हमने बताया था कि एक रात हारून रशीद ने अपने वज़ीर जाफ़र बरमक्की और मसरूर के साथ भेस बदलकर शहर में निकलने का इरादा किया ताकि लोगों के हालात से अवगत हो सके। जब वे दजला नदी पर पहुंचे तो उन्होंने एक नाविक से कहा कि उन्हें दजला की सैर कराए। बूढ़े आदमी ने उनसे कहा कि यह घूमने फिरने का वक़्त नहीं है। इसलिए कि हर रात हारून रशीद दजला पहुंचकर नाव की सैर करता है और उसके एलची एलान करते हैं कि जो कोई भी इसके बाद, दजला में दिखाई देगा उसकी गर्दन मार दी जाएगी। हारून रशीद उसकी यह बात सुनकर आश्चर्य में पड़ गया, लेकिन पैसे देकर उसने नाविक को राज़ी कर लिया और झूठे ख़लीफ़ा को देखने में सफल हो गया। ख़लीफ़ा ने नाविक को अधिक पैसे देकर अगली रात के लिए भी दजला की सैर के लिए तैयार कर लिया।
दूसरी रात, हारून रशीद ने अपने वज़ीर और मसरूर शमशीरज़न को बुलाया और कहा, तैयार हो जाओ, उस ख़लीफ़ा से मिलने चलना है। यह सुनकर वे हंसने लगे और अपना भेस बदलने चले गए। थोड़ी देर बाद वे तैयार होकर आ गए और तीनों महल से बाहर निकले ताकि उस झूठे ख़लीफ़ के बारे में कोई जानकारी जुटा सकें। जब वे दजला नदी पर पहुंचे तो उन्होंने उस बूढ़े आदमी को देखा कि वह उसी जगह पर उनका इंतज़ार कर रहा है। उन्होंने उसे सलाम किया और नाव पर बैठ गए। अभी बूढ़े आदमी ने अपनी नाव चलाई भी नहीं थी कि उन्होंने देखा दूर से उस झूठे ख़लीफ़ा की नाव उनकी ही ओर आ रही है। वे वहीं रुक गए यहां तक कि नाव उनके निकट आ गई। पिछली रात की भांति उसमें कई सेवक और ग़ुलाम थे और एलची चिल्ला चिल्लाकर लोगों को चेतावनी दे रहे थे कि नदी से दूर चले जाएं।
हारून रशीद ने कहा, ईश्वर की सौगंध अगर यह सब अपनी आँखों से नहीं देखता, तो मुझे यक़ीन नहीं होता। उसके बाद अपनी जेब से 10 सिक्के निकाले और बूढ़े नाविक को देते हुए कहा, यह पैसे लो और अंधेरे में चुपके से नाव का पीछा करो। नदी के किनारे किनारे अंधेरे में वे हमें नहीं देख पायेंगे।
बूढ़े व्यक्ति की नज़र जब सिक्को पर पड़ी तो उसने बिना कुछ कहे उन्हें ले लिया और नाव चलाने लगा। वे उस नाव का पीछे करने लगे, यहां तक कि नदी के किनारे एक विशाल बाग़ तक पहुंच गए। वहां कुछ सेवक और ग़ुलाम हाथों में मशाले लिए उनका इंतज़ार कर रहे थे। जब वहां नाव पहुंची तो झूठा ख़लीफ़ा उससे उतर गया और वहां उपस्थित लोग उसके लिए सजा हुआ ख़च्चर लेकर आए। झूठा ख़लीफ़ा उस पर बैठ गया और अपने सेवकों के आगे आगे चलने लगा। हारून रशीद ने बूढ़े आदमी से कहा नाव को किनारे पर लगा दे ताकि वे उससे उतर सकें। उसके बाद, हारून रशीद, जाफ़र बरमक्की और मसरूर शमशीरज़न नाव से उतर गए और उन लोगों के पीछे चलने लगे। अभी कुछ क़दम ही गए थे कि चौकीदारों ने उन्हें देख लिया और पकड़ लिया। उन्होंने चौकीदारों से बहुत विनती की कि उन्हें छोड़ दिया जाए, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ और वे उन्हें झूठे ख़लीफ़ा के पास ले गए।
उस झूठे ख़लीफ़ा ने क्रोधित होकर उनसे पूछा, यहां किस तरह पहुंचे और किसने उन्हें यहां का पता बताया है। उन्होंने जवाब दिया, हे ज़िल्ले इलाही, हम अजनबी व्यापारी हैं और इस शहर में नए हैं। हम इस इलाक़े में सैर के लिए निकले थे कि आप के लोगों ने हमें पकड़ लिया और वे हमें यहां ले आए।
झूठे ख़लीफ़ा ने ऊपर से नीचे तक उनपर एक निगाह डाली और कहा, तुम्हारा भाग्य अच्छा था कि तुम अजनबी हो और तुम्हें यहां के नियमों के बारे में जानकारी नहीं है, वरना आज रात को ही तुम्हारी गर्दन मारने का आदेश दे देता। यह कहकर उसने अपने वज़ीर को इशारा किया कि उन्हें उसके महल लाया जाए और मेहमानों की भांति उनका स्वागत किया जाए। वज़ीर ने आज्ञा का पालन किया और कहा, व्यापारियों तुम लोग मेरे साथ आओ, आज रात तुम मुसलमानों के शासक के मेहमान हो। वे वज़ीर के साथ चल दिए और चलते गए चलते गए यहां तक कि एक विशाल और बड़े महल पहुंच गए। महल में लगे हुए समस्त पत्थर मर मर थे और उसके द्वारों को सोने और क़ीमती लकड़ी से बनाया गया था। जब द्वार खुला और वे अंदर गए तो वहां एक बड़ा हाल था, जिसके सामने एक बड़ा सा हौज़ था। पूरे हाल में क़ीमती क़ालीन बिछे हुए थे, उसके अंत में एक मोतियों से जड़ा हुआ एक सिंहासन रखा हुआ था, जहां झूठा ख़लीफ़ा बैठता था। झूठा ख़लीफ़ा वहां जाकर बैठ गया और सेवक और दरबारी पंक्तियां बनाकर खड़े हो गए। थोड़ी देर बाद, हाल के चारो ओर लगे पर्दे हटने लगे, सेवक बड़ा सा दस्तरख़ान लेकर आए और उन्होंने वह हाल के बीच में बिछा दिया। एक के बाद एक नौकर और ग़ुलाम फल और खाने लेकर आने लगे और दस्तरख़ान पर लगाने लगे। झूठे ख़लीफ़ा ने हारून और उसके साथियों की ओर देखकर कहा, हे अजनबी व्यापारियों आगे आओ और इस दस्तरख़ान की अनुकंपाओं से लाभ उठाओ। वे यह सब देखकर अचरज में थे, आगे बढ़े और दस्तरख़ान पर बैठ गए और खाने में व्यस्त हो गए।
जारी है..................