प्रसन्नता और ख़ुशी, इन्सान की ज़रूरतों में से और उसके जीवन के लिए आवश्यक है। यही कारण है कि हम संसार में ख़ूबसूरत और इन्सान के मन को प्रसन्न करने वाले दृश्य पाते हैं। अद्भुत वसंत, सूर्य उदय का दृश्य, जंगल और पहाड़, रंग बिरंगी प्रकृति, चहचहाते परिंदे, यहां तक कि इन्सानों का आपसी प्रेम और मेल-जोल, सब के सब इन्सान को प्रसन्नता प्रदान करते हैं। इसी तरह ग़म और दुख भी इन्सान के जीवन का भाग हैं और प्रकृति में भी कुछ चीज़ें दुखी करने वाली हो सकती हैं। जैसे कि सूर्यास्त, फूलों को मुरझाना, रोग और मौत, इनमें से हर एक के अनुभव से इन्सान का दिल दुखी हो जाता है। इस दृष्टिकोण से इस्लामी विद्वानों के ज्ञानपूर्ण कथनों पर नज़र डालते हैं जिनमें सदैव के लिए ख़ुशी और इस दुनिया में दुखों एवं समस्याओं से छुटकारे को असभंव माना गया है। अब इस्लामी जीवन शैली में ख़ुशी के महत्व की समीक्षा के लिए इस्लामी शिक्षाओं में ख़ुशी के अर्थ को समझते हैं।
ईश्वरीय धर्म इस्लाम, एक संपूर्ण एवं व्यापक धर्म है। इस्लाम, इन्सानी ज़रूरतों एवं उसके विकास के दृष्टिगत ख़ुशी के विषय के विषय पर व्यापक दृष्टि डालता है। मन की ख़ुशी और नई ऊर्जा प्राप्ति के लिए इन्सान को बेहतरीन सुझाव देता है, और इसे ईश्वर पर आस्था रखने वालों की विशेषता क़रार देता है। यही कारण है कि वह सन्यास लेने और जीवन की ख़ुशियों से दूर हो जाने से रोकता है। ख़ुशी, प्रसन्नता और विविधता को पसंद करता है। ख़ुशी और प्रसन्नता, दैनिक तनाव और दबाव से मुक्ति दिलाने का एक रास्ता हैं।
कुछ लोगों के विचारों के विपरीत कि जो इस्लाम को ग़म और दुखों का धर्म समझते हैं, यह ईश्वरीय धर्म ख़ुशी और आनंद से भरा हुआ है, और इस आनंद को इसके सच्चे अनुसरणकर्ताओं के चेहरों पर साफ़ देखा जा सकता है। हालांकि इस्लाम में इस मुद्दे को व्यापक दृष्टि से देखा गया है। हम में से अधिकांश लोग, आंतरिक ख़ुशी और आनंद के अभाव की शिकायत करते हैं। इस तरह से कि दुनिया की ख़ुशियां और भौतिक आनंद इस कमी की भरपाई नहीं कर पाते हैं।
ख़ुशी और आनंद एक मानसिक स्थिति है जो संतोष और सफलता से हासिल होती है। यह उस समय उत्पन्न होती है कि जब अपने किसी लक्ष्य या मनोकामना को प्राप्त कर लेता है या उसकी प्राप्ति की संभावना अधिक होती है। इसके मुक़ाबले में जब इन्सान अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सके या उसकी मनोकामना के सपने बिखर जाएं तो दुख और ग़म उसे घेर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, ग़म और दुख ऐसी हालत है कि जो असंतोष एवं असफलता के भाव से पैदा होती है। इसे इस तरह बयान किया जा सकता है कि जब कभी कोई व्यक्ति अपनी आकांक्षाओं को प्राप्त करता है तो वह अपने अस्तित्व में ऐसी हालत का आभास करता है कि जिसे खुशी कहा जाता है। यह ऐसी सकारात्मक विशेषता है जिससे नकारात्मक भावनाएं जैसे कि नाकामी