इस्लामी इतिहास एसी हस्तियों के अस्तिव के सुसज्जित व भरा पड़ा है जो न केवल अपने काल बल्कि समस्त कालों और पीढियों के लिए सर्वोत्तम आदर्श हैं और इन हस्तियों में सर्वोपरि पैग़म्बरे इस्लाम का पावन अस्तित्व है और उनके बाद उनके पवित्र परिजन हैं जो सत्य की खोज करने वालों के लिए प्रज्वलित दीपक की भांति हैं। इन महान हस्तियों का सदाचरण एसा है जो हर पवित्र प्रवृत्ति वाले इंसान को अपनी ओर आकर्षित करता है। आज ज़िलहिज्जा महीने की ७ तारीख है। आज ही के दिन ११४ हिजरी क़मरी में पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय पौत्र हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम शहीद हुए थे। मित्रो इस दुःखद अवसर पर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने सुपुत्र इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम से फरमाते थे कि ईश्वर की प्रसन्नता उसके आदेशापालन में है तो किसी भी आदेश को छोटा मत समझो शायद ईश्वर की प्रसन्नता उसी में हो, जान लो कि ईश्वर ने अपने दास्तों व चाहने वालों को अपने बंदों के मध्य छिपा रखा है। तो कोई भी उसके किसी बंदे को तुच्छ न समझे शायद वही बंदा ईश्वर का दोस्त हो”
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का पावन जीवन मानव समाज के लिए मूल्यवान उपलब्धियों कर ख़ज़ाना है।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने एक ओर लोगों के धार्मिक विश्वासों व आस्थाओं के आधारों को मज़बूत किया और दूसरी ओर तर्कों द्वारा लोगों के दिग्भ्रमित विचारों को सही किया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इस्लामी जगत में सोच, विचार के क्षेत्र में परिवर्तन लाने वाले के महाक्रांतिकारी थे। उन्होंने विस्तृत पैमाने पर शैक्षिक एवं सांस्कृतिक आंदोलन की आधारशिला रखी और एक बड़े इस्लामी शिक्षा केन्द्र की भूमि प्रशस्त कर दी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने विशुद्ध इस्लाम की शिक्षाओं को उस तरह से पेश करने का प्रयास किया जिस तरह पैग़म्बरे इस्लाम ने लोगों के समक्ष पेश किया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की महाक्रांति के सुपरिणाम बाद के कालों में स्पष्ट हुए। अमवी शासकों के काल में राजनीतिक संकट अधिक थे जिसके कारण उन्हें इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के साथ कड़ाई से पेश आने का अवसर ही नहीं मिलता था। उस काल में अमवी शासकों को राजनीतिक संकटों का सामना था और शासन के आधार कमज़ोर हो गये थे। परिणाम स्वरूप इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के लिए किसी सीमा तक इस्लामी शिक्षाओं के प्रचार प्रसार के परिस्थिति अनुकूल हो गयी थी।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के काल में संदेह और भ्रांतियां इस्लामी समाज में व्याप्त हो गयी थीं और इमाम ने इन संदेहों व भ्रांतियों को लोगों के मन से जड़ से समाप्त करने का प्रयास किया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने वैचारिक एवं आस्था संबंधी विवादों के समाधान के लिए पवित्र कुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के सदाचरण को सबसे अच्छा आधार बताया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का पावन अस्तित्व समस्त सदगुणों की प्रतिमूर्ति था।
बाक़िर का अर्थ अरबी भाषा में चीरने वाला होता है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को बाक़िर इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने बहुत से ज्ञानों को एक दूसरे से अलग किया और उनकी गुत्थिया सुलझाई हनफी धर्मगुरू व विद्वान मोहम्मद बिन अब्दुल फत्ताह कहते हैं कि इमाम मोहम्मद बाक़िर का नाम बाक़िर इसलिए रखा गया कि क्योंकि उन्होंने नीहित ज्ञानों और तत्वदर्शिता को स्पष्ट किया” इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के काल में विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों की महान हस्तियां उनके ज्ञान के अथाह सागर से लाभ उठाती थीं। ज़ोहरी, अबू हनीफा, मालिक बिन अनस और शाफेई उन लोगों में से थे जिन्होंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के ज्ञान के अथाह सागर से लाभ उठाया।
इसी तरह तबरी, बेलाज़री, खतीब बग़दादी और ज़ेमखशरी जैसे सुन्नी इतिहासकारों ने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के स्वर्णिम कथनों से लाभ उठाया है।
