इस में कोई शक नही है कि हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) की ज़ात इस्लाम में सबसे ज़्यादा दीनी, इल्मी, अदबी, मुत्तक़ी व अख़लाक़ी कमालात की हामिल है। आपकी ज़ात इफ़्फ़त व फ़ज़ीलत में तमाम दुनिया की औरतों के लिए आइडियल है। आपकी गोद में हज़रत इमाम हसन व हज़रत इमाम हुसैन जैसे महान व्यक्तियों का पालन पोषण हुआ है। आप ही गोद में हज़रत ज़ैनब जैसी बहादुर बेटी पली, जो ख़िताबत और हक़ हासिल करने में एक नमूना औरत हैं। उन्होने पूरी दुनिया में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मक़सद व आशूर के पैग़ाम को पहुँचाया है और यज़ीदियत के चेहरे पर पड़ी इस्लाम की नक़ाब को पलट कर उनके शिर्क व रियाकारी को ज़ाहिर कर दिया। सब जानते हैं कि बच्चों की तरबीयत में ख़ुसूसन लड़कियों की तरबीयत में माँ का बहुत अहम किरदार होता है। लिहाज़ा हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) ने अपने घर के पाको पाकीज़ा महौल में अपनी औलाद को इस्लामी तालीम व तरबियत दी। माँ बाप आपके पैग़म्बर इस्लाम (स.) की बेटी है। हम उस बाप की तारीफ़ में क्या कह सकते हैं जो रसूलों का सरदार, अल्लाह का हबीब और इंसानियत को निजात देने वाला है। हम उस बाप के बारे में क्या कह सकते हैं जिनकी तारीफ़ के लिखने में क़लम आजिज़ है और दुनिया के बड़े बड़े फ़सीह व बलीग़ इंसान जिनके कमालों की तारीफ़ से हैरत में हैं। और आपकी माँ ख़दीजा बिन्ते ख़वैलद है जो इस्लाम से पहले क़ुरैश की सबसे नेक औरत थीं। यह बीबी वह हैं जिन्होंने औरतों में सबसे पहले इस्लाम को क़बूल किया और इसिलाम को परवान चढ़ाने के लिए अपनी सारी मालो दौलत अपने शौहर के सुपुर्द कर दी। इस्लाम हज़रते ख़दीजा की पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के साथ वफ़ादारी और जान व माल की क़ुरबानी को कभी नही भुला सकता। जब तक हज़रत ख़दीजा ज़िन्दा रहीं पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने दूसरी शादी नहीं की और हमेशा उनकी ही तारीफ़ करते रहे। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की बीवी हज़रत आइशा कहती हैं कि पैग़म्बरे इसलाम की बीवियों में से कोई भी हज़रत ख़दीजा के बराबर नही पहुँच सकी। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) हमेशा उनका ज़िक्र बहुत एहतेराम से करते थे जिससे यह ज़ाहिर होता था कि कोई दूसरी बीवी उनके बराबर नही थी। आइशा कहती हैं कि मैंने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से कहा कि वह तो एक बेवा औरत थीं, इस बात से पैग़म्बरे इसलाम (स.) इतने नाराज़ हुए कि आपकी पेशानी की रगें तन गयीं। और उन्होंने फ़रमाया कि अल्लाह की क़सम मेरे लिए ख़दीजा से बेहतर कोई नही था। जब सब लोग काफ़िर थे तो वह मुझ पर ईमान लायीं और जब सब लोग मुझ से मुँह मोड़ चुके थे उस वक़्त उन्होंने अपनी सारी दौलत मेरे हवाले कर दी और उसे इस्लाम की राह में बग़ैर झिजक ख़र्च कर डाली। अल्लाह ने उनसे मुझे एक ऐसी बेटी अता की कि जो तक़वे, इफ़्फ़त और तहारत का नमूना है। फिर आइशा कहती हैं कि मैंने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) से कहा कि इस बात से मेरा कोई ग़लत मक़सद नही था। मैं यह बात कहने के बाद बहुत शर्मिन्दा हुई। हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) ऐसे माँ बाप की गोद की पली हैं। कुछ लोगों का कहना है कि हज़रत ख़दीजा (स.) से पैग़म्बरे इस्लाम के सात बच्चे पैदा हुए।
