बड़ी ज़हमतों के बाद उसका मालिक बनता है। सिर्फ़ किसी ख़ास कौम व क़बीले या ख़ास मज़हब से जुड़ने की बुनियाद पर जन्नत हासिल नहीं होती है। अल्लामा ज़ीशान हैदर जवादी इस आयत के बारे में फ़रमाते हैं


इस्लाम, दीन, ईमान और अमल है। उसने क़ौम या जमाअत की बुनियाद पर नजात (मुक्ति) का पैग़ाम नहीं दिया है जैसा कि अहले किताब का ख़्याल था कि मुसलमान जहन्नम में नहीं जा सकते। उस (अल्लाह) का खुला हुआ ऐलान है कि बुराई करोगे तो उसकी सज़ा भी बर्दाशत करना पड़ेगी। और नेक अमल करोगे तो उसका इनाम भी मिलेगा। ( तर्जुमा-ए-क़ुर्आन, 229)


इस लिए जन्नत चाहिए तो ईमान व अक़ीदे के साथ साथ अमल भी ज़रूरी है इस लिए की न ईमान के बग़ैर अमल काम आएगा और न अमल के बग़ैर ईमान।


हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैंः अमल के बग़ैर जन्नत की आरज़ू बेवक़ूफ़ी है।

(ग़ुररुल हेकम,9524)


हज़रत इमाम-ए-रज़ा अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं


जो ख़ुदा वन्दे आलम से जन्नत को तलब करे लेकिल मुशकेलों को बरदाश्त न करे तो मानो उसने अपने नफ़्स का मज़ाक़ उड़ाया।

(मुन्तख़बुल मीज़ानुल हिक्मा, ज2, पे200)


हदीस की वज़ाहत


जन्नत मुफ़्त में नहीं मुलती है। ज़हमत वा मेहनत करनी पड़ती है, मुसीबतों का सामना करना पड़ता है, इबादत की सख़्तियाँ बरदाश्त करनी पड़ती हैं। गुनाहों की लज़्ज़तों से दूरी करनी पड़ती है, ईमान व अक़ीदे को सही और मज़बूत करना पड़ता है। फ़िर इंसान जन्नत की उम्मीद रख्खे तो ग़लत नहीं। लेकिन अगर कोई जन्नत चाहे और इन सख़्तियों को बरदाश्त न करे तो मानो उसने ख़ुद को बेवक़ूफ़ बनाया है।

0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

हदीसे किसा
तुर्की में अर्दोग़ान की पार्टी ...
म्यांमार में हिंसक कार्यवाहियां ...
प्रधानमंत्री मोदी ने लाहौर ...
साहित्य अकादमी के पुरस्कार वापस ...
जन्नत
सूरा निसा की तफसीर

 
user comment