स्वाभाविक रूप से हर व्यक्ति सफाई और सुन्दरता को पसंद करता है जबकि वह बुरी चीज़ों से विरक्त है।
सुन्दरता का अर्थ सुव्यवस्थित करना है और कभी समन्वय एवं तैयार होने के अर्थ में भी उसका प्रयोग होता है परंतु यह सारे अर्थ एक दूसरे से संबंधित हैं। क्योंकि सुसज्जित व सुन्दर बनाने का अर्थ समन्वय और सुव्यस्था के साथ है। इस बात को पूरे विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि प्राकृतिक रूप से हर इंसान सुन्दरता को पसंद करता है। जब इंसान सुसज्जित होता है तो वास्तव में वह ब्रह्मांड से समन्वित होता है क्योंकि समूचा ब्रह्मांड सुव्यवस्थित व सुन्दर है।
महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने ब्रह्मांड को नाना प्रकार की वस्तुओं से सुसज्जित कर दिया है। इस ब्रह्मांड को सूरज, चांद,असंख्य तारों, आसमानों, नाना प्रकार के वृक्षों, वनस्पतियों, नदी, नहरों, समुद्रों, पर्वतों और नाना प्रकार के जानवरों से सुसज्जित कर रखा है और यह वह सुन्दरता है जिसे वर्षों से देखकर इंसान हतप्रभ व आश्चर्यचकित है।
पवित्र कुरआन अपनी विभिन्न आयतों में प्रकृति की विदित सुन्दरता की ओर संकेत करता है और उसके विभिन्न पहलुओं को याद दिलाता है। इनमें से अधिकांश आयतें हमें प्रकृति के बारे में अध्ययन करने और उसकी आश्चर्यचकित करने वाली वस्तुओं के बारे में चिंतन मनन का निमंत्रण देती हैं। उदाहरण स्वरूप पवित्र कुरआन सूरये साफ्फात की ६ठी आयत में कहता है” बेशक हमने दुनिया के आसमान को तारों से सुसज्जित किया है”
सर्वसमर्थ व महान ईश्वर ने इसी प्रकार इस संसार को फूलों, वृक्षों और हरियाली से सुसज्जित किया है जैसाकि हम पवित्र कुरआन के सूरये कहफ की सातवीं आयत के एक भाग में पढ़ते हैं” जो कुछ ज़मीन में है हमने उसे उसकी सुन्दरता करार दी है”
इंसान न केवल सुन्दरता को पसंद करता है बल्कि विभिन्न संसाधनों एवं तरीक़ों से स्वयं को सुन्दर बनाने पर अच्छा खासा धन खर्च करता है और इससे उसका प्रयास स्वयं को और अपने घर आदि को सुन्दर बनाना होता है। वास्तव में बहुत से लोग सुन्दरता पर अपनी आय का महत्वपूर्ण भाग खर्च करते हैं। समाज में जो बहुत सी सांस्कृतिक सुन्दरतायें और पेटिंग आदि हैं वे मनुष्य की इसी आंतरिक इच्छा का प्रतिबिंबन हैं। सुन्दरता एक एसी चीज़ है जिसे इंसान हमेशा पसंद करता था और इतिहास में कोई भी एसा समय नहीं था जिस समय इंसान को सुन्दरता पसंद नहीं थी। दूसरे शब्दों में सुन्दरता की जड़ इंसान की प्रवृत्ति में है। जब इंसान सुन्दर चीजों को देखता है तो एक विशेष प्रकार के आनंद का आभास करता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि समूचे ब्रह्मांड में मौजूद वस्तुएं इसी आंतरिक इच्छा का उत्तर हैं।
यहां यह प्रश्न किया जाना चाहिये कि सुन्दरता की वास्तविकता क्या चीज़ है जिसे पाने के लिए इंसान प्रयास करता है और उसकी ओर खिंच जाता है? सुन्दरता की परिभाषा करना बहुत कठिन है परंतु जब कोई इंसान सुन्दरता को पा जाता है तो वह उससे प्रेम करता है। इंसान जब झरने से पानी गिरने और बुलबुल की मधुर ध्वनि एक साथ सुनता है तो बरबस कह उठता है कि कितना सुन्दर दृश्य है। इस आधार पर सुन्दरता ने कि जो ईश्वरीय रचना व उत्पत्ति का परिणाम है, प्रकृति को विशेष आकर्षण प्रदान कर दिया है। चूंकि इंसान को भी महान ईश्वर ने पैदा किया है इसलिए वह भी सुन्दरता को पसंद करता है और वह स्वयं को सुन्दर बनाने का प्रयास करता है। चूंकि ईश्वरीय धर्म इस्लाम इंसान की आंतरिक प्रवृत्ति के अनुरूप है इसलिए उसने विभिन्न स्थानों पर सुन्दरता के महत्व की ओर संकेत किया है।
