- قال الامام الباقر علیه السلام:
الكَمال كُلُ الكَمال: التَّفَقهُ فِی الدِّینِ وَ الصَبرُ عَلی النائِبَة وَ تَقدِیرُ المَعیشَةِ؛
1. इन्सान की श्रेष्ठता की पूर्ति (इन तीन चीज़ों में है) धर्म के बारे में ज्ञान प्राप्त करना और आलिम बनना, मुसीबत और कठिनाई के समय सब्र करना एवं धैर्य रखना, जीवन में ख़र्चों का हिसाब रखना (यानी आमदनी और ख़र्चे का हिसाब रखना)
2- قال علیه السلام:
عَالِمٌ ینتَفع بِعِلمِه أَفضَل مِن سَبعین ألف عَابد؛
2. वह ज्ञानि जिसके ज्ञान से लाभ उठाया जाए (स्वंय वह और दूसरे उससे लाभ उठाएं) वह सत्तर हज़ार आबिदों से बेहतर है।
3- قال علیه السلام:
من طلب العلم لیُباهی به العلماء أو یماری به السفهاء أو یصرف به وجوه الناس إلیه فلیتبوء مقعده من النار، إنّ الرئاسة لا تصلح إلاّ لأهلها؛
3. जो भी इसलिए शिक्षा प्राप्त करे कि वह ज्ञानियों पर अपनी श्रेष्ठा सिद्ध करे, या कम अक़्लों के साथ बहस करे, या इसलिए ज्ञान प्राप्त करे कि लोगों के ध्यान को अपनी तरफ़ आकर्शित करे, तो उसको अपने बैठने के स्थान पर नर्क की आग को तैयार करना चाहिए (यानि उसका स्थान नर्क है) जान लो कि हुकूमत उसके हक़दार के अतिरिक्त किसी दूसरे के लिए अच्छी नहीं है।
4- قال علیه السلام:
ما شیبَ شیءٌ بشیءٍ اَحسن مِن حِلمٍ بعلمٍ؛
4. मिलाई नहीं गई है कोई चीज़ किसी दूसरी चीज़ से जो बेहतर हो विवेक एवं ज्ञान के मिलाए जाने से।
5- قال علیه السلام:
«ثَلاثَةٌ مِنْ مَکارِمِ الدُّنْیا وَ الاْخِرَةِ: أَنْ تَعْفُوَ عَمَّنْ ظَلَمَکَ، وَ تَصِلَ مَنْ قَطَعَکَ، وَ تَحْلُمَ إِذا جُهِلَ عَلَیْکَ.»:
5. तीन चीज़ें लोक एवं परलोक की श्रेष्ठता में से हैं,
जिसने तुम पर अत्याचार किया हो उसको क्षमा कर देना
जिसने तुमसे संबंध तोड़ लिया हो उससे संबंध स्थापित करना।
जब भी कोई तुमसे अज्ञानता के कारण (बुरा) व्यवहार करे तो उसके सामने विवेक दिखाओ।
6- قال علیه السلام:
الظُّلْمُ ثَلَاثَةٌ: ظُلْمٌ یغْفِرُهُ اللَّهُ وَ ظُلْمٌ لَا یغْفِرُهُ اللَّهُ وَ ظُلْمٌ لَا یدَعُهُ فَأَمَّا الظُّلْمُ الَّذِی لَا یغْفِرُهُ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ فَالشِّرْک بِاللَّهِ وَ أَمَّا الظُّلْمُ الَّذِی یغْفِرُهُ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ فَظُلْمُ الرَّجُلِ نَفْسَهُ فِیمَا بَینَهُ وَ بَینَ اللَّهِ عَزَّ وَ جَلَّ وَ أَمَّا الظُّلْمُ الَّذِی لَا یدَعُهُ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ فَالْمُدَاینَةُ بَینَ الْعِبَادِ وَ قَالَ علیه السلام مَا یأْخُذُ الْمَظْلُومُ مِنْ دِینِ الظَّالِمِ أَکثَرُ مِمَّا یأْخُذُ الظَّالِمُ مِنْ دُنْیا الْمَظْلُوم؛
6. ज़ुल्म एवं अत्याचार तीन प्रकार का है