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन ज्ञान के अथाह सागर और आध्यात्मिक दृष्टि से महान हस्ती होने के बावजूद सदैव लोगों के मध्य और उनके साथ रहते थे। उन महान हस्तियों का सदाचरण उनके जीवन के सादा होने का सूचक है। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन कार्य एवं प्रयास को बहुत महत्व देते थे। परिपूर्णता के चरमशिखर पर होने के बावजूद वे अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति का प्रबंध स्वयं करते थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम काम को बहुत अधिक महत्व देते थे। गर्म हवा और धूप में खेती, किसानी का काम करते थे और वे हलाल आजीविका प्राप्त करने के लिए किये जाने वाले कार्य को महान ईश्वर की उपासना भानते थे। इमाम ने आलस्य की निंदा की है क्योंकि बेरोज़गारी से जहां ग़लत कार्य करने की भूमि समतल होती है वहीं इंसान की प्रतिष्ठा को भी आघात पहुंचता है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं उस व्यक्ति को मैं पसंद नहीं करता हूं जो काम न करता हो और कहे कि हे ईश्वर मुझे आजीविका प्रदान कर”
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम हलाल आजीविका प्राप्त करने के लिए कार्य को ईश्वरीय दूतों, प्रतिनिधियों और उसके बंदों की विशेषता बताते और फरमाते हैं” जान लो कि ईश्वर के प्रिय बंदे हराम कार्यों से दूरी करते हैं और कार्य व प्रयास और व्यापार द्वारा हलाल आजीविका प्राप्त करते हैं। ईश्वर के प्रिय बंदे उन अधिकारों व दायित्वों को पूरा करते हैं जो उन पर हैं और ईश्वर उनके कार्य व व्यापार में बरकत देता है”
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम सदैव न्याय पर बल देते थे और अत्याचार व अन्याय पर चुप नहीं रहते थे। इमाम, बनी उमय्या के शासकों के ग़लत व अवैध कार्यों का विरोध करते थे। इमाम का मानना था कि लोगों व राष्ट्रों के कल्याण या उनके विनाश में शासकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और अगर शासक व नेता अच्छे होते हैं तो वे समाज को भलाई की ओर ले जाते हैं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते थे कि मोमिनों की भलाई, प्रतिष्ठा और सुरक्षा इसमें है कि बैतुल माल अर्थात राजकोष उस व्यक्ति के हवाले किया जाये जो अधिकारों का ध्यान रखे और उसे उचित स्थान पर खर्च करे और धार्मिक लोगों के मध्य भ्रष्टाचार वहां से अस्तित्व में आता है जब समाज का आर्थिक स्रोत उस व्यक्ति के अधिकार में दे दिया जाये जो न्यायपूर्ण व्यवहार नहीं करता है।
बनी उमय्या के शासकों तके सक एक हेशाम बिन अब्दुल मलिक था जिसने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के साथ बहुत कड़ाई की और उसने इमाम के कुछ श्रृद्धालुओं और उनके शिष्यों की हत्या का आदेश दिया। हेशाम बिन अब्दुल मलिक ने जिन लोगों की हत्या का आदेश दिया था उनमें से एक जाबिर बिन यज़ीद जोफी थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने जोफी को बचाने के लिए उनसे कहा कि वह स्वयं को पागल दर्शायें। जाबिर को बचाने का यह एक मात्र रास्ता था। जाबिर इमाम के अच्छे, होनहार और मेधावी शिष्य थे उन्होंने कुछ समय के लिए स्वयं को पागल दर्शाया यहां तक कि उन की जान बच गयी। हेशाम अब्दुल मलिक ने एक अन्य कदम उठाया और इमाम को विवश करके अपनी सरकार की राजधानी शाम अर्थात वर्तमान सीरिया बुला लिया। इमाम जब हेशाम की सभा में उपस्थित हुए तो फरमाया अगर कुछ समय की सत्ता तुम्हारे हाथ में है तो जान लो कि हमेशा रहने वाली सत्ता हमारे हाथ में है और अच्छा परिणाम भले लोगों का है। शाम में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की उपस्थिति से वास्तविकता प्रेमियों के लिए उनकी हस्ती की महानता और अधिक स्पष्ट हो गयी। इमाम ने वहां पर एक ईसाई विद्वान से शास्त्रार्थ किया। इस शास्त्रार्थ में इमाम के ज्ञान और विचार से स्थिति पूर्णतः इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के हित में हो गयी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने १९ वर्षों तक मानव समाज के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। इमाम का सदाचरण और उनकी जीवन शैली हेशाम को बिल्कुल पसंद नहीं थी। क्योंकि इमाम के तर्कसंगत और ठोस बयानों से लोग दिन प्रतिदिन जागरुक होते जा रहे थे और समाज में अमवी शासकों की सरकारें कमज़ोर होती जा रही थीं। अतः हेशाम ने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को शहीद करने का षडयंत्र रचा और उसने ११४ हिजरी क़मरी में अपने षडयंत्र को व्यवहारिक बना कर इमाम को शहीद कर दिया।
इमाम फरमाते हैं” हंसमुख चेहरा प्रेम का कारण बनता है और वह इंसान को ईश्वर के निकट करता है” इमाम एक अन्य स्थान पर फरमाते हैं” प्रलय के दिन सबसे अधिक वह व्यक्ति पछतायेगा जो न्याय का वर्णन सुन्दरता के साथ करता है परंतु स्वयं दूसरों के साथ न्याय के विपरीत व्यवहार करता है”