इस्लामी इतिहास पवित्र नगर मक्का के उत्तरी छोर पर स्थिति हेरा नामक गुफा से आरंभ हुया। एक शांत व अंधेरी रात में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सलल्ल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम हेरा नामक गुफा में ईश्वर की उपासना में लीन थे कि अचानक एक आवाज़ सुनी जो उनसे कह रही थीः हे मोहम्मद पढ़िये! पढ़िये ईश्वर के नाम से जिसने संसार बनाया। जिसने मनुष्य को ख़ून के लोथड़े से पैदा किया। पढ़िये कि आपका ईश्वर सबसे ज़्यादा उदार है। वह जिसने क़लम द्वारा शिक्षा दी और मनुष्य को वह सिखाया जिसे वह नहीं जानता था। इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम मानवता के मार्गदर्शन के लिए अंतिम ईश्वरीय दूत के रूप में नियुक्त हुए।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम जिन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम के निमंत्रण को सबसे पहले स्वीकार किया था, उनकी पैग़म्बरी पर नियुक्ति से पूर्व की स्थिति का उल्लेख करते हैं ताकि सुनने वाले को पता चले कि पैग़म्बरे इस्लाम को कैसी परिस्थिति में लोगों के मार्गदर्शन का दायित्व सौंपा गया था। इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी लगता है कि पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बपरी पर नियुक्ति से पहले सामाजिक दशा बहुत ही दयनीय थी। लोगों के बीच बुराइयों का चलन था। हत्या, लूटमार, प्रतिशोध और रक्तपात को वीरता से उपमा दी जाती थी।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम तत्कालीन अरब समाज की स्थिति का वर्णन नहजुल बलाग़ा के भाषण क्रमांक 2 में इस प्रकार करते हैं,“ ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को उस समय भेजा जब लोग ना ना प्रकार के फ़ितने व षड्यंत्र में फंसे हुए थ। धर्म की जड़ें ढीली पड़ गयी थीं और आस्था के स्तंभ लड़खड़ा रहे थे। मार्गदर्शन का दीपक बुझ गया था और हर ओर अंधकार ही अधंकार था। कृपालु ईश्वर के आदेशों की अवहेलना की जाती थी किन्तु शैतान की सहायता की जाती थी। आस्था असहाय थी। इस भूमि पर विद्वानों का अपमान किया जाता था और अनपढ़ों का सम्मान किया जाता और उन्हें आगे आगे रखा जाता था।” हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ये वाक्य अज्ञानता के काल का बोलता हुआ चित्रण करते हें। उस समय भौतिक व आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टि से लोगों की स्थिति बहुत बुरी थी। लोग सांप से भरे पथरीले स्थान पर रहते थे। उनके पीने का पानी गंदा और खाना सूखी रोटी थी। प्राण की कोई सुरक्षा न थी। एक दूसरे का ख़ून बहाते थे और संबंधियों से रिश्ता तोड़े रहते थे। उस समय लोग सबसे बुरी प्रथा को अपनाए हुए थे। जिन हाथों से मूर्तियां बनाते उन्हीं की पूजा करते थे। वे पवित्र मक्का में सबसे अच्छे व पवित्र स्थल काबे के पड़ोस में ज़िन्दगी बिताते थे किन्तु स्वाभाविक सी बात है जहां सदैव रक्तपात होता था वहां शांति व सुख का अनुभव कभी नहीं हो सकता था।
इस भौतिक अस्तव्यस्त्ता के साथ साथ वे आध्यात्मिक दृष्टि से भी निर्धन थे। लोग सत्य का मार्ग भूल गए थे और हैरान व परेशान थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबंध में कहते हैं, “ लोग अज्ञानता के काल में हैरान न समस्याओं में ग्रस्त थे।”
इस बात में शक नहीं कि समाज में पथभ्रष्टता दूसरी बहुत सी समस्याओं का कारण बनती थी। इन समस्याओं में से एक वर्ग भेद भी था। एक वर्ग दूसरे पर अत्याचार करता था। अत्याचारी और पीड़ित दोनों ही निरी पथभ्रष्टता में पड़े हुए थे। ऐसे माहौल में पैग़म्बरे इस्लाम को नियुक्ति किया गया ताकि लोगों को पथभ्रष्टता के अंधकार से निकालें। हज़रत अली के शब्दों में ईश्वरीय दूत, पथभ्रष्ट लोगों को भलिभांति पहचानते थे। इस दृष्टि से वे ऐसे डाक्टर थे जो बीमारों के पास जाते थे ताकि उनके बीमार मन का एलाज करें। पैग़म्बरे इस्लाम जिस स्थान पर जाते लोगों का आत्मिक उपचार करने लगते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शब्दों में, “ ईश्वरीय दूत चलते हुए चिकित्सक हैं जो अपनी चिकित्सा विधि के साथ सदैव चलते थे और उनके पास मरहम तय्यार रहता था जिसे वे ज़रूरत के वक़्त इस्तेमाल करते थे।”
दूसरी ओर इस्लामी शिक्षाओं में पैग़म्बरे इस्लाम को मानवता के लिए ईश्वरीय कृपा बताया गया है और इस दृष्टि से उनकी प्रशंसा की गयी है। पैग़म्बरे इस्लाम के ईश्वरीय कृपा के प्रतीक होने का अर्थ यह है कि उनके होते हुए लोग ज़मीनी और आसमानी ख़तरों से सुरक्षित हैं। चूंकि ईश्वर की कृपा उसके प्रकोप पर छायी हुयी है इसलिए ईश्वर ने मनुष्य सहित सारे प्राणियों व वस्तुओं की रचना के समय ऐसे साधन मुहैया किए ताकि मनुष्य उनके द्वारा ईश्वरीय कृपा का पात्र बन सके। इन्हीं साधनों में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजन भी शामिल हैं कि वे जहां भी होंगे ईश्वर की कृपा की उन पर वर्षा होगी जिससे आम लोग लाभान्वित होंगे।
इस्लाम में एकेश्वरवाद को मूल स्तंभ कहा गया है और मनुष्य से धार्मिक सिद्धांतों पर चिंतन मनन का आह्वान किया गया है। इस्लाम के एकेश्वरवाद, ईश्वर के न्याय, पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी, उनके उत्तराधिकारी और प्रलय पर आस्था वे विषय हैं जिसमें किसी धर्मगुरु का अनुसरण अस्वीकार्य है। इन विषयों को इस्लामी शब्दावली में उसूल दीन कहते हैं। उसूले दीन में आस्था के लिए मनुष्य को स्वयं चिंतन मनन करना चाहिए। इस्लाम में बुद्धि द्वारा चिंतन मनन और ईश्वर की आश्चर्यचकित करने वाली सृष्टि की व्यवस्था पर ध्यान देने पर बल देता है। इस चिंतन मनन से बुद्धि जागृत होती और ईश्वर से उसका संबंध अधिक सुदृढ़ होता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बुद्धि को सक्रिय तथा प्रवृत्ति को जागृत करना ईश्वरीय दूतों की नियुक्ति का उद्देश्य बताया है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के पहले भाषण में कहते हैं,“ ईश्वर ने अपने दूतों को लोगों के बीच भेजा और उन्हें लगातार भेजा ताकि वे मनुष्य से इस बात का प्रण के वह अपनी प्रवृत्ति का पालन करेगा और ईश्वर की भुलायी गई अनुकंपाओं को याद कराएं और बुद्धि के रहस्यों को स्पष्ट करें।” इस भाषण में हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बौद्धिक ज्ञान को गुप्त ख़ज़ाने से उपमा दी है और इन ख़ज़ानों को प्रकट करना ईश्वरीय दूतों का दायित्व बताया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस वाक्य से यह समझा जा सकता है कि बुद्धि में ऐसे ज्ञान मौजूद हैं जिन्हें बाहर के अनुभव की मदद से प्राप्त नहीं किया जा सकता। दूसरे यह कि ईश्वरीय दूतों की ओर से चेताए बिना मनुष्य इन जानकारियों को नहीं प्राप्त कर सकता। मनुष्य इस ओर ध्यान नहीं देता और ईश्वरीय दूत मनुष्य के ध्यान को इन जानकारियों की ओर ले जाते हैं। इस आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम का एक काम मनुष्य की प्रवृत्ति में छिपी जानकारियों और बुद्धि को सक्रिय करना भी है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एकेश्वरवाद और न्याय के विस्तार को भी पैग़म्बरे इस्लाम का एक और उद्देश्य गिनवाया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की नज़र में ईश्वरीय दूतों को भेजने के यही दो उद्देश्य थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने नहजुल बलाग़ा में इन्हीं दो उद्देश्यों की ओर बार-बार इशारा किया है।
एकेश्वरवाद के विस्तार के संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में एक जगह पर कहते हैं, “ ईश्वर ने उस समय उन्हें पैग़म्बर नियुक्त किया जब विभिन्न धर्मों के अनुयाइयों के बीच विवाद पैदा हो गया था और वे लोग ग़लत रास्ते पर चल रहे थे। तो उन्हें दूतों के अंत में भेजा और उनके स्वार्गवास के साथ ही ईश्वरीय संदेश वही के उतरने का क्रम भी ख़त्म हो गया।” इसीलिए पैग़म्बरे इस्लाम ने एकेश्वरवाद के प्रसार के लिए रूढ़िवादी व भ्रष्ट विचारों का पूरी शक्ति से मुक़ाबला किया और अंततः 23 वर्षों के बाद एकेश्वरवाद की पताका पूरी तरह लहरा सकी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा न्याय की स्थापना की कोशिशों के संबंध में कहते हैं, “ पैग़म्बरे इस्लाम सत्य की तलाश करने वालों के लिए देखने का माध्यम और सदाचारियों के मार्गदर्शक हैं। ऐसा चेराग़ हैं जिसका प्रकाश चमकदार और ऐसा सितारा जो रौशन और ऐसा शोला जिसकी लपट आश्चर्यचकित करने वाली है। उनके आचरण में मध्यमार्ग, उनकी परंपरा उन्नतशील, बातें सत्य और असत्य को समझाने वालीं और उनकी दवा सिर्फ़ और सिर्फ़ इंसाफ़ है।”
हज़रती अली अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम की ईश्वरीय दूत के रूप में नियुक्ति का एक उद्देश्य लोगों के मन से द्वेष को जड़ से निकालना भी बताया है। जैसा कि हज़रती अली अलैहिस्सलाम कहते हैं, “ ईश्वर ने उनके द्वारा द्वेष को दफ़्न कर करा दिया, नफ़रतों को ख़त्म करा दिया। परायों में भाईचारा पैदा कराया और रिश्तेदारों के बीच संबंध को विस्तृत कराया। उनके द्वारा झूठे सम्मान को अपमानित और उन परंपराओं को सम्मानित कराया जो वस्तुतः अच्छी थीं किन्तु लोग उसे गिरी निगाह से देखते थे।” वास्तव में हज़रती अली अलैहिस्सलाम के ये वाक्य पवित्र क़ुरआन के आले इमरान सूरे की आयत नंबर 103 की व्याख्या है जिसमें ईश्वर मनुष्य को संबोधित कर रहा है कि तुम जलने वाले थे और उन्होंने तुम्हें उससे बचा लिया।