वह अत्याचार जिसके ईश्वर क्षमा नहीं करता।
वह अत्याचार जिसको ईश्वर क्षमा कर देता है।
वह अत्याचार जिसको ईश्वर छोड़ता नहीं है।
लेकिन वह अत्याचार जिसको ईश्वर क्षमा नहीं करता है वह किसी दूसरे को ख़ुदा का शरीक मानन है (शिर्क करना)
और वह अत्याचार जिसको ईश्वर क्षमा कर देता है, वह आत्मा एवं नफ़्स पर अत्याचार है जिसको इन्सान ने अपने और ईश्वर के बीच अंजाम दिया है।
लेकिन वह अत्याचार जिसको ईश्वर छोड़ता नहीं है, वह क़र्ज़ एवं उधार है जो लोग एक दूसरे पर रखते हैं।
फिर आपने फ़रमायाः
जितना पीड़ित व्यक्ति अत्याचारी के धर्म से लेता है वह उससे कहीं अधिक है जितना अत्याचारी पीड़ित की दुनिया से लेता है।
क़यामत के दिन अत्याचारी के अच्छे कार्य उस पीड़ित व्यक्ति तो दे दिए जाएंगे और इसी प्रका पीड़ित के बुरे कार्य अत्याचारी के नाम लिख दिए जाएंगे।
इस कथन में बताया गया है कि वह अत्याचार जिसके बाद ख़ुदा अत्याचारी के क्षमा नहीं करता है वह दूसरों पर अत्याचार करना है। ईश्वर इन्सानों के हक़ को क्षमा नहीं करता है, ईश्वर अत्याचारियों को तलाश कर रहा है ताकि उनसे पीड़ितों के अधिकार को ले सके। क़यामत के दिन ख़ुदा अत्याचारी के नेकियों को ले कर पीड़ित को दे देता है।
इसीलिए इमाम बाक़िर (अ) ने फ़रमाया हैः जितना पीड़ित इन्सान अत्याचारी के धर्म से लेता है वह उससे कहीं अधिक है जितना अत्याचारी उसकी दुनिया से लेता है।
7- امام باقر عليه السلام:
مَن لَم يَجعَلِ اللّه لَهُ مِن نفسِهِ واعِظا، فإنَّ مَواعِظَ النّاسِ لَن تُغنيَ عَنهُ شيئا؛
7. जिसकी आत्मा में ईश्वर ने उसको नसीहत देने वाला न रखा हो (कि वह ख़ुद उस इन्सान को नसीहत करे) उसको दूसरों की नसीहतों का कोई लाभ नहीं होता।
8- قال علیه السلام:
مَن كَانَ ظاهِرُه أَرجَح مِن بَاطِنِه، خَفَّ مِیزانه؛
8. जिस भी इन्सान का प्रत्यक्ष उसके अप्रत्यक्ष (ज़ाहिर, बातिन) से बेहतर हो उसको आमाल का तराज़ू (क़यामत में) उतना ही हलका होगा। (यानि जितना ज़ाहिर अच्चा और बातिन बुरा होगा उतना ही उसके आमाल का वज़न भी कम होगा)
9- امام محمد باقر علیه السلام فرموده اند:
ایاک و الکسل و الضجر فانهما مفتاح کل شر من کسل لم یود حقا حفا و من ضجر لم یصبر علی حق؛
9. कार्यों में काहिली और बेचैनी से बचों क्योकि यह हर बुराई की जड़ हैं, जो काहिली करता है वह किसी भी हक़ को अदा नहीं करता है, और जो मलामत और बेचैनी करता है वह हक़ के रास्ते में सब्र नहीं करता है।
10-قال علیه السلام:
"والله لموت عالم احبّ الي ابليس من موت سبعين عابداً؛
10. ख़ुदा की क़सम निःसंदेह एक ज्ञानी एवं आलिम की मौत शैतान के लिए सत्तर इबादत करने वालों से अच्छी है।
source : alhassanain.org