Hindi
Monday 29th of July 2024
0
نفر 0

आशूरा के आमाल

आशूरा के आमाल

अबनाः रोज़े आशूरा मुहम्मद और आले मुहम्मद (स.अ.) पर मुसीबत का दिन है। आशूर के दिन इमाम हुसैन अ. ने इस्लाम को बचाने के लिए अपना भरा घर और अपने साथियों को ख़ुदा की राह में क़ुर्बान कर दिया है, हमारे आइम्मा-ए-मासूमीन अ. ने इस दिन को रोने और शोक मनाने से विशेष कर दिया है अत: आशूरा के दिन रोने, मजलिस व मातम करने और अज़ादारी की बहुत ताकीद की गई है।

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अ. कहते हैं कि अगर कोई आज के दिन इमाम हुसैन अ. की ज़ियारत करे , आपकी मुसीबत पर ख़ूब रोए और अपने घर वालों और रिश्तेदारों को भी रोने का हुक्म दे। अपने घर में अज़ादारी का प्रबंध करे और आपस में एक दूसरे से रोकर मिले, एक दूसरे को इन शब्दों में शोक व्यक्त करे।

"۔" عَظَّمَ اللّٰہُ اُجُورَنٰا بِمُصٰابِنٰا بِالحُسَینِ عَلَیہِ السَّلَام وَ جَعَلَنَا وَاِیَّاکُم مِنَ الطَّالِبِینَ بِشَارِہِ مَعَ وَلِیِّہِ الاِمَامِ المَھدِی مِن آلِ مُحَمَّدٍ عَلَیہِمُ السَّلَام"

अल्लाह तआला उसको बहुत ज़्यादा सवाब अता फ़रमाएगा।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक अ. के हवाले से बयान हुआ है कि अगर कोई आशूर के दिन एक हज़ार बार सूरए तौहीद पढ़े तो ख़ुदावन्दे आलम उसकी तरफ़ रहमत की निगाह करेगा आशूर के दिन इमाम हुसैन अ. के क़ातिलों पर हज़ार बार इस तरह लानत भेजे तो बहुत ज़्यादा सवाब मिलेगा

۔" اَللّٰھُمَّ العَن قَتَلَۃَ الحُسَینِ وَ اَصحٰابِہِ"

आशूरा के दिन के आमाल
आशूरा के दिन रोना और मुसीबत उठाने वालों की तरह सूरत बनाना, नंगे सर और नंगे पैर रहना, आस्तीनों को ऊपर चढ़ाना, गरेबान को चाक करना, सारे दिन फ़ाक़े (भूके प्यासे) से रहना औऱ अस्र के समय फ़ाक़ा तोड़ना, इमाम हुसैन अ. के हत्यारों पर लानत भेजना, सुबह के वक़्त जब कुछ दिन चढ़ जाए तो रेगिस्तान या छत पर जाकर आशूरा के आमाल करने की ताकीद है, सबसे पहले इमाम हुसैन अ. की छोटी वाली ज़्यारत पढ़े

" اَلسَّلاَم ُعَلَیکَ یٰا اَبٰا عَبدِ اللّٰہِ ،اَلسَّلاَمُ عَلَیکَ یَابنَ رَسُولِ اللّٰہِ ، اَلسَّلاَمُ عَلَیکُم وَ رَحمَۃُ اللّٰہ وَ بَرَکٰاتُہ "

इसके बाद दो रकअत नमाज़े ज़्यारते आशूरा सुबह की नमाज़ की तरह पढ़े फिर दो रकअत नमाज़, ज़्यारते इमाम हुसैन अ. इस तरह कि क़ब्रे इमाम हुसैन अ. की तरफ़ इशारा करे और नियत करे कि दो रकअत नमाज़े ज़्यारत इमाम हुसैन अ. पढ़ता हूँ क़ुरबतन इलल्लाह नमाज़ तमाम करने के बाद ज़्यारते आशूरा पढ़े
इमाम जाफ़रे सादिक़ अ. फ़रमाते हैं: इस दुआ को सात बार इस तरह पढ़े कि रोने की हालत में यह दुआ पढ़ता हुआ सात बार आगे बढ़े और इसी तरह सात बार पीछे हटे

" اِنَّا لِلّٰہِ وَ اِنَّااِلَیہِ رَاجِعُونَ رِضاً بِقَضَائِہِ وَ تَسلِیماً لِاَمرِہ

और इमामे जाफ़रे सादिक़ अ. फ़रमाते हैं: जो शख़्स आशूर के दिन दस बार इस दुआ को पढ़े, तो ख़ुदावन्दे आलम तमाम आफ़त व बलाए नागहानी (घटनाओं) से एक साल तक महफ़ूज़ रखता है।

" اَللّٰھُمَّ اِنِّی اَسئَلُکَ بِحَقِّ الحُسَینِ وَ اَخِیہِ وَ اُمِّہِ وَ اَبِیہِ وَ جَدِّہِ وَ بَنِیہِ وَ فَرِّج ± عَنِّی مِمَّا اَنٰا فِیہِ بِرَحمَتِکَ یٰا اَر ±حَمَ الرَّاحِمِینَ "

शेख मुफ़ीद ने रिवायत की है कि जब भी आशूर के दिन इमाम हुसैन अ.की ज़ियारत करना चाहें तो हज़रत की क़ब्र के क़रीब खड़े हों औऱ यह ज़ियारत पढ़ें ज़ियारते नाहिया, दुआए अलक़मा,
आशूर के आख़िरी वक़्त की ज़ियारत
नोट: आशूर को आख़िरी वक़्त पानी से फ़ाक़ा शिकनी करे और ऐसा खाना खाए जो मुसीबत में पड़ने वालों का ख़ाना हो लज़ीज़ व स्वादिष्ट खाने से बचे आज के दिन दुआए सलामती नहीं पढ़नी चाहिए क्योंकि यह चीज़ें दुश्मनों की ईजाद की हैं।

 


source : www.abna.ir
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली के ...
पवित्र रमज़ान-19
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला ...
इमाम हुसैन अ. के कितने भाई कर्बला ...
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ...
प्रकाशमयी चेहरे वाला सियाहपोस्त ...
जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम का ...
27 रजब पैग़म्बरे अकरम का ऐलाने ...
हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ...
रसूले अकरम और वेद

 
user comment