बहुत से जवान इरादे की कमज़ोरी और फ़ैसला न करने की सलाहियत की शिकायत करते हैं कहते हैं कि हमने बुरी आदत को छोड़ देने का फ़ैसला किया लेकिन उसमें सफल नही हुए इमाम अली (अ) की नज़र में तक़वा इरादे का मज़बूत होना, नफ़्स पर कंटरोल, बुरी आदात और गुनाहों के छोड़े देने का बुनियादी कारण हो सकता है आप फ़रमाते हैं जान लो कि ग़लतियाँ और पाप उस बिगड़े हुए घोड़े की तरह हैं जिसकी लगाम ढीली हो और गुनाह गार (पापी) उस पर सवार हो यह उन्हे नर्क की गहराईयों में गिरा देगा और तक़वा उस आरामदेह सवारी की तरह है जिसका मालिक उस पर सवार है उसकी लगाम उसके हाथ में है और यह सवारी उसको स्वर्ग की ओर ले जायेगी।
ध्यान रहना चाहिये कि यह काम होने वाला है मुम्किन (संभव) है। जो लोग इस वादी में क़दम रखते हैं अल्लाह तआला की इनायतें और कृपा उनके शामिले हाल हो जाती हैं जैसा कि सूरए अनकबूत की 69 वीं आयत में इरशाद है:
والذِين جاهدوا فِينا لنهدِِ ينهم سبلنا
और वह लोग जो हमारी राह में कोशिश करते हैं हम यक़ीनन और ज़रूर उनको अपने रास्तों की तरफ़ हिदायत (मार्गदर्शन) करेगें।