लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान
किताब का नाम: पश्चताप दया की आलंगन
जिस पवित्रता और स्वच्छता का आदेश ईश्वर ने दिया है वह सामान्य रूप से ग़ुस्ल[1] और तयम्मुम[2] के आसार से भी समझी जाती है। इस आधार पर वुज़ू, ग़ुस्ल और तयम्मुम करने के पश्चात प्रत्येक व्यक्ति नमाज़ के लिए तैयार होता है, पवित्र क़ुरआन के अनुसार उस पर ईश्वर की अशीष का समापन हुआ।
पवित्रता और नमाज़ से सम्बंधित क़ुरआनी छंद के अंत मे हम पढ़ते हैः
. . . مَا يُرِيدُ اللّهُ لِيَجْعَلَ عَلَيْكُم مِنْ حَرَج وَلكِن يُرِيدُ لِيُطَهِّرَكُمْ وَلِيُتِمَّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ
... मा योरीदुल्लाहो लेयजअला अलैकुम मिन हराजिव्वलाकिन योरीदो लेयोताहेराकुम वलेयोतिम्मा नैमताहू अलैकुम लअल्लकुम तशक्करून[3]
... ईश्वर तुम्हे असहिष्णुता का आदेश नही देता लेकिन वह चाहता है कि इन आदेशो के साथ तुम्हे आध्यात्मिक एवं ज़ाहीरी स्वच्छता प्राप्त हो, और इन आध्यात्मिक मुद्दो के साथ तुम पर अपनी अशीषो का समापन करे ताकि तुम उसके कृतज्ञ बन जाओ।
इस खंड के छंदो से पता चलता है कि मनुष्य पर परमेश्वर की अशीषो का समापन आध्यात्मिक मामलो, दिव्य आदेशो का पालन करने तथा नैतिक कर्मो से सम्बंधित है।
[1] ग़ुस्ल के सम्बंध मे व्याख्या पूर्व मे की जा चुकी है। (अनुवादक)
[2] तयम्मुम के सम्बंध मे भी व्याख्या पूर्व मे की जा चुकी है। (अनुवादक)
[3] सुरए मायदा 5, छंद 6