जोहर की नमाज़ पढने के पहले की दुआ
जैसे ही दोपहर का वक़्त हो यह दुआ पढ़ें! रिवायत है की इमाम अल-बाक़र (अ:स) ने मोहम्मद इब्न मुस्लिम को यह दुआ बराबर पढने की ताकीद की थी ताकि उनकी आँखें हराम चीज़ों की तरफ़ न देखें | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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8 रक्'अत नमाज़ (2-2 रक्'अत में….2x4) जोहर की नाफ़िलह नमाज़ पढ़ें! इसे जोहर की नमाज़ से से पहले पढने की ताकीद की गयी है। पहली रक्'अत में 7 मर्तबा तकबीर (अल्लाहो अकबर) कहें और फिर यह दुआ पढ़ें |
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पहली रक्'अत में सूरह अल-फ़ातिहा के बाद सुरह अल-तौहीद पढ़ें और दूसरी रक्'अत में सुरह अल-फ़ातिहा के बाद सुरह अल-काफ़िरून पढ़ें! इसके बाद 3 बार तकबीर (अल्लाहो अकबर) पढ़ें फिर तस्बीहे ज़हरा पढ़ें और उसके बाद यह दुआ पढ़ें |
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फिर आप खड़े होकर दूसरी और बाक़ी की नमाज़े भी इसी तरह से पढ़ सकते हैं, फ़र्क सिर्फ इतना है की 7 बार की तकबीर की जगह 1 बार ही तकबीर कहना होगी! बाक़ी सारी नमाज़ पहले की तरह होगी। नमाज़ पढने के बाद तस्बीहे ज़हरा और फिर सारी दुआएँ जो आपने ऊपर पढ़ी हैं पढ़ सकते हैं। आखिरी की 2 रक्'अत की नमाज़ में (नाफिल की कुल 8 रक्'अत में 7 और 8 रक्'अत) अज़ान और अक़ामत के बीच में भी पढ़ी जा सकती है। इक़ामत के बाद आप यह दुआ पढ़ें : |
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बिस्मिल्लाह के अलावा सूरह को धीमी आवाज़ में पढ़ें! पहली रक्'अत में सुरह फ़ातिहा और सुरह क़द्र और दूसरी रक्'अत में सुरह फ़ातिहा और सुरह तौहीद पढने की ताकीद की गयी है। आप तशा'हुद पढने के बाद नीचे लिखी हुई दुआ पढ़ें : |
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जोहर के नमाज़ के बाद : जैसा की मिस्बाह अल-मुताहज्जिद में लिखा है : | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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फिर 10 बार यह दोहरायें: | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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2 . फिर पढ़ें : | |||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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3. फिर पढ़ें: | या अल्लाह! जो सात ज़मीनों और सात आसमानों का मालिक है, और जो कुछ भी इसमें है और इनके बीच में है, और इनके नीचे है और तू ज़बरदस्त तख़्त का मालिक है, और त जिब्राइल, मिकाइल और इसराफिल का भी मालिक है, और सब-ए-मस्नी (सुरह अल-फ़ातिहा) का भी मालिक है और ज़बरदस्त किताब कुरान का भी मालिक है, मोहम्मद का भी मालिक है जो अल्लाह के आखरी नबी हैं, उनपर और इनके अहलेबैत पर रहमतें नाजिल हों! मोहम्मद और आले मोहम्मद पर बे'इन्तहा रहमत नाजिल हो, मैं तुझ से तेरे ज़बरदस्त नामून के हवाले से माँगता हूँ, जिसकी वजह से ज़मीन व आसमान क़ायेम हैं, और जिनकी वजह से मुर्दे ज़िंदगियाँ पाते हैं, और ज़िन्दा अपना रिज्क पाते हैं, बिखरे हुए जमा होते हैं, जिनकी वजह से कई जिंदगियां गुज़रती हैं, और पहाड़ों के भार भी और समुन्दर भी! ऐ वोह ! जो यकता है, मै तुझ से सवाल करता हूँ की मोहम्मद व आले मोहम्मद पर रहमतें नाजिल कर, और मेरे लिए यह यह कर दे ( यह यह की जगह अपनी मुरादे/ दुआ मांगे) | |
