हम पर अधिरोपित युद्ध के आरम्भ मे ही अपने कर्तव्यो का पालन करने हेतु उस पवित्रता एव आत्मिकता से परिपूर्ण
युद्ध स्थल पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ तथा उन उज्जवल मुखो आकाश वासी मनुष्य एव धरती वासियो से अवगत होने का अवसर प्राप्त हुआ।
उन हक से अवगत मनुष्यो मे कुछ लोग मुझे पहचानते थे। उस समय जंग के मैदान पर अद्रभुत सन्नाटा था संगर चुप थे जंग को विराम लगा था और राहे इश्क के यात्री अपने कार्यो को सम्पन्न करने हेतु तेहरान जा रहे थे। उन्होने इच्छा प्रकट की कि कुर्आन एंव अहलेबैत (ईश्वरीय दूत व उनके पवित्र घर वालो) की परम्परा पर आधारित एक भाषण एंव एक आशकाना व शिक्षित दृष्टिकोण के आदान-प्रदान हेतु एक बैठक का आयोजन किया जाए ताकि युद्धस्थल मे एकत्रित इश्क के परवाने जवानो का आत्म बल बढ़ाने एंव दुश्मन के विरूद्र मैदाने जंग मे उनके लिए मार्गदर्शन हो।
मैने इस इच्छा के सम्मान हेतु साप्ताहिक बैठक मंगलवार रात्रि का गठन किया आरम्भ मे हम बीस जने से अधिक नही थे यधपि प्रोगाम के आरम्भ मे सामूहिक रूप से ध्यानपूर्वक नमाज़ पढ़ी गयी एंव कुछ धार्मिक समस्यायो का समाधान ईश्वरीय शिक्षा को स्पष्ट किया गया अन्त मे मुसिबते इमाम हुसैन (अ.स.) के साथ प्रोगाम सम्पन्न हुआ।
यह पवित्र प्रेमी एक मित्र के घर मे एकत्रित हुए और फिर धीरे-धीरे ईश्वरीय दूत के पवित्र घर वालो (अहलेबैत) के भक्त श्रृद्धा से एकत्रित होने लगे और उन बीस जनो से जुड़ गये और वह एक अद्रभुत आत्मिकता से परिपूर्ण बन गयी।
सभी बैठको से हट के यह अध्यक्ष, मुखिया, कार्यकर्ता, अगुवा, प्रजा, हर प्रकार के भेदभाव तथा हर नाम एंव नमूद से परे था। यहॉ प्रेम, एकता एंव रंग व रूप का वातावरण था जो श्रृद्धा से ईश्वर के लिए आये थे। ये ईश्वर के ऐसे भक्त थे जो ईश्वर के लिए आते थे।जो कुच्छ करते थे, सुनते थे, कहते थे, पठते थे सभी श्रृद्धा से ईश्वर के लिए था। उस सम्मेलन मे प्रेम भाव के अलावा कुच्छ अनुभव नही होता था। इस सम्मेलन मे एकत्रित होने वालो की संख्या लगभग एक हज़ार तक पहुचँ गयी थी। मै इरान के जिस कोने मे भी होता मंगलवार रात्रि को वापस आ जाता था तथा इस सम्मेलन मे एकत्रित होने वाले इसी प्रकार आते थे अन्तत: सिपाही इस सम्मेलन मे भाग लेने के लिए देश के दक्षिणी एवं पश्चिमी छोर से अपने अफ़सरो से अवकाश लेकर एकत्रित होते थे।
मुझे प्रतीक होता था कि यह प्रेम एवं श्रृद्धा से परिपूर्ण सम्मेलन वर्षो तक जारी एवं अग्रसर रहेगा परन्तु भाग लेने वाले कुच्छ प्रतिश्ष्ठि व्यक्ति जंग मे शहीद हो गये तथा कुच्छ नास्तिक बासी फ़ौज द्वारा गिरफ़्तार हो गये। इस सम्मेलन के शहीदो एवं गिरफ़तार होने वालो की संख्या इतनी थी कि मै अपनी सहन शक्ति ही खो बैठा। उनके रिक्त स्थानो को उस सम्मेलन मे देखना मेरे लिए बहुत कठिन था। नवीन भाग लेने वाले लोग उनके रिक्त स्थानो की पूर्ति नही कर सकते थे। इस लिए दुखि दिल एवं बहते आंसूओ के साथ इस बैठक को त्याग दिया परिणाम स्वरूप वह सम्मेलन सदैव के लिए बंद हो गया। मै इन शब्दो और वाक्यो को लिख रहा हूँ परन्तु आज भी मै उनके जैसे मनुष्यो को देखने की इच्छा रखता हूँ लेकिन उनके स्वरूप किसी को नही पता और मुझे आशा नही है कि उनके स्वरूप मनुष्य प्राप्त होगा।
इस सम्मेलन मे विभिन्न विषयो जैसे पश्चताप, भक्ति, परमेश्वर से लगाव, मृतोत्थान (क़यामत) और रहस्यवाद आदि पर विचार विमर्श किये गये, सौभाग्य से सभी विचारो को रिकार्ड किया गया, वर्षो पश्चात दारूल इरफ़ान अनुसंधान संस्था के द्वारा पश्चताप से संबंधित टेप प्राप्त हुआ, सुझाव दिया कि उसे एक पुस्तक के रूप मे परिवर्तित करके सार्वजनिक किया जाए। जो किताब आपके हाथो मे है वह बीस से भी अधिक श्रृद्धा से परिपूर्ण सप्ताहो की मंगलवार रात्रिया जो मेरे लिए ना भूलने वाले गतिविधियो पर आधारित है। आशा है कि परमेश्वर की दी हुई सफ़लता से इस किताब मे व्यक्त विचार जो पश्चताप के विषय पर नवीन और ताज़े है उनसे प्रयाप्त लाभ उठाए।
फ़क़ीर: हुसैन अनसारीयान