पवित्र कुरआन के सूरये आराफ की ३१वीं आयत इंसान का आह्वान करती है कि जब वह मस्जिद में जाये तो स्वयं को शोभित करे। अलबत्ता यह जो कहा गया है कि इंसान मस्जिद में जाने से पहले स्वयं को शोभित करे तो इसका मतलब केवल विदित सुन्दरता नहीं है बल्कि इसमें तक़वा अर्थात ईश्वर से भय जैसी आध्यात्मिक सुन्दरता भी शामिल हैं। कुछ लोग सुन्दरता को धर्म के विरुद्ध समझते हैं और उनका कहना है कि धर्म का सुन्दरता से क्या लेना देना है। पवित्र कुरआन इस प्रकार के विचार को नकारते हुए कहता है कि हे रसूल कह दीजिये कि उस शोभा को और उस पवित्र आजीविका को किसने हराम कर दिया जिसे ईश्वर ने अपने बंदों के लिए निकाला है? कह दीजिये कि यह सांसारिक जीवन में ईमान लाने वालों के लिए हैं और प्रलय के दिन तो केवल उन्हीं के लिए होंगी।
इस तरह से हम आयतों को उन लोगों के लिए विस्तार से बयान करते हैं जो जानना चाहते हैं”
हज़रत इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” बेशक ईश्वर सुन्दर है और वह सुन्दरता को पसंद करता है और बुराई तथा बुराई दिखाने को दोस्त नहीं रखता। क्योंकि ईश्वर जब कोई अनुकंपा अपने बंदे को देता है तो वह उसे देखना चाहता है। किसी ने कहा कि किस प्रकार? तो इमाम ने फरमाया” अच्छा और पवित्र वस्त्र धारण करे और अच्छी सुगन्ध लगाये और घर में झाड़ू लगाकर धूल मिट्टी साफ करे” पैग़म्बरे इस्लाम के एक कथन में भी आया है कि ईश्वर गन्दे व्यक्ति को पसंद नहीं करता है”
पैग़म्बरे इस्लाम सदैव अपने अनुयाइयों का आह्वान करते थे कि वे स्वयं को और अपने घर को साफ सुथरा एवं पवित्र रखें और स्वयं को विशेषकर दूसरे से मुलाक़ात के समय सुसज्जित करें और विदित सुन्दरता के साथ दूसरों से भेंट करें। पैग़म्बरे इस्लाम के सदाचरण में भी आया है कि जब वह घर से निकलना या किसी को अपनी सेवा में स्वीकार करना चाहते थे तो अपने बालों में कंघी करते थे और अपनी विदित स्थिति अच्छी करते थे और स्वयं को सुसज्जित करते थे और स्वयं को जाने से पहले पानी में देखते थे और जब दूसरों के समक्ष जाने योग्य हो जाते थे तब जाते थे। जब पैग़म्बरे इस्लाम से उनके इस कार्य का कारण पूछा गया तो उन्होंने फरमाया” ईश्वर इस बात को पसंद करता है कि जब उसका कोई बंदा अपने मोमिन भाई से मिलने के लिए जाये तो उसे स्वयं को शोभित करना चाहिये”
इस्लाम की महान हस्तियों के कथनों में स्वयं को सुसज्जित करने के संदर्भ में बहुत बल दिया गया है। जैसे साफ सुथरा वस्त्र धारण करने, कंघी करने, बालों और दाढ़ी को व्यवस्थित करने, दांत साफ करने, ब्रश या दातून करने और दुर्गन्ध से बचने आदि पर बहुत बल दिया गया है। सारांश यह कि इस्लाम ने इंसान की आंतरिक सुन्दता की भांति दिदित सुन्दरता पर भी बल दिया है।
इस आधार पर इस बात को ध्यान में रखना चाहिये कि अगर कोई मुसलमान गन्दा वस्त्र धारण करके और खराब वेशभूसा के साथ समाज में प्रकट होता है तो वह इस्लाम के विरुद्ध प्रचार के हथकंडे में परिवर्तित हो जायेगा। तड़क भड़क से दूरी का यह अर्थ नहीं है कि इंसान स्वयं को विदित सुन्दरता से वंचित कर ले और इस प्रकार वह दूसरों की नज़रों में तुच्छ व अपमानित हो जाये।