पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
अत्तार “मन्तिकुत्तैर” नामी पुस्तक मे कहते हैः एक व्यक्ति को निरंतर पाप और समझसयत (मासीयत) के पश्चात पश्चाताप करने का अवसर प्राप्त होता है, पश्चाताप करने के उपरांत फिर हवाए नफ़्स के ग़ालिब होने के कारण पाप करता है, फिर पश्चाताप करता है किन्तु फिर उसने अपनी पश्चाताप को तोड़ डाला और पाप किया, यहा तक कि उसने अपने कुच्छ पापो की सज़ा भी भुगती तथा वह इस परिणाम पर पहुंचा गया कि उसने अपनी आयु को तबाह व बरबाद कर डाला है और जब उसका अंतिम समय आया तो उसने एक बार फिर पश्चाताप के समबंध मे विचार किया, परन्तु शर्मिंदगी और ख़जालत के कारण पश्चाताप न कर सका, लेकिन जलते तवे पर भुनते हुए दाने के समान पीड़ा और बेचैनी मे भोर के समय तक करवटे परिवर्तित करता रहा, उस समय एक आवाज़ आईः हे पापी ईश्वर का कहना हैः जब तूने पहली बार पश्चाताप किया तो मैने तुझे क्षमा कर दिया था किन्तु तूने अपनी पश्चाताप को तोड़ दिया था, जबकि मै तुझ से बदला ले सकता था परन्तु मैने तुझे मोहलत दी, यहा तक कि तूने दुबारा पश्चाताप किया मैने स्वीकार की लेकिन तू तीसरी बार भी अपनी की हुई पश्चाताप पर नही रहा और उसको तोड कर पाप एंव समझसयत मे डूब गयाः और यदि तू इस समय भी पश्चाताप करने का इच्छुक है तो पश्चाताप कर ले मै तेरी पश्चाताप को स्वीकर कर लूंगा।[1]