इसके बाद, अपना हाथ आसमान की तरफ बुलंद करे और कहें : या अल्लाह ! मैं तुझे से तेरी बे'न्याज़ी और मग्फेरत व रहमत से नजदीकी चाहता हूँ, और मोहम्मद व आले मोहम्मद के शिफ़ा'अत से तेरी नजदीकी का ख्वाहिश्मन्द हूँ, जो तेरे ख़ास बन्दे और पैगम्बर हैं, और मई तेरे नबियों और फरिश्तों की शिफ़ा'अत से तेरी नजदीकी चाहता हूँ, मोहम्मद और आले मोहम्मद पर अपनी रहमतें नाजिल कर, मेरी मग्फ़ेरत फ़रमा, और मेरे ऐब को पोशीदा कर दे,और मेरे गुनाह माफ़ फ़रमा, और मेरी ज़रूरतों को पूरा कर दे, मेरे आल-औलाद और जो भी मुझ पर मुनहसर हैं, इनको शिफ़ा दे, और मेरे ग़लत अफ्त्कार पर मेरी गिरफ़्त न फ़रमा, क्योंकि तो दरयादिल है, बहुत रहम करने वाला है, और तेरी रहमत और मग्फेरत बहुत वसी-अ है |
4. 100 मर्तबा सलवात पढ़ें : (अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मद)
i. आपको कभी भी क़र्ज़ लेने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी, अगर आपने किसी से क़र्ज़ लिया भी है तो आपके पास इतनी दौलत आ जायेगी की आप अपने क़र्ज़ को चुका सकते हैं
ii. आपका न सिर्फ ईमान पुख्ता रहेगा बल्कि आपके ईमान का दर्जा बढ़ता जायेगा
iii. आप अपने फ़राएज़ और जिम्मेदारियों को ब'ख़ूबी निभा सकेंगे, और इस दुन्या में आपके रिज्क-ए-अकबर में भी बढ़ोतरी होगी
5. सुरह अल-नबा पढ़ें
6. फिर आप यह कहें :
اَللَّهُمَّ إِنْ عَظُمَتْ ذُنُوبِي فَانْتَ اعْظَمُ |
अल्लाहुम्मा इन अज़ूमत ज़ूनूबी फ़ा-अ अन्ता आ'ज़मो |
ऐ माबूद ! अगर मेरा गुनाह बड़ा है तो तेरी ज़ात सब से बुलंद है |
وَإِنْ كَبُرَ تَفْرِيطِي فَانْتَ اكْبَرُ |
व इन कबुरा तफ़'रियती फ़ा अन्ता अक्बरो |
अगर मेरी कोताही बड़ी है तो तेरी ज़ात बुज़ूर्ग्तर है |
وَإِنْ دَامَ بُخْلي فَانْتَ اجْوَدُ |
व इन दामा बू'ख़ुली फ़ा'अन्ता अज्वदो |
और अगर मेरा बुख्ल दायेमी है तो तू ज्यादा देने वाला है. |
اَللَّهُمَّ ٱغْفِرْ لِي عَظيمَ ذُنُوبِي بِعَظِيمِ عَفْوِكَ |
अल्लाहुम्मा ईग़'फ़िरली अज़ीमा ज़ूनूबी बे अजीमे अफ़'वेका |
ऐ अल्लाह अपने अज़ीम अफ़ु से मेरे बड़े गुनाह बख्श दे, |
وَكَثيرَ تَفْرِيطِي بِظَاهِرِ كَرَمِكَ |
व कसीरा तफ़'रीती बे'ज़ाहिरी करामेका |
अपने लुत्फ़-ओ-करम से मेरी बहुत सी कोताहियाँ माफ़ कर दे |
وَٱقْمَعْ بُخْلِي بِفَضْلِ جُودِكَ |
व अक़्मा'अ बुख्ली बे'फ़ज्ले जूदेका |
और अपने फ़ज़ल व अता से मेरा बुख्ल दूर कर दे |
اَللَّهُمَّ مَا بِنَا مِنْ نِعْمَة فَمِنْكَ |
अल्लाहुम्मा मा बिना मिन नेमतिन फ़'मिन्का |
या ख़ुदाया ! हमारे पास जो नेमत है वो तेरी तरफ से है, |
لاَ إِلٰهَ إِلاَّ انْتَ |
ला इलाहा इल्ला अन्ता |
तेरे सिवा कोई माबूद नहीं, |
اسْتَغْفِرُكَ وَ اتُوبُ إِلَيْكَ |
