पुस्तक का नामः कुमैल की प्रार्थना का वर्णन
लेखकः आयतुल्ला अनसारियान
मनसूर पुत्र अम्मार के समय मे एक धनि व्यक्ति ने समझसयत (मासीयत) की बैठक का आयोजन किया, उसने अपने ग़ुलाम को बाज़ार से ख़ाने पीने की सामग्री लाने हेतु चार दिरहम दिए।[1]
ग़ुलाम जो कि बाज़ार मे चला जा रहा था उसने देखा कि मनसूर पुत्र अम्मार की बैठक (मीटिंग) आयोजित है, विचार किया कि चलकर देखूं कि मनसूर क्या कह रहे है? तो उसने देखा कि मनसूर अपने पास बैठने वालो से कुच्छ मांगते हुए कर रहे है किः तुम मे कौन है जो मुझे चार दिरहम प्रदान करे ताकि मै उसके लिए चार प्रार्थनाए करूं सेवक ने सोचा कि उन पापीयो के लिए खाने पीने की सामग्री खरीदने से तो अच्छा है कि मै यह चार दिरहम मनसूर पुत्र अम्मार को दे दूं ताकि मैरे हित मे चार प्रार्थनाए कर दें।
ग़ुलाम ने यह विचार करके वह चार दिरहम मनसूर को देते हुए कहाः मेरे लिए चार प्रार्थना करो, मंसूर ने प्रश्न किया तुम्हारी प्रार्थनाए क्या है? ग़ुलाम ने उत्तर दियाः मेरी पहली प्रार्थना है कि मै स्वतंत्र हो जाऊ, दूसरी यह है कि मेरे मालिक को पश्चाताप की तौफ़ीक़ प्रदान करे, तीसरी यह कि ये चार दिरहम मुझे वापस प्राप्त हो, चौथी प्रार्थना है कि मुझे, मेरे मालिक तथा बैठक मे सम्मिलित सभी व्यक्तियो को क्षमा कर दे।
चुनांचे मंसूर ने यह चार प्रार्थनाए उस ग़ुलाम के लिए कीं और ग़ुलाम खाली हाथ अपने मालिक के पास चला गया।
उसके मालिक ने कहाः कहां थे? ग़ुलाम ने उत्तर दिया मैने चार दिरहम देकर चार प्रार्थनाए खरीदी है, मालिक ने प्रश्न किया वह चार प्रार्थनाए क्या है? ग़ुलाम ने उत्तर मे कहा: पहली प्रार्थना कि मै स्वतंत्र हो जाऊ, मालिक ने कहा जाओ तुम्हे ईश्वर के मार्ग मे स्वतंत्र किया, ग़ुलाम ने कहा: दूसरी प्रार्थना यह थी कि मेरे मालिक को पश्चाताप करने की तौफ़ीक़ मिले, मालिक ने कहा मै पश्चाताप करता हूँ, उसने कहा तीसरी प्रार्थना थी कि इन चार दिरहम के बदले मुझे चार दिरहम प्राप्त हो जाए, चुनांचे यह सुनकर उसके मालिक ने चार दिरहम प्रदान कर दिए. ग़ुलाम ने कहा: चौथी प्रार्थना थी कि मुझे , तुझे और बैठक मे सम्मिलित व्यक्तियो को क्षमा कर दे. यह सुनकर उसके मालिक ने उत्तर दिया कि जो कुच्छ वंश मे था मैने कर दिया, तेरी मेरी और बैठक मे सम्मिलित व्यक्तियो की क्षमा मेरे हाथ मे नही है। उसी रात्रि इस मालिक ने स्वप्न देखा कि परमेश्वर की ओर से एक आवाज़ आ रही है कि हे मेरे बंदे तूने अपनी ग़रीबी मे भी अपने कर्तव्य का पालन किया, क्या हम अपने दया के अथासागर के स्वरूप अपने कर्तव्य का पालन ना करें, हमने तुझे तेरे ग़लाम को तथा बैठक मे सम्मिलित व्यक्तियो को क्षमा कर दिया।