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कुमैल को अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) की वसीयत 1

  • प्रकाशन तिथि:   2013-01-13 17:41:38
  • दृश्यों की संख्या:   245

लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान

किताब का नाम: शरहे दुआ ए कुमैल

 

तोहफ़ुल ओक़ूल नामी पुस्तक के लेख़क (हसन पुत्र शाबए हर्रानी) ने (इरताद के पोत्र सअद) से उद्धरण किया हैः

मैने ज़ियाद के पुत्र कुमैल को देखा तो उससे अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) के गुणो (फ़ज़ाइल) के सम्बंध मे प्रश्न किया, उसने उत्तर दियाः क्या तू चाहता है कि जो वसीयत अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) ने मुझ से की है वह तुझे बताऊँ, और यह वसीयत तेरे लिए संसार और जो कुच्छ भी संसार मे है उससे उत्तम है? मैने उत्तर दियाः हाँ, कुमैल ने कहा अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) ने मुझे इस प्रकार वसीयत कीः

हे कुमैल, प्रतिदिन (बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम) तत्पश्चात (लाहौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्ला) पढ़ो और ईश्वर पर भरोसा रखो, उसके पश्चात निर्दोष नेताओ (आइम्मए मासुमीन) के नाम लो और उनपर सलवात[1] पढ़ो और ईश्वर की शरण लो तत्पश्चात हमारी शरण लो, इसी प्रकार ख़ुद को अपनी संतान तथा हर वह चीज जो तुम्हारे पास है उसको ईश्वर एंव हमे सौप दो ताकि उस दिन की बुराई से सुरक्षित हो जाओ।



[1] सलवात इस धर्म का एक मंत्र है जो शिया सुन्नी समप्रदाय मे भिन्न है। हम इस स्थान पर वह सलवात जो शिया समप्रदाय मे पढ़ी जाती है उसका उल्लेख कर रहे है। -अल्ला हुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव वआले मुहम्मद- (अनुवादक)

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