अस्तग'फ़िरुका व अतूबो इलय्का |
मैं तुझ से बख्शीश चाहता हूँ और तेरे हुज़ूर तौबा करता हूँ |
पूरी दुआ पढ़ें : अल्लाहुम्मा इन अज़ूमत ज़ूनूबी फ़ा-अ अन्ता आ'ज़मो व इन कबुरा तफ़'रियती फ़ा अन्ता अक्बरो व इन दामा बू'ख़ुली फ़ा'अन्ता अज्वदो अल्लाहुम्मा ईग़'फ़िरली अज़ीमा ज़ूनूबी बे अजीमे अफ़'वेका व कसीरा तफ़'रीती बे'ज़ाहिरी करामेका व अक़्मा'अ बुख्ली बे'फ़ज्ले जूदेका अल्लाहुम्मा मा बिना मिन नेमतिन फ़'मिन्का ला इलाहा इल्ला अन्ता अस्तग'फ़िरुका व अतूबो इलय्का |
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हिंदी तर्जुमा पढ़ें : ऐ माबूद ! अगर मेरा गुनाह बड़ा है तो तेरी ज़ात सब से बुलंद है, अगर मेरी कोताही बड़ी है तो तेरी ज़ात बुज़ूर्ग्तर है और अगर मेरा बुख्ल दायेमी है तो तू ज्यादा देने वाला है, ऐ अल्लाह अपने अज़ीम अफ़ु से मेरे बड़े गुनाह बख्श दे, अपने लुत्फ़-ओ-करम से मेरी बहुत सी कोताहियाँ माफ़ कर दे और अपने फ़ज़ल व अता से मेरा बुख्ल दूर कर दे, या ख़ुदाया ! हमारे पास जो नेमत है वोह तेरी तरफ से है, तेरे सिवा कोई माबूद नहीं, मैं तुझ से बख्शीश चाहता हूँ और तेरे हुज़ूर तौबा करता हूँ ! |
7. बाक़िया'तुस सालेहात में है : तीसरा - इमाम जाफर अल-सादिक़ (अ:स) की रिवायत है की अमीरुल मोमेनीन ईमाम अली (अ:स) अपनी जोहर की नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़ा करते थे
اَللَّهُمَّ إِنِّي تَقَرَّبُ إِلَيْكَ بِجُودِكَ وَكَرَمِكَ |
अल्लाहुम्मा इन्नी अता'क़र-रेबो इलैका बे'जूदेका व करामिका |
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وَتَقَرَّبُ إِلَيْكَ بِمُحَمَّدٍ عَبْدِكَ وَرَسُو لِكَ |
व अता'क़र-रेबो इलैका बे मोहम्मदीन अबदिका व रसूलेका |
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وَتَقَرَّبُ إِلَيْكَ بِمَلاَئِكَتِكَ ٱلْمُقَرَّبِينَ |
व अता'क़र-रेबो इलैका बे मलाई'कतेका अल-मुक़र-रबीना |
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وَنْبِيَائِكَ ٱلْمُرْسَلِينَ وَبِكَ |
व अमबिया-इका अल मुर्सलीना व बेका |
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اَللَّهُمَّ نْتَ ٱلْغَنِيُّ عَنِّي |
अल्लाहुम्मा अन्ता अल-गनीयों अन्नी |
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وَبِيَ ٱلْفَاقَةُ إِلَيْكَ |
व बिया अल-फ़-क़तो इलैका |
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نْتَ ٱلْغَنِيُّ وَنَا ٱلْفَقِيرُ إِلَيْكَ |
अन्ता अल-गनीयो व अना अल-फ़कीरों इलैका |
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قَلْتَنِي عَثْرَتِي |
अक़ल'तनी अस-रती |
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وَسَتَرْتَ عَلَيَّ ذُنُوبِي |
व सतरता अल्य्या ज़ूनूबी |
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فَٱقْضِ ٱلْيَوْمَ حَاجَتِي |
फ़क्ज़ी अल-यौमा हां-जती |
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وَلاَ تُعَذِّبْنِي بِقَبِيحِ مَا تَعْلَمُ مِنِّي |
व ला तू-अज़-ज़ीब्नी बे'क़ब्लिही मा ता'लमो मिन्नी |