1. हज़रत क़ासिम, जिनकी वजह से पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को अबुल क़ासिम कहा जाता है। वह बेसत से दो साल पहले इस दुनिया से रुख़सत हो गये।
2. अब्दुल्लाह या तैय्यब, उनका इन्तेक़ाल भी बेसत से पहले ही हो गया था।
3. ताहिर, वह बेसत के शुरू में पैदा हुए और बेसत के बाद दुनिया से रुखसत हो गये। 4. ज़ैनब जिनकी शादी अबुल आस से हुई।
5. रुक़य्या, उन की शादी पहले उतबा से और बाद में उस्मान बिन उफ़्फ़ान से हुई। उनका इन्तेक़ाल सन् दो हिजरी में हुआ।
6. उम्मे कुलसूम, उनकी शादी रुक़य्या के बाद उस्मान से हुई। वह सन् चार हिजरी में इस दुनिया से रुखसत हुई।
7. हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) उनकी शादी हज़रत अली अलैहिस्सलाम से हुई और आइम्मा ए मासूमीन आपकी ही औलाद में क़रार पाये। हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) की पैदाइश बेसत के पाँचवे साल 20 जमादी उस सानी को मक्के में हुई। जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.,) ने मदीने हिजरत की तो उस वक़्त आपकी उम्र 9 साल के क़रीब थी। उनके तमाम नाम व अलक़ाब उनके मलकूती कमालों की निशानी है। जैसे सिद्दीक़ा,ताहिरा, ज़किया, ज़हरा, सैयदतुनि निसाईल आलमीन, ख़ैरुन निसा और बतूल वग़ैरह। यह सब आपके क़मालों का ही क़सीदा पढ़ रहे हैं। आपकी कुन्नियत उम्मुल हसन, उम्मुल हुसैन, उम्मुल आइम्मा.......है। इन तमाम कुन्नियतों में सबसे ज़्यादा अहम उम्मे अबीहा है। यानी अपने बाप की माँ। यह लक़ब इस बात को उजागर करता है कि वह अपने बाप को बहुत ज़्यादा चाहती थीं। वह बचपन में ही अपनी माँ, हज़रत ख़दीजा की तरह, अपने बाप की रूही व मानवी पनाहगाह थीं। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने आपको उम्मे अबीहा का लक़ब इस लिए दिया कि अरबी में इस लफ़्ज़ के मअना माँ के अलावा, जड़ व बुनियाद के भी हैं। इससे ज़ाहिर होता है कि इस लक़ब का मतलब नबूव्वत व विलायत की बुनियाद है। क्योंकि वह आप ही का वुजूद था जिससे शजरे इमामत व विलायत परवान चढ़ा। (जिसने नबूवत को बर्बाद होने और अबतरी के तानों से बचाया।) हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाहि अलैहा) की पाकीज़ा ज़िन्दगी हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाहि अलैहा) अपनी माँ हज़रत खदीजा के सिफ़ात व कमालात का नमूना थीं। वह जूद व सखावत,फ़िक्र की बुलन्दी और नेकी में अपनी माँ की वारिस थीं। और मलाकूती सिफ़ात व अख़लाक़ में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की जानशीन थीं। वह अपने शौहर हज़रत अली (अ.) के लिए हमदर्द, मेहरबान व फ़िदाकार बीवी थी। आपके दिल में अल्लाह की इबादत और पैग़म्बरे इसिलाम की मुहब्बत के अलावा कोई दूसरी चीज़ न थी। जाहिलियत के ज़माने की बुत परस्ती से उन्हें कोई रब्त नही था। उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के नौ साल अपनी माँ बाप के साथ और जिन्दगी के दूसरे नौ साल अपने शौहर हज़रत अली (अ.) के साथ इस्लाम की तबलीग़, समाजी ख़िदमत और घर के सख़्त कामों