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शिया सुन्नीः इस्लामी भाईचारा

 

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने मदीने में दाख़िल होने के बाद सब से पहले जो बेसिक क़दम उठाए उनमें एक अहम काम यह भी था कि मुसलमानों के बीच प्यार, मुहब्बत और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए अंसार व मुहाजेरीन में से हर एक को एक दूसरे का भाई बना दिया और उनके बीच भाईचारे का सीग़ा (formula) भी पढ़ा जिसका नतीजा यह हुआ कि अरबों के सारे क़बीलों के बीच सैकड़ों साल पुरानी दुश्मनी और ख़ून खराबे का ख़ुद बख़ुद अंत हो गया और उस की जगह भाई चारे और प्यार व मुहब्बत ने ले ली और सब एक दूसरे के साथ मिल कर, एक जान हो कर पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के इशारों पर दीन के लिए अपनी जान निछावर करने लगे।

इस्लाम की निगाह में सब इंसान बराबर हैं और कोई क़ौम या क़बीला तथा कोई रंग व नस्ल एक दूसरे पर वरीयता नहीं रखता और धन दौलत या ग़रीबी, बड़ाई या श्रेष्ठता का आधार नहीं है बल्कि उसकी निगाह में सदाचार के अतिरिक्त बड़ाई का हर आधार निराधार है जैसा कि क़ुर्आन मजीद में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि हमनें तुम्हारी पहचान के लिए तुम्हें विभिन्न क़ौमों, क़बीलों और रंग व नस्ल और ज़बानों के हिसाब से पैदा किया है लेकिन यह याद रखना कि यह सब बातें तुम्हारी बड़ाई और श्रेष्ठता का कारण नहीं हैं बल्कि तुम्हारे अच्छे काम और सदाचार तुम्हारी वरीयता और बड़ाई का कारण और आधार हैं। क़ुर्आने मजीद में अल्लाह तआला फ़रमाता हैः

ऐ इंसानों! हम ने तुम को एक मर्द और एक औरत से पैदा किया है और फिर तुम में शाख़ाएं और क़बीले बनाए हैं ताकि आपस में एक दूसरे को पहचान सको। तुम में से अल्लाह के नज़दीक ज़्यादा सम्मानित वही है जो ज़्यादा परहेज़गार व सदाचार है और अल्लाह हर चीज़ का जानने वाला है और हर बात का जानने वाला है। अल्लाह तआला क़ुर्आने मजीद में मोमिनों को सम्बोधित करते हुए कह रहा है कि तुम्हारे बीच यह प्यार व मुहब्बत और भाईचारा अल्लाह की नेमत है वरना ईर्ष्या व द्वेष, हसद और जलन की आग ने तुम्हें मौत के दहाने पर पहुँचा दिया था। क़ुर्आने मजीद में अल्लाह फ़रमाता हैः और अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पक़ड़े रहो आर आपस में फूट न डालो और अल्लाह की नेमत को याद करो कि तुम लोग आपस में दुश्मन थे उसने तुम्हारे दिलों में प्यार पैदा कर दिया तो तुम उसकी नेमत से भाई भाई बन गये और तुम जहन्नम के किनारे पर थे तो उसने तुम्हें निकाला और अल्लाह इस तरह अपनी निशानियां तुम्हें दिखाता है कि शायद तुम सीधे रास्ते पर आ जाओ। हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और मासूमीन अ. ने भी हमेशा मुसलमानों के बीच भाईचारे और बरादरी को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया है और मोमिनों के बीच ज़्यादा से ज़्यादा भाईचारा और नज़दीकी पैदा करने की कोशिश की इसी लिए मरने के बाद उसके फ़ायदे और नतीजे भी बयान कर दिये हैं। हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम का फरमाते हैः

