लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान
किताब का नाम: शरहे दुआ ए कुमैल
हमने इस से पूर्व गुरुवार रात्रि के लेख मे गुरुवार रात्रि का महत्व बताते हुए कहा था कि प्रार्थना के लिए रात्रियो मे सबसे अच्छी एवं उपयुक्त गुरुवार रात्रि को जाना है, और गुरूवार रात्रि के महत्व एवं उसकी महानता को रमज़ान महीने की विशेष रात्रि (शबे क़द्र) के बराबर उल्लेख हुआ है तथा गुरूवार रात्रि को नमाज़, प्रार्थना, ज़िक्र, क्षमा मांगने मे सुबह कर सकते हो, तो ऐसा करने मे लापरवाही न करो।
मान्य हदीस मे, छटे इमाम हज़रत जाफ़र सादिक़ (अ.स.) से रिवायत हैः
जब आस्तिक (विश्वासी, मोमिन) इच्छा पूर्ण होने के लिए प्रार्थना करता है, परमेश्वर उसकी प्रार्थना को स्वीकार करने मे विलंब करता है ताकि शुक्रवार के दिन उसकी प्रार्थना को स्वीकृत करे।[१]
याक़ूब नबी की पुत्रो की विनती – जोकि परमात्मा से क्षमा माँगने पर आधारित थी - के उत्तर मे ईश्वरी दूत हज़रत याक़ूब के वाक् की वयाख्या मे कहा हैः
سَوفَ أَستَغفِرُلَکُم رَبِّی
सौफ़ा असतग़फ़िरुलकुम रब्बी[२]
इमाम सादिक़ (अ.स.) ने कहाछ
याक़ूब (अ.स.) ने इस्तिग़फ़ार मे शुक्रवार के भोर तक विलंबित किया[३]।
जारी
[१]اِنَّ العَبدَ لَیَدعُو فَیُؤَ خِّرُ اللہُ حَاجَتَہُ إِلَی یَومِ الجُمُعَۃِ
इन्नल अब्दा लयदउ फ़योअख़्ख़रुल्लाहो हाजताहु एला योमिल जुमुअते (अद्दावात, पेज 35, हदीस 83, बिहारुल अनवार, भाग 86, पेज 273, अध्याय 2, हदीस 17)
[२] ईश्वर से तुम्हारे लिए क्षमा की विन्ती करूँगा। सुरए युसुफ़ 12, छंद 98
[३] أَخَّرَھَا إِلَی السَّحَرِ لَیلَۃَ الجُمُعَۃِ
अख़्ख़रहा एलस्सहरे लैलतल जुमुअते (मन ला यहज़रुल फ़क़ीह, भाग 1, पेज 422, हदीस 1242; बिहारुल अनवार, भाग 86, पेज 271, अध्याय 2, हदीस 13)