पुस्तक का नामः कुमैल की प्रार्थना का वर्णन
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
ईश्वर का सच्चा सेवक, उसकी शक्ति एंव महीमा के सामने ज़लील एंव विनम्र होता है, तथा अपने सर को उसके सामने झुकाए होता है तथा उसके अलावा किसी दूसरे के सामने अपने सर को झुकाने की अनुमति नही देता।
इमाम सादिक अलैहिस्सलाम ने कहाः
إِنَّ اللہ تَبَارَکَ وَ تَعَالیٰ فَوَّضَ إِلَی المُومِنِ کُلَّ شَیء إلَّا إذلَالَ نَفسِہِ
इन्नल्लाहा तबारका वतआला फ़व्वज़ा एलल मोमेने कुल्ला शैइन इल्ला इज़लाला नफसेहि[1]
स्वयं को किसी दूसरे के सामने ज़लील करने के अलावा खुदा वंदे मुताआल ने सभी कार्य मोमिन (विश्वासी) के हाथ मे दे दिए है।
यहा तक कि यदि कोई पवित्र नबी के अपमान को स्वीकार करे उसको अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम से नही जानते और कहते हैः
مَن آقَرَّ بِالذُّلِّ طَائِعاً فَلَیسَ مِنَّا آھلَ البَیتِ
मन अक़र्रा बिज़्ज़ुल्ले तायेअन फ़लैसा मिन्ना अहल्लबैते[2]
जो व्यक्ति अपमान को स्वीकार करता है वह मेरे परिवार से नही है।
जीरी
[1] अलकाफ़ी, भाग 5, पेज 63, बाबे कराहते तआर्रुज़ लेमा लायोतीक़, हदीस 3; वसाएलुश्शिया, भाग 16, पेज 157, अध्याय 12, हदीस 21234
अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम के कथनो मे मनुष्य के अपमानित होने के कारणो का उल्लेख हुआ है निम्मलिखित कारणो की ओर संकेत किया जा सकता है। 1- कनजूसी 2- जिहाद का त्यागना 3- लोभ 4- अपनी समस्याओ का वर्णन करना 5- जीवन से प्रेम 6- हक़ूक़ का ना देना 7- ईश्वर के आलावा दूसरो के यहा इज़्ज़त खोजना 8- अत्याचार इत्यादि
[2] तोहफ़ुलओक़ूल, पेज 58; बिहारुल अनवार, भाग 74, पेज 164, अध्याय 7, हदीस 181