लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान
किताब का नाम: तोबा आग़ोशे रहमत
राग़िब इसफ़हानी अपनी किताब अलमुफ़रेदात मे कहते है (अस्लुश्शुकरे मिन ऐनिन शकरा)[1] शुक्र का मूल (रीशा) ऐने शकरा है। अर्थात् आँसू से पूर्ण आँख अथवा जल से पूर्ण झरना। इस आधार पर शुक्र का अर्थ है मनुष्य भीतर से परमेश्वर की याद से पूर्ण (भरा) हो और उसकी नेमतौ की ओर ध्यान दे कि यह कहा से प्राप्त हुई है और इनका उपयोग किस प्रकार करना है।
ग्यारहवी अक़ल और मानव के शिक्षक से प्रसिध्द ख्वाजा नसीरूद्दीन तूसी, विद्वान मजलिसी के कथन के आधार पर शुक्र की हक़ीक़त के संबंध मे कहते है: सबसे सम्मानजनक और सर्वोत्तम कार्य शुक्र है और यह बात ध्यान मे रहे कि वाणी, कार्य और इरादे के माध्यम से एहसान (नेमत) का सामना करना शुक्र (धन्यवाद) है, शुक्र के तीन आधार और तीन मूल है: