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Friday 26th of April 2024
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नहजुल बलाग़ा में इमाम अली के विचार ४

हज़रत अली की दृष्टि में एकेश्वरवादया एकेश्वरवादी विचारधारा

धर्म के मूल सिद्धातों में एक तौहीद अर्थात एकेश्वरवाद का विषय है।  मानवता के प्रशिकक्षकों के रूप में समस्त ईश्वरीय दूतों के निमंत्रण का आधार भी एकेश्वरवाद ही रहा है।  इन समस्त ईश्वरीय दूतों ने मानव जाति को एकेश्वरवाद पर आस्था रखने और एकेश्वरवाद अपनाने का निमंत्रण दिया है।

 

नहजुल बलाग़ा के महत्वपूर्ण विषयों में से एक, एकेश्वरवाद का विषय है।  इस पुस्तक मे लिखे भाषणों, पत्रों और सूक्षम वाक्यों तथा इसके मार्गदर्शनों का अध्धयन करने से यह बात स्पष्ट रूप से ज्ञात होती है कि एकेश्वरवादी विचारधारा, हज़रत अली अलैहिस्सलाम की मूल सोच है।  इस विषय को उनके पत्रों और भाषणों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।  हज़रत अली ने कुछ स्थानों पर सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनैतिक विषयों पर चर्चा के दौरान भी एकेश्वरवाद की ओर संकेत किया है।

एकेश्वर पर आस्था केवल एक मौखिक विश्वास नहीं है बल्कि इसमें मानव जीवन के सभी व्यक्तिगत एवं सामाजिक आयाम सम्मिलित हैं।  वास्तविक मोमिन हर स्थिति में ईश्वर के बारे में सोचता है और वह ईश्वर पर दृढ संकल्प रखता है।  एकेश्वरवादी, केवल उपासना के समय ईश्वर का स्मरण नहीं करता बल्कि वह हर स्थिति में उसे याद रखता है।  उसका हृदय ईश्वर के प्रेम से भरा होता है। वह सदैव स्वयं को ईश्वर का दास मानता है।  यही कारण है कि इमाम अली अलैहिस्सलाम, एकेश्वरवाद और उसके सकारात्मक परिणामों की ओर संकेत करते हैं।  इस बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि एकेश्वरवाद, आधा दीन है।

 

हज़रत अली अलैहिस्ससलाम, नहलु बलाग़ा के दूसरे ख़ुत्बे या भाषण में एकेश्वरवाद पर भरोसे के प्रभाव के संदर्भ में कहते हैं कि मैं गवाही देता हूं कि एकेश्वर के अतिरिक्त कोई अन्य ईश्वर नहीं है, उसका कोई भागीदार नहीं है।  वह गवाही जिसके शुद्ध होने का हमे पूरा विश्वास है, जबतक हम जीवित हैं।  यह आस्था शैतान के दूर होने का कारण है।

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ईश्वर पर अपनी आस्था के बारे में कहते हैं कि इसकी प्राप्ति के लिए मैंने भांति-भांति की परीक्षाएं दी हैं।  प्रत्येक परीक्षा के पश्चात मैं इस निष्कर्श पर पहुंचा हूं कि इस नश्वर संसार का सृष्टिकर्ता केवल एक है जिसका पता इसमें पाई जाने वाली व्यवस्था से होता है।  वे कहते हैं कि एक चींटी का भी संचालक वहीं है जो पूरे ब्रहमाण्ड को चला रहा है

 

एकेश्वरवाद पर भरोसा या विश्वास, मनुष्य को एक प्रकार की शांति प्रदान करता है।  इसका कारण यह है कि इस सृष्टि की एक छोटी सी वस्तु के रूप में मनुष्य समझता है कि उसको भी सृष्टि के अन्य प्रणियों एवं वस्तुओं की भांति उसका स्थान दिया गया है और ईश्वर ने उसके लिए अच्छे अवसर उपलब्ध कराए हैं।  इस सोच के साथ मनुष्य, जीवन की कठिनाइयों का डटकर मुक़ाबला करता है और उनके मुक़ाबले में धैर्यवान बना रहता है।

 

सृष्टि में हमें आश्चर्यचकित करने वाली जो व्यवस्था दिखाई देती है, वह स्वयं ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करती है।  सृष्टि में पाए जाने वाले जीव-जंतुओं, तथा प्राणियों को देखकर भी सर्व सामर्थ्य ईश्वर के एक होने को समझा जा सकता है।  पवित्र क़ुरआन मनुष्य को सृष्टि में चिंतन-मनन का निमंत्रण देता है।  इसके माध्यम से मनुष्य, सृष्टिकर्ता को पहचान सकता है।  अपनी सृष्टि के रहस्यों का उल्लेख करते हुए वह याद दिलाता है कि सभी चीज़ों का पैदा करने वाला केवल ईश्वर ही है।  इस बारे में नहजुल बलाग़ा के भाषण संख्या 185 में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि यदि चिंतन के मार्ग को अपनाया जाए तो यह मार्ग तुम्हें एकेश्वर की ओर ले जाएगा।  क्योंकि इससे मनुष्य को समझ में आएगा कि अति सूक्ष्य या विशाल हर प्रकार के जीवों और वस्तुओं का सृष्टिकर्ता एक ही है जो ईश्वर है।  यहां पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम यह समझाना चाहते हैं कि ईश्वर ने पूरी सृष्टि की रचना बड़ी सूक्ष्मता से की है और इन सबका बनाने वाला एक ही है।

ईश्वर को एक सिद्ध करने में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का एक तर्क यह है कि ईश्वर के अतिरिक्त यदि कोई अन्य सृष्टिकर्ता भी होता तो सृष्टि में उसकी रचना भी दिखाई देती।  किंतु पूरी सृष्टि का बड़ी गहराई से अध्धयन करने पर यही निष्कर्श निकलता है कि संसार का निर्माणकर्ता केवल एक है और वह ईश्वर ही है।  इसी विषय को हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने सुपुत्र इमाम हसन को भेजे एक पत्र में और अधिक सरल ढंग से स्पष्ट किया है।  वे अपने सुपुत्र को संबोधित करते हुए कहते हैं कि हे पुत्र! यदि तेरे ईश्वर का कोई साथी या भागीदार होता तो वह भी अपने दूतों को तुम्हारी ओर भेजता।  किंतु एसा नहीं है।  स्वयं उसने भी कहा है कि वह अकेला है।

 

एकेश्वरवाद पर भरोसा, ईश्वर के बारे में हर प्रकार के समकक्ष को अस्वीकार करना है।  ईश्वर को परिभाषित करते हुए इमाम अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर वह है जो अपनी सृष्टि से अलग है और कोई भी चीज़ उसके जैसी नहीं है।  इस बारे में वे एक अन्य स्थान पर कहते हैं कि ईश्वर का कोई भी समतुल्य नहीं है।  वह एसा जिसके समान कोई भी नहीं है।  ईश्वर के बारे में हज़रत अली के विभिन्न वाक्य इस बात को बताते हैं कि ईश्वर किसी भी प्रकार से अन्य चीज़ों से नहीं मिलता।  जैसाकि पवित्र क़ुरआन में कहा गया है कि उसके जैसी कोई चीज़ नहीं है।

 

एकेश्वरवाद के बारे में एक अन्य बिंदु यह है कि ईश्वर को पूर्ण रूस से समझने की क्षमता मनुष्य में नहीं है।  ईश्वर को परिभाषित करने में वह सीमित हो जाएगा जबकि वह असीमित है।  इस बारे में हज़रत अली कहते हैं कि जो भी ईश्वर की परिभाषा करेगा वह उसे सीमित कर देगा।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि एक बार हज़रत अली, कूफ़े की मस्जिद में भाषण दे रहे थे।  इसी बीच एक व्यक्ति उठा और उसने कहा हे अमीरुल मोमेनीन, आप हमें ईश्वर के बारे में बताएं ताकि हमारे मन में उसके लिए अधिक प्रेम पैदा हो।  इसके जवाब में उन्होंने कहा कि ईश्वर, को कोई कभी भी पहचान नहीं सकता।  उसकी वासत्विकता को समझने में सब असमर्थ हैं।  सृष्टि में पाई जाने वाली सभी चीज़ों से वह बिल्कुल अलग है।  उसके समान कोई भी नहीं है।

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