अगर कोई आदमी किसी मोमिन भाई को अल्लाह तआला के लिए अपना भाई बनाये तो अल्लाह तआला उसे जन्नत में एक ऐसा दर्जा देगा जिस तक उसका कोई और अमल नहीं पहुँच सकता हैं। आप ने यह भी फ़रमायाः क़यामत के दिन कुछ लोगों के लिए आसमान के चारों तरफ़ कुछ कुर्सियाँ रखी जाएँगी और उनके चेहरे चौदहवीं के चाँद की तरह चमक रहे होंगे उस दिन लोग गिड़गिड़ा रहे होंगे मगर वह शांत होंगे, लोग भयभीत होंगे मगर उन्हें कोई डर न होगा, वह अल्लाह के नेक बंदों हैं जिन्हें न कोई डर है और न उदासी। पूछा गया ऐ अल्लाह के रसूल वह कौन लोग हैं? तो आपने फ़रमायाः

वह अल्लाह के लिए मुहब्बत करने लोग हैं। आपके हवाले से यह भी बयान हुआ है, हदीसे क़ुदसी में अल्लाह का इरशाद हैं किः मेरी मुहब्बत उन लोगों को नसीब होगी जो मेरे लिए एक दूसरे से मुलाक़ात करेंगे और मेरी मुहब्बत उन लोगों को नसीब होगी जो मेरी वजह से एक दूसरे की मदद करते हैं, मेरी मुहब्बत उन लोगों को नसीब होगी जो मेरी लिए एक दूसरे से मुहब्बत करते हैं तथा मेरी मुहब्बत उनको नसीब होगी जो मेरी लिए एक दूसरे पर अपना माल ख़र्च करते हैं। (मुसनदे अहमद इबने हम्बल जि4 पे 386) हज़रत इमाम-ए-जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते है कि एक दिन हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने अपने असहाब से फ़रमायाः

ईमान की कौन सी रस्सी सब से ज़्यादा मज़बूत है? असहाब ने कहाः ख़ुदा और उसका रसूल ज़्यादा बेहतर जानते हैं उसके बाद भी कुछ लोगों ने कहा नमाज़, ज़कात, रोज़ा, और कुछ ने कहा हज और उमरा और कुछ ने जेहाद का नाम लिया। हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने इरशाद फ़रमायाः जो कुछ तुम लोगें ने बयान किया है उनमें से हर एक के अंदर कोई न कोई श्रेष्ठता ज़रूर है मगर ईमान की सबसे मज़बूत रस्सी यह है कि हर एक से अल्लाह के लिए मुहब्बत करो और अल्लाह के लिए घृणा और नफ़रत करो और अल्लाह के औलिया (दोस्तों) से दोस्ती और अल्लाह के दुश्मनों से दुश्मनी करो। (बेहारुल अनवार जि 69, पे 242) जिस तरह इस्लाम की निगाह में हर काम अल्लाह की इच्छा के लिए होना ज़रूरी है उसी तरह दोस्ती और दुश्मनी भी अल्लाह की इच्छा के लिए होना चाहिए क्योंकि उसे कुछ रिवायतों में दीन का स्तम्भ और कुछ में दीन का आधार कहा गया है। और सच्चाई तो यह है कि इस्लाम में हर दोस्ती और दुश्मनी का आधार अल्लाह की संतुष्टि के अतिरिक्त कुछ और नहीं है। क़ुर्आने करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता हैः बेशक सारे मोमिन लोग एक दूसरे के भाई हैं। मोमिनों की दोस्ती और मुहब्बत का आधार अल्लाह पर ईमान और उसका आज्ञापालन है और उसके अतिरिक्त दुनिया के दूसरे सारे भौतिक आधार और अहकाम बेकार और निराधार हैं।