एवं निराशा और भय एवं चिंता प्रभावहीन हो जाती हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार, ख़ुशी एवं प्रसन्नता के विभिन्न दर्जे हैं। ऐसी ख़ुशियां जो इन्सान के भौतिक एवं शारीरिक मामलों से संबंधित हैं, उनका दर्जा नीचे है, जैसे कि वह ख़ुशी और आनंद जो लोग खाना खाने और मनोरंजन करने आदि से प्राप्त करते हैं। ऐसी ख़ुशियां और आनंद भी है कि जिनका दर्जा ऊंचा है, जैस कि वह अच्छा एहसास जो इन्सान किसी काम को अंजाम देकर प्राप्त करता है। इन्सान के लिए इनसे भी श्रेष्ठ ख़ुशियां हैं जो उसे सदैव के लिए संतोष प्रदान करती हैं। यह ख़ुसियां गहरी और स्थिर हैं। इस्लामी शिक्षाएं, इन्सान के लिए प्रसन्नता के सभी चरणों को महत्व देते हुए, उसे स्थिर एवं आंतरिक आनंद प्रदान करना चाहती हैं।
इस्लाम जिस आनंद का चुनाव करता है वह मूल ख़ुशियों से प्राप्त होता है। अर्थात, हर वह चीज़ जिसके परिणाम स्वरूप ईश्वर और इन्सान के बीच संबंध स्थापित हो या और अधिक मज़बूत हो। अतः इस्लाम में ऐसा आनंद कि जिससे इन्सान का मान सम्मान कम होता हो, वैध नहीं है। इस्लाम भौतिक ख़ुशियों से रोकता है, लेकिन ख़ुशियों की दर्जाबंदी में स्थिर ख़ुशियों को वरीयता देता है। प्रकृति की सैर, यात्रा, मेहमान बनने और मेहमान बनाने और दूसरों का सम्मान करने से जो ख़ुशियां हासिल होती हैं उससे द्वेष एवं घृणा और बेचैनी एवं घबराहट दूर होती है। इसके विपरीत मौज मस्ती और घटिया कामों से प्राप्त होने वाली ख़ुशियों के परिणाम क्योंकि नकारात्मक होते हैं और केवल कुछ समय के लिए अनुचित ख़ुशियां प्राप्त होती हैं अनुचित मानी जाती हैं।
हम सभी को प्राकृतिक रूप से स्थिर ख़ुशियां पसन्द हैं। हमारी ख़ुशियां जितनी अधिक स्थिर होंगी हमें उतनी ही अधिक पसन्द होंगी। पहली दृष्टि में और उस समय कि जब हम मामलों को बौद्धिक रूप से देखते हैं तो ऐसी ख़ुशियों से बचते हैं जो थोड़े समय के लिए होती हैं लेकिन अपने पीछे लम्बे समय के दुख एवं ग़म छोड़ जाती हैं। यद्यपि संभव है कि जोश और मस्ती में हम अपनी बुद्धि से निर्णय नहीं कर सकें और ऐसी ख़ुशियों एवं आनंद के जाल में फंस जाएं जो बहुत कम समय के लिए होती हैं और जिनका परिणाम, दुख और पछतावा होता है।
इस्लाम के दृष्टिकोण में, ख़ुशी एवं आनंद सामान्य रूप से कुछ समय के लिए पैदा होने वाली स्थिति है। ख़ुशी का प्रभाव उसी समय स्थिर रह सकता है कि जब उससे सैभाग्य एवं कल्याण प्राप्त हो। अर्थात, इन्सान को आत्मिक एवं आंतरिक संतोष प्रदान करे। इस तरह से कि वह स्वयं को ईश्वरीय अनुकंपाओं के लहरें मारते समुद्र से निकट आभास करे। इसलिए, इस्लामी जीवन शैली में ऐसा आनंद और ख़ुशियां कि जो इन्सान के कल्याण के लिए ख़तरा उत्पन्न करें न केवल मूल्यवान नहीं हैं बल्कि उनसे बचना चाहिए। हज़रत अली (अ) इस संबंध में फ़रमाते हैं, अफ़सोस ऐसी ख़ुशियों पर जो कम समय के लिए हों लेकिन परिणाम स्वरूप दुख लम्बे समय के लिए।
