पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
अत्तार “मन्तिकुत्तैर” नामी पुस्तक मे कहते हैः एक दिन रूहुल अमीन सिदरतुलमुन्तहा पर थे देखा कि ईश्वर की ओर से लब्बैक लब्बैक की आवाज़ आ रही है, परन्तु इस बात का ज्ञान न हो सका कि यह लब्बैक किस के उत्तर मे कही जा रही है, उस व्यक्ति को पहचानने का विचार मन मे आया जिसके उत्तर मे यह लब्बैक कही जा रही है पूरे संसार पर नज़र दौड़ाई कोई दिखाई नही दिया उस समय भी ईश्वर के दरबार से निरंतर लब्बैक लब्बैक की आवाज़ आ रही है।
उसके पश्चात फिर देखा कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई नही पड़ता जो ईश्वर की लब्बैक का हक़दार हो, कहाः हे पालनहार मुझे उस व्यक्ति को दिखा दे जिसके रोने के कारण तू लब्बैक कह रहा है, ईश्वर ने समबोधित कियाः रोम की धरती पर देखो, देखा कि रोम के एक मंदिर (मूर्तिगृह, बुतकदे) मे एक मूर्ति पूजक वर्षा के बादल समान उसके नेत्रो से आंसू बह रहे है तथा मूर्ति से विनती कर रहा है।
रूहुलअमीन ने इस घटना को देख जोश मे आकर कहाः हे पालनहार मेरी आंखो से पर्दा उठा ले, कि एक मूर्ति पूजक अपनी मूर्ति से विनती कर रहा है उसके सामने आंसू बहा रहा है और तू है कि अपनी दया एंव कृपा से उसके उत्तर मे लब्बैक कह रहा है!!
आवाज़ आई मेरे बंदा (सेवक) हृदय काला होने के कारण पथभ्रष्ठ हो गया है, परन्तु मुझे उसका राज़ो नियाज़ अच्छा लगा इस लिए उसका उत्तर दे रहा हूँ, तथा उसकी आवाज़ पर लब्बैक कह रहा हूँ ताकि वह इसके कारण राहे हिदायत पर आसके, इसीलिए उसी समय उसकी ज़बान पर कृपालु एंव दयालु ईश्वर का कलमा जारी हो गया।[1]