जो लोग किसी आदमी के माल, दौलत या पद की वजह से मुहब्बत करते हैं या उसका सम्मान करते हैं और उससे डरते हैं उनकी उस मुहब्बत में स्थिरता नहीं पायी जाती है बल्कि जैसे ही उनके उद्देश्य़ पूरे होते हैं या उसकी दौलत और उसका पद उसके हाथ से निकल जाता है उसी दिन से सब मोहब्बतें भी मिट्टी में मिल जाती हैं अधिकतर ऐसा होता है पुराना चहेता दुश्मन भी हो जाता है लेकिन इस्लामी मूल्यों पर आधारित हर दोस्ती परमानेन्ट होती है और उसमें किसी प्रकार की दराड़ नहीं पड़ती है क्योंकि उसका आधार अल्लाह की मुहब्बत है जिस में किसी प्रकार के ख़ोखलपन की संभावना नहीं है। यही वजह है कि दीनी मुहब्बत और भाई चारा सारे भौतिक मूल्यों जैसे रंग, नस्ल, माल और दौलत आदि से उच्च है इसी लिए इस्लाम के आरम्भिक दिनों में हर आदमी ने यह सीन अपनी आँखों से देखा है कि हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ग़ुलामों के साथ दस्तरखान पर बैठ कर खाना ख़ाते थे। एक दिन वह था जब अरब क़बीले केवल अपने ऊँट, औलाद, और संपत्ति की अधिकता पर ही नहीं बल्कि अपने मुर्दों और क़ब्रों की अधिकता पर भी गर्व किया करते थे और अरब को ग़ैरे अरब पर और गोरे को काले पर प्राथमिकता देते थे।

लेकिन हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने जाहेलियत के इन सारे मूल्यों को रद्द कर दिया, और बिलाले हब्शी, सहीब रूमी, सलमाने फ़ारसी को अपने असहाब में शामिल कर लिया और ज़ैद इबने हारेसा की शादी अपनी फुफी की बेटी जनाबे ज़ैनब से करा दी। या जनाबे जुवैबर (जो अफ़रीक़ा के एक फ़क़ीर बाशिंदे थे) का निकाह एक मालदार और मशहूर आदमी की बेटी ज़ुलफ़ा के साथ करा दिया क्योंकि आप का यह फ़रमान है किः एक मोमिन दूसरे मोमिन के समान है। ख़ुलासा यह है कि अल्लाह के अतिरिक्त किसी और से मुहब्बत करना एक प्रकार का शिर्क है क्योंकि जब मुहब्बत का चेहरा किसी के दिखावे की या वास्तविक ख़ूबसूरती व सुंदरता की वजह से अल्लाह के अतिरिक्त की तरफ़ मुड़ जाएगा तो चूंकी यह ख़ूबसूरती व सुंदरता वास्तव में अल्लाह तआला की दी है और वह कमाल व सुंदरता का स्रोत है इसलिये उससे आँखें बंद करके किसी दूसरे की तरफ़ चेहरा करना शिर्क है। इस्लाम ने अल्लाह तआला की जिस मुहब्बत की प्रेरणा दी है उसकी मुहब्बत में उसके चाहने वाले और उसके चहेते बंदे अनिवार्य रूप से शामिल हैं जिस की एक वजह यह भी है कि अल्लाह के नेक बंदों की मुहब्बत से अल्लाह के ज़िक्र का शौक़ पैदा होता है क्योंकि उनकी ज़ात में अल्लाह तआला के विशेषताएं प्रमुख रहती हैं और सारांश यह कि उनके द्वारा अल्लाह से नज़दीकी हासिल होती है। अल्लाह की इच्छा के लिए मुहब्बत और नफ़रत के आधार पर ही अल्लाह के दुश्मनों और काफ़िरों से दुश्मनी और दूरी यानी तबर्रा का हुक्म दिया गया है। क्योंकि मसल मशहूर है कि दोस्त का दुश्मन भी, दुश्मन होता है। क़ुर्आन की आयत ने इसी बात को अत्यंत सुंदर अंदाज़ में यूँ बयान किया हैः मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं, और जो लोग उनके साथ हैं वह क़ुफ़्फ़ार के लिए सख़्ततरीन और आपस में इंतेहाई रहम दिल हैं। मानो उनके बीच बेहद प्यार व मुहब्बत पाई जाती है और अल्लाह की मुहब्बत ने उनको एक बना दिया था और उसी मुहब्बत की वजह पर वह अल्लाह के दुश्मनों के मुक़ाबले में एक लोहे की दीवार बने हुए हैं। ज़ियारते आशूरा में यूँ बयान किया गया हैः क़यामत तक मेरी केवल उससे सुलह और दोस्ती है जिस से आप की सुलह और दोस्ती हो और उससे मेरी दुश्मनी है जिससे आप लोग की जंग और दुश्मनी है। अल्लाह तआला की सच्ची मुहब्बत का अंदाज़ा दो चीज़ों से लगाया जा सकता है।