ऐसी ख़ुशियां कि जिनसे ईश्वर के आज्ञा पालन की अवहेलना और दूसरों को कष्ट पहुंचे वे व्यर्थ एवं ख़तरनाक हैं और वे अवास्तविक तथा अप्रिय मानी जाती हैं। मूल रूप से अवास्तविक ख़ुशियां, क्षण भर के लिए और शीघ्र समाप्त होने वाली तथा अप्रिय परिणाम लिए हुए होती हैं। हज़रत अली (अ) दुनिया में ऐसे लोगों की स्थिति को बयान करते हुए कि जो धोखा देने वाली ख़ुशियों से प्रसन्न होते हैं कहते हैं कि कितने ही प्रिय और सुन्दर शरीर ज़मीन में दफ़्न हो गए हैं, जबकि वे दुनिया में बहुत ही लाड प्यार एवं सम्मान से पले बढ़े, दुख के अपने लम्हों का मनोरंजन से उपचार करते थे और जब कभी समस्या से ग्रस्त होते थे अपना ध्यान बटाटे थे ताकि कहीं उनके जीवन की व्यर्थ ख़ुशियां और मौज मस्ती समाप्त नहीं हो जाए। हां, ठीक जीवन के उसी मौज मस्ती और उपेक्षा के वातावरण में कि जब दुनिया और उसके प्रेमी मुस्करा रहे थे अचानक मौत उन पर अपने पंजे गाड़ देती है और वह उसे देख कर दंग रह जाते हैं।
नरक में जाने वालों पर होने वाले परकोप का उल्लेख करते हुए क़ुराने मजीद के सूरए ग़ाफ़िर की 75वीं आयत में ईश्वर कहता है, यह इसलिए है कि वे अवैध रूप से ज़मीन पर ख़ुशियां मनाते थे और अंहकार के साथ मौज मस्ती करते थे।
अतः पाप द्वारा प्रसन्नता की प्राप्ति का परिणाम इन्सान का अपमान होता है। यही कारण है कि इस्लामी शिक्षाओं में प्रसन्नता एवं ख़ुशियों के लिए एक प्रारूप निर्धारित कर दिया गया है, ताकि कहीं वह पाप एवं ईश्वर से दूरी का कारण न बन जाए और इन्सान के लिए सदैव के लिए दुखों एवं पीड़ा उत्पन्न न कर दे। ख़ुश रहने के लिए इस्लाम की मूल्यवान एवं महत्वपूर्ण सिफ़ारिशें हैं कि जो कभी स्वयं इन्सान के लिए और कभी दूसरों से विशेष होती हैं।
दूसरे के सामने मुस्कराना, साफ़ और अच्छे वस्त्र धारण करना, ख़ुशबू लगाना, स्वच्छ एवं व्यवस्थित रहना, प्रकृति से निकट रहना और हरियाली एवं पानी को देखना, दूसरों के साथ दया एवं प्रेम से पेश आना, दोस्तों के साथ हंसी मज़ाक़ करना और द्वेष को दूर करना और आनंद लेने की व्यक्तिगत एवं सामाजिक रूप से सिफ़ारिश की गई है। इस्लाम इन मार्गों को एक ख़ुशहाल वातावरण उत्पन्न करने, दुखों को दूर करने और शारीरिक रूप से पुनः ऊर्जा प्राप्त करने के लिए सिफ़ारिश करता है। हज़रत इमाम मूसा (अ) ख़ुश रहने की इन शैलियों पर ध्यान देते हुए फ़रमाते हैं, दुनिया के आनंदों में से एक भाग को अपनी सफ़लता से विशेष रखो और दिल की इच्छाओं को वैध तरीक़ों से पूरा करो। ध्यान रखो कि कहीं इस काम से तुम्हारे मान सम्मान को क्षति नहीं पहुंचे और अत्यधिक ख़र्च नहीं करो और अतिवादी नहीं बनों। और इस तरह तुम अपने धार्मिक कामों में सफल रहोगे। वास्तव में हम में से कोई नहीं है कि जो धर्म की ख़ातिर अपनी दुनिया को छोड़ दे या धर्म को दुनिया के लिए छोड़ दे।