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بَلْ عَفْوُكَ وَجُودُكَ يَسَعُنِي |
बल'अफ़्वेका व जूदेका यसा'उनी |
फिर वो (इमाम अली अलैहि अल्सलाम) सज्दे में जाते थे और यह दुआ पढ़ते थे
يَا هْلَ ٱلتَّقْوَىٰ |
या अहला अल्त'त्क़्वा |
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وَيَا هْلَ ٱلْمَغْفِرَةِ |
व या अहला अल-मग्फ़ेरते |
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يَا بَرُّ يَا رَحِيمُ |
या बररो या रहीमो |
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نْتَ بَرُّ بِي مِنْ بِي وَامِّي |
अन्ता अबर'रो बे मिन अबी व उम्मी |
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وَمِنْ جَمِيعِ ٱلْخَلاَئِقِ |
व मिन जमी-ए अल-अखलाक़ी |
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ٱقْلِبْنِي بِقَضَاءِ حَاجَتِي |
अक़'लिब्नी बे 'क़ज़ा-ए हा-जती |
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مُجَاباً دُعَائِي |
मुजाबन दुआ'इ |
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مَرْحُوماً صَوْتِي |
मरहूमन सौती |
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قَدْ كَشَفْتَ نْوَاعَ ٱلْبَلاَءِ عَنِّي |
क़द कशफ़'ता अन्वा'अ अल-बलाई अन्नी |
1. इमाम अली (अ:स) से रिवायत है की पैगमबर अकरम (स:अ:व:व) अपनी जोहर की नमाज़ के बाद यह दुआ पढ़ते थे
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम ला इलाहा इलल लाहो अल-अज़ीमो अल-हलीमो ला इलाहा इलल लाहो रब्बुल अरशील करीम अलहम्दो लील'लाहे रब्बिल आलामीन अलाहुमा इन्नी अस'अलुका मोजेबाती रहमतिका व अज़ा'ईमा मग़-फ़िरतिका वल गनीमता मिन कुल्ले बिर्रिन वल्स-सलामाता मं कुल्ले इस्म अल्लाहुम्मा ला तद'आ ली ज़न्बन इल्ला ग़'फ़र-तोहू व ला हम'मन इल्ला फ़र्रज'तोहू व ला सुक़'मन इल्ला श्फ़ै-तोहू व ला ऐबन इल्ला सतर'ताह व ला रिज़'कन इल्ला बसत'तोहू व ला खौ'फ़न इल्ला अमान'ताह व ला सोओ'अन इल्ला सरफ़'तोहू या अरहमर राहेमीन व ला हाजतन हिया लका रिज़ा व लिया फ़ीहा सलाहुन इल्ला क़ा'ज़ैताहा आमीन रब्बुल आलामीन
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हिंदी तर्जुमा : खुदाए अज़ीम-ओ-हलीम के सिवा कोई माबूद नहीं, रब्बे अरशे बरीं के सिवा कोई सजावारे इबादत नहीं। तमाम हम्द आलमीन के पालने वाले खुदा ही के लिए है, ऐ खुदा मै तुझ से तेरी रहमत और यक़ीनी मग्फ़ेरत के असबाब का सवाल करता हूँ, हर नेकी से हिस्सा पाने और हर गुनाह से बचाव का तलबगार हूँ, ऐ मेरे माबूद, मेरे ज़िम्मे कोई ऐसा गुनाह न छोड़ जिसे तू माफ़ न करे, कोई गम न दे जिसे तू दूर न कर दे, बीमारी न दे मगर वोह जिस से शिफ़ा अता कर दे, ऐब न लगा मगर वो जिसे तो पोशीदा रखे, रिज़्क न दे मगर वो जिसमें फ़राखी अता करे, खौफ न ही मगर जिस से तू अमन अता करे, बुराई न आये मगर वो जिसे तू हटा दे, कोई हाजत न हो मगर वो जिसे तू पूरा फरमाए और इसमें तेरी रज़ा और मेरी बेहतरी हो, ऐ सबसे ज़्यादा रहम करने वाले आमीन ऐ आलामीन के पालने वाले |