 

1. अल्लाह द्वारा वाजिब की गईं चीज़ों की पाबंदी और हराम की गई चीज़ों से परहेज़ क्योंकि वह इंसान हरगिज़ सच्चा नहीं हो सकता है कि जो मुहब्बत का दम भरता हो मगर अपने चहेते का आज्ञापालन न करे। क्योंकि अल्लाह तआला निश्चित रूप से हम से मुहब्बत करता है इसी लिए उसने हमें बेशुमार नेमतों से नवाज़ा है और हम यह नेमतें लेने के बाद उनका आज्ञापालन करते हैं और उसका शुक्र अदा करते हैं ताकि अपने दिल में मौजूद उसकी मुहब्बत का सुबूत दे सकें और यही नहीं बल्कि उस शुक्र से नेमतें और ज़्यादा होती है जैसा कि अल्लाह फ़रमाता हैः अगर तुम हमारा शुक्र अदा करोगे तो हम नेमतों को बढ़ा कर देंगे। इस शुक्र के नतीजे में उसे इतनी नेमतें मिलती हैं कि वह इंसान को उस के ऊंचे स्थान तक पहुँचा देती हैं।

 

2. अल्लाह की मुहब्बत की मांग यह है कि इंसान समाजी और सामूहिक वाजेबात और अधिकार भी ज़रूर अदा करे जैसे वालिदैन का आज्ञापालन और उनको राज़ी रखना, पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार और रिश्तेदारों से मिलना जुलना, ग़रीबों और फ़क़ीरों कि मदद और उनसे मुहब्बत, तथा अल्लाह के दुश्मनों से नफ़रत और दूरी अल्लाह। यही वजह है कि क़ुर्आने मजीद ने दोस्ती और दुश्मनी के सारे आधार निर्धारित कर दिए हैं कि किस से मुहब्बत की जाए और किस से नफ़रत हो जैसा कि अल्लाह फ़रमाता हैः ईमान वालो! ख़बरदार मोमनीन को छोड़ कर क़ुफ़्फ़ार को अपना वली और अभिभावक न बनाना। इसी तरह फ़रमाता हैः ऐ ईमान वालों खबरदार मेरे और अपने दुश्मनों को दोस्त मत बनाना। इससे इस्लामी एकता और भाई चारे की प्रसंविदा की महानता का पता चलता है जो शुद्ध तौहीद के अक़ीदे की आग़ोश में परवान चढ़ा है और यही (एकता) इस अक़ीदे की पहचान है। सारांश हज़रत मुहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने मदीना पहुँचने के बाद सबसे पहला अहेम क़दम यह उठाया कि अंसार और मुहाजेरीन के बीच भाईचारे का सीग़ा पढ़ाया जिसके नतीजे में इस्लामी समाज में बे मिसाल मुहब्बत व भाईचारे और एकता पैदा हो गई, और सारे मुसलमानों के बीच नज़दीकी और मुहब्बत का एक अभूतपूर्व वातावरण स्थापित हो गया। अल्लाह तआला ने सदाचार और परहेज़गारी को ही वरीयता और बड़ाई का आधार बताया है और आपसी सम्पर्क और सम्बंध को अल्लाह तआला की मुहब्बत और दुश्मनी के आधार पर आधारित करने की तकीद की है। अल्लाह तआला की मुहब्बत या दुश्मनी का अंदाज़ा वाजेबात की अदायगी और हराम व वर्जित चीज़ों से परहेज़ के द्वारा लगाया जा सकता है या यह कि अल्लाह के नज़दीक बंदों की मुहब्बत हो और उसके दुश्मनों से मुहब्बत और सम्बंध के रिश्ते तोड़ लिए जाएँ।

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