पैग़म्बरे इस्लाम ने एक कथन में युवाओंसे सिफ़ारिश की है कि वे अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण के लिए विवाह करे और अगर यह संभव न हो तो रोज़ा रखें।प्रोफ़ेसर डाक्टर मीर बाक़री रोज़े के संबंध में पूछे गये एक प्रश्न के उत्तर में सबसे पहले मनुष्य की अध्यात्मिक आवश्यकता पर बल देते हुए कहते हैं:वर्तमान विश्व ने तकनीक के विकास के साथ साथ मनुष्य को बड़ी तीव्रता से आंतरिक इच्छाओं की पूर्ति और बे लगाम स्वतंत्रता की ओर अग्रसर किया है। जिस के परिणाम में जो परिस्थितियां सामने आई हैं उस से सभी अवगत हैं वास्तव में अध्यात्म की अनदेखी ने ही इच्छाओं की बेलगाम पूर्ति की ओर मनुष्य को अग्रसर किया है और यह एसा ख़तरा है जिस की ओर से बहुत से पश्चिमी विशेषज्ञों ने भी चेतावनी दी है। क़ुरआने मजीद ने शताब्दियों पूर्व बड़े सुन्दर से इस ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है क़ुरआन ने निमंत्रण दिया कि रोज़ा रखकर अपनी आन्तरिक इच्छाओं पर नियंत्रण किया जाए। पैग़म्बरे इस्लाम ने भी अपने कथन में भी युवाओं से यही कहा है कि अपनी आन्तरिक इच्छाओं पर नियंत्रण के लिए विवाह करो या फिर रोज़ा रखो।वास्तव में रोज़ा एक अभ्यास है इच्छाओं पर नियंत्रण रखने का। यूं तो धर्म ने सिफ़ारिश की है कि मनुष्य हर समय आत्मनिमर्ण के लिए प्रयास करे किंतु रमज़ान वास्तव में एक प्रतियोगिता है अच्छाईयों तक पहुंचने के लिए और प्रतियोगिता के समय अभ्यास में वृद्धि हो जाती है वैसे भी रमज़ान आत्मनिमार्ण के लिए सामूहिक रुप से प्रयास करने का अवसर होता है। और निश्चित रुप से व्यक्तिगत रुप से किए जाने वाले काम का महत्व सामूहिक रुप से उठाए गये कदमों से कम होता है। वैसे भी इस्लाम में सामूहिक उपासनाओं को अधिक महत्व प्राप्त है। सामूहिक उपासना वास्तव में एकता का प्रदर्शन होती है विभिन्न समाजिक वर्गों से संबंध रखने वाले लोग जब एक साथ उपासना करते हैं तो उन में छोटे बड़े का अंतर नही रह जाता धनी व निर्धन का अंतर मिट जाता है और सब के सब एक ईश्वर की एक समय में एक शैली में उपासना करते हैं जो निश्चित रुप से समाज में समानता की स्थापना के लिए प्रभावी है इसी लिए इस्लाम में नमाज़ जमाअत के साथ अर्थात सामूहिक रुप से नमाज़ पढ़ने की बहुत सिफ़ारिश की गयी क्योंकि साथ साथ उपासना के बहुत से लाभ है जिन में एक यह है कि उपासकों की एक दूसरे से भेंट होती है एक दूसरे के दुख दर्द की जानकारी मिलती है और एक दूसरे का दुख दर्द बॉटना सरल होता है।
source : irib.ir