में गुज़ारे। आपका सारा वक़्त बच्चों की तरबियत, घर की सफ़ाई और अल्लाह की इबादत व ज़िक्र में गुज़रता था। हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) उस ख़ातून का नाम है जो इस्लाम के मकतबे तरबियत में परवान चढ़ीं । ईमान व तक़वा आपकी ज़ात में बस चुका था। हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (सलामुल्लाह अलैहा) अपने माँ बाप की मुहब्बत से लबरेज़ गोद में तरबियत पाई और इस्लामी उलूम को बिला वास्ता नबूवत से हासिल किया। उन्होंने शादी से पहले जो कुछ भी अपने घर में सीखा था, शादी के बाद अपने शौहर के घर में उस पर अमल किया। वह एक समझदार व तजरबेकार औरत की तरह अपने बच्चों की तरबियत व शौहर की ख़िदमत को अन्जाम देती थीं। इसी तरह आप घर से बाहर वाक़े होने वाले हालात से बा ख़बर रहती थीं और अपने व अपने शौहर के हक़ का दिफ़ा करती थीं। हज़रत अली (अ.) के साथ शादी यह बात शुरू से ही सब पर ज़ाहिर थी कि प़ैगम्बरे इस्लाम (स.) की बेटा का, अली अलैहिस्सलाम के अलावा कोई दूसरा हम पल्ला नही है। मगर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के कुछ असहाब जो अपने आपको पैग़म्बर (स.) के नज़दीक समझते थे, अपने दिलों में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की बेटी के सात शादी का अरमान सजाये हुए थे। इतिहासकारों ने लिखा है कि जब सबने पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के सामने जा कर क़िस्मत आजमा ली तो फिर हजद़रत अली (अ.) से कहना शुरू किया कि ऐ अली आप पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी से शादी के लिए रकिश्ता क्यों नही पेश करते। हज़रत अली (अ.) फ़रमाते थे कि मेरे पास ऐसा कुछ भी नही है कि जिसकी बिना पर मैं इस रास्ते पर आगे क़दम बढ़ाऊँ। वह लोग जवाब देते थे कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) आप से कुछ नही माँगें गे।आख़िर में हज़रत अली (अ.) ने इस पैग़ाम के लिए अपने आपको तैयार किया और एक दिन प़ैगम्बरे इस्लाम (स.) के घर पहुँचे, लेकिन शर्म की वजह से आप अपना मक़सद ज़ाहिर नही कर पा रहे थे। इतिहास कार लिखते हैं कि वह इसी तरह कई बार पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के घर गये लेकिन अपनी बात न कह सके। जब वह तीसरी बार पैग़म्बरे इस्लाम के सामने गये तो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने पूछ ही लिया कि ऐ अली क्या कोई काम है? हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया “जी”पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया कि शायद फ़ातिमा के साथ शादी का पैग़ाम लेकर आये हो ! हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया “जी” चूँकि मशियते इलाही यह चाह रही छी कि यह अज़ीम रिश्ता वुजूद में आये लिहाज़ा हज़रत अली अलैहिस्सलाम के आने से पहले पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को वही के ज़रिये इस बात से आगाह किया जा चुका था। बेहतर थाकि आप इस रिश्ते ता ज़िक्र अपनी बेटी से भी करते लिहाज़ा आपने अपनी बेटी से फ़रमाया कि ऐ फ़ातिमा आप अली को हर तरह से जानती हैं, वह मेरे सबसे ज़्यादा क़रीब है, अली इस्लाम के सबसे पहले ख़िदमत गुज़ार और बाफ़ज़ीलत इंसान हैं। मैंने अल्लाह से यह चाहा था कि वह तुम्हारे लिए बेहतरीन शौहर का चयन करे। अल्लाह ने मुझे यह हुक्म दिया है कि मैं आपकी शादी अली से करदूँ, इस सिलसिले में आप की क्या राये है? हज़रत ज़हरा यह सुन कर चुप हो गयीं, पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने उनकी ख़ामौशी को उनकी मर्ज़ी समझा और ख़ुशी के साथ तकबीर कहते हुए वहाँ उठ गये और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास आकर उन्हें खुशखबरी सुनाई और हज़रत ज़हरा (स.) का मेहर चालीस मिसक़ाल तैय पाया। असहाब के मजमे में निकाह पढ़ा गया और इस तरह यह शादी बहुत सादे सादे अन्दाज़ में हुई। यह बात क़ाबिले ज़िक्र है कि शादी के वक़्त हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास एक तलवार,एक ज़िरह और पानी भरने के लिए एक ऊँट के अलावा कुछ भी न था। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया कि तलवार को जिहाद के लिए रखो। ऊँट को सफ़र व पानी भरने के लिए रखो लेकिन अपनी ज़िरह को बेंच कर शादी का सामान खरीद लो। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने जनाबे सलमाने फ़ारसी से कहा कि इस ज़िरह को बेंच दो। जनाबे सलमान ने इस ज़िरह को 500दिरहम में बेंच दिया। एक भेड़ ज़िबाह करके इस शादी का वलीमा किया गया। यह शादी सन् दो हिजरी क़मरी को रजब के महीने में हुई। पैग़म्बरे इसलाम की बेटी जो चीज़ें जहज़ में अपने शौहर के घर लाईं थी वह ज़्यादा न थीं। शाहदज़ादी-ए-आलम का बस यही मुख़्तसर सा जहज़ था। शादी के वक़्त हज़रत ख़दीजा की जगह हज़रत उम्मे सलमा हज़रत ज़हरा (स.) की देख रेख कर रही थीं और पैग़म्बरे इस्लाम अपने चन्द बा वफ़ा मुहाजिर व अनसार असहाब के साथ शादी के जश्न में शरीक थे। तकबीर व तहलील की आवाज़ों से मदीने की गलियाँ गूँज रही थीं और उनसे एक खास रूहानी माहौल पैदा हो गया था जिससे दिलों में ख़ुशी की लहरे दौड़ रही थीं। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अपनी बेटी का हाथ हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हाथ में देकर उन दोनो के हक़ में दुआ करते हुए उन्हें अल्लाह के सपुर्द कर दिया। इस तरह इंसानों में सबसे बेहतर जोड़े की शादी की रसूम पूरी हुईं। खुशी से ग़म तक सन् 11हिजरी क़मरी में सफ़र के महीने के आख़िर में पैग़म्बरे इसलाम (स.) की रेहलत हुई। क्या कोई बता सकता है कि बेटी के लिए यह कितनी सख़्त मुसीबत थी! वह भी पैग़म्बरे इस्लाम (स.) जैसा बाप कि जब आप सफ़र पर जाते थे तो सबसे आख़िर में हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.) से ख़ुदा हाफ़िज़ी करते थे और उनको प्यार करते थे। और जब सफ़र से वापस आते थे तो सबसे पहले अपनी बेटी से मुलाक़ात के लिए जाते थे। वह शहज़ादी का हमेशा ख़्याल रखते थे और रिसालत के राज़ उनको बताया करते थे। और बेटी की हालत यह थी कि हमेशा बाप के साथ रहती थी अपने बाबा की देख रेख करती थीं और कभी कभी तो हाशिमी औरतें के साथ मैदाने जंग में पहुंच कर अपने बाबा की मिज़ाज पुरसी करती थीं। लिहाज़ा जब जंगे ओहद में “मुहम्मद क़त्ल कर दिये गये” की झ़ूटी आवाज़ फ़ज़ा में गूँजी तो आप फ़ौरन ओहद नामक पहाड़ पर पहुँची और अपने बाबा का ख़ून भरा चेहरा साफ़ किया और उनके ज़ख़्मों पर जली हुई चटाई की पट्टी बाँधी और जब तक ज़ख़्म ठीक न हुआ उसकी खूब देख रेख की। वह बेटी जो बच्चों की देख रेख और घर के कामों से फ़ुर्सत पाते ही अपने बाबा की ख़िदमत में पहुंच जाती थी और उनकी ज़ियारत करती थी....। जब ऐसे बाप व बेटी में जुदाई का वक़्त क़रीब आया और पैग़म्बरे इस्लाम के चेहरे पर ज़िन्दगी के आख़िरी आसार नज़र आने लगे तो आइशा से रिवायत है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने उस हालत में अपनी बेटी को अपने पास बुला कर बिठाया और उनके कान में कोई राज़ की बात कही। ज़िसे सुनकर आप बहुत ज़्यादा रोईं। उसके बाद एक दूसरी बात कही जिसे सुनकर वह ख़ुश हो गईं। यह मंज़र देख कर सब हैरान हो गये। लोगों ने जब इस बारे में हज़रत ज़हरा (स.) से पूछा तो आपने फ़रमाया कि जब पहले मेरे बाबा ने मुझे अपनी मौत की ख़बर सुनाई तो मैं बहुत ग़मगीन हो गई और मैं रोने लगी। मेरे बाब भी इस मंज़र से बहुत मुतास्सिर हुए। जब दूसरी बार मेरे बाबा ने मेरे कान में कहा कि ऐ फ़ातिमा ! मेरे पूरे ख़ान्दान में आप सबसे पहले मुझ से आकर मिलोगी। तो यह सुन कर मैं ख़ुश हो गई औरमेरे बाबा ने कहा क्या तुम्हे यह गवारा है कि तुम सारी दुनिया की औरतों की सरदार बनो? तो मैंने जवाब दिया जो आपको और अल्लाह को पसंद हो वह मुझे मंज़ूर है। हाँ फ़ातिमा इस उम्मत व दुनिया की तमाम औरतों की सरदार हैं। बाग़े रिसालत का यह ख़िला हुआ फूल हादसों की तेज़ हवाओं को बर्दाश्त न कर सका और अपने बाबा की रेहलत के कुछ दिनों बाद ही अपने बाबा से जा मिला। अफ़सोस की इस्लाम की इस शहज़ीदी की उम्र कितनी कम थी! मेहरबान बाप के इस दुनिया से गुज़र जाने के बाद और रसूल के बाद पैदा होने वाले हालात ने हज़रत ज़हरा (स.) की रूह व ज़िस्म को इस तरह सताया कि जब तक ज़िन्दा रहीं हमेशा रोती रहीं। बाप की जुदाई का ग़म उनके लिए नाक़ाबिले बर्दाश्त था और यही वजह थी कि जब उन्होंने अपने बाबा की ज़बानी अपनी मौत की ख़बर सुनी तो आप मुस्कुराई थीं। उन्होंने बाप की जुदाई में ज़िन्दगी पर मौत को तरजीह (प्राथमिकता) दी। आखिर में मुसीबते और परेशानियाँ इतनी बढ़ीं कि पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी बीमारे के बिस्तर पर लेट गीई। आपकी बीमारी के दिनों में इस्लाम के कितने मुजाहिद आपकी अयादत के लिए आये या कितने मुसलमानों ने आपको दजिलासा दिया ? जबकि उनके पास जो कुछ था वह सब रसूल का दिया हुआ ही था। शायद सलमान व बिलाल जैसे एक दो सितम दीदा मुसलमानों के अलावा कोई और आपती अयादत को नही आया। लेकिन जब मदीने की औरतों ने ख़सूसन अन्सार की औरतों ने हज़रत ज़हरा की बीमारी व रंजो ग़म की खबर सुनी तो वह मुब्बत के साथ हज़रत ज़हरा (स.) के पास आईं और आपकी अयादत की व आपको तसल्ली दी लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम की इस दुखयारी बेटी ने बीमारी के बिस्तर से भी अहवाल पूछने वालों को फसीह व बलीग़ जवाब दिया। वह जवाब जो इस मज़लूमा के दर्दे दिल को बयान कर रहा था। लेकिन हक़ीक़त में आपका जवाब इंसानों को मुसलमानों में आइन्दा होने वाले फ़ितने फ़साद से आगाह कर रहा था। आखिर में पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की बेटी ने अपनी बातें कहीं और मुसीबतों के सबब जन्नत को